रामायण में भगवान राम और हनुमान जी के मिलन की कथा अत्यंत रोचक है । जब पहली बार इनका मिलन हुआ, तब हनुमान जी ने ब्राह्मण का रूप धारण किया था। आखिर ऐसा क्यों हुआ और यह मुलाकात कहां हुई ? आइए, रामचरितमानस के आधार पर जानते हैं।
वनवास में भटकते थे श्रीराम भगवान राम का वनवास कठिनाइयों से भरा था। माता सीता के हरण के बाद वे और लक्ष्मण उनकी खोज में वनों में भटक रहे थे। पक्षिराज जटायु ने उन्हें बताया कि रावण ने सीता का हरण किया है। जटायु ने रावण से युद्ध किया, लेकिन घायल होकर श्रीराम की गोद में प्राण त्याग दिए। इसके बाद श्रीराम किष्किंधा की ओर बढ़े। ऋष्यमूक पर्वत पर हुआ मिलन रामचरितमानस के अनुसार, श्रीराम और लक्ष्मण जब किष्किंधा के ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे, तब सुग्रीव को उनके बलशाली रूप से भय हुआ। सुग्रीव ने हनुमान जी को भेजा और कहा, “ब्राह्मण वेश में जाकर पता लगाओ कि ये कौन हैं। अगर ये बलि के भेजे हुए हैं, तो मैं यह पर्वत छोड़कर भाग जाऊंगा।”
ब्राह्मण रूप में आए हनुमान हनुमान जी ने ब्राह्मण का रूप धारा और श्रीराम से पूछा, आप क्षत्रिय जैसे दिखते हैं। इस वन में क्या कर रहे हैं ? तब श्रीराम ने अपना परिचय दिया, मैं कोसलराज दशरथ का पुत्र राम हूं।
यह मेरे भाई लक्ष्मण हैं। राक्षस ने मेरी पत्नी सीता का हरण किया है। हम उनकी खोज में आए हैं। हनुमान ने पहचाना प्रभु को राम का नाम सुनते ही हनुमान की आंखें भर आईं। वे अपने असली रूप में आए और श्रीराम के चरणों में गिर पड़े। उन्होंने कहा, प्रभु, मैं आपको पहचान न सका। मुझे क्षमा करें।
इस तरह किष्किंधा के ऋष्यमूक पर्वत पर श्रीराम और हनुमान का पहला मिलन हुआ। रामचरितमानस में है विवरण यह पूरी कथा रामचरितमानस के किष्किंधाकांड में वर्णित है। यह मिलन भक्ति और विश्वास का प्रतीक है।

