Gita Govinda | Srita Kamala Kucha Mandala | गीत गोविन्द: दोस्तों नमस्कार, आज हम आपको इस लेख के जरिए गीत गोविन्द के बारे में बात करेंगे। 12वीं शताब्दी में कवि जयदेव द्वारा रचित गीत गोविन्द एक प्रसिद्ध संस्कृत काव्य है। जिसमें भगवान श्रीकृष्ण और राधाके दिव्य प्रेम के साथ गोपियों के बीच के संबंध को वर्णन किया गया है। यह काव्य भक्ति और प्रेम से परिपूर्ण अत्यंत सुंदर भावनात्मक रचना है।
गीत गोविन्द
श्रित-कमला-कुच-मण्डल धृत-कुण्डल ए ।
कलित-ललित-वन-माल जय जय देव हरे ॥ १ ॥
दिन-मणि-मण्डल-मण्डन भव-खण्डन ए ।
मुनि-जन-मानस-हंस जय जय देव हरे ॥ २ ॥
कालिय-विष-धर-गञ्जन जन-रञ्जन ए ।
यदुकुल-नलिन-दिनेश जय जय देव हरे ॥ ३ ॥
मधु-मुर-नरक-विनाशन गरुडासन ए ।
सुर-कुल-केलि-निदान जय जय देव हरे ॥ ४ ॥
अमल-कमल-दल-लोचन भव-मोचन ए ।
त्रिभुवन-भुवन-निधान जय जय देव हरे ॥ ५ ॥
जनक-सुता-कृत-भूषण जित-दूषण ए ।
समर-शमित-दश-कण्ठ जय जय देव हरे ॥ ६ ॥
अभिनव-जल-धर-सुन्दर धृत-मन्दर ए ।
श्री-मुख-चन्द्र-चकोर जय जय देव हरे ॥ ७ ॥
तव चरणं प्रणता वयम् इति भावय ए ।
कुरु कुशलं प्रणतेषु जय जय देव हरे ॥ ८ ॥
श्री-जयदेव-कवेर् इदं कुरुते मुदम् ए ।
मङ्गलम् उज्ज्वल-गीतं जय जय देव हरे ॥ ९ ॥
Gita Govinda
Sri Gita Govindam
Srita Kamala Kucha Mandala
Srita-Kamala-Kuca-Mandala Dhrta-Kundala E ।
Kalita-Lalita-Vana-Mala Jaya Jaya Deva Hare ॥ 1 ॥
Dina-Mani-Mandala-Mandana Bhava-Khandana E ।
Muni-Jana-Manasa-Hamsa Jaya Jaya Deva Hare ॥ 2 ॥
Kaliya-Visa-Dhara-Ganjana Jana-Rasnjana E ।
Yadukula-Nalina-Dinesa Jaya Jaya Deva Hare ॥ 3 ॥
Madhu-Mura-Naraka-Vinasana Garudasana E ।
Sura-Kula-Keli-Nidhana Jaya Jaya Deva Hare ॥ 4 ॥
Amala-Kamala-Dala-Locana Bhava-Mochana E ।
Tribhuvana-Bhuvana-Nidhana Jaya Jaya Deva Hare ॥ 5 ॥
Janaka-Suta-Krita-Bhusana Jita-Dusana E ।
Samara-Samita-Dasa-Kantha Jaya Jaya Deva Hare ॥ 6 ॥
Abhinava-Jala-Dhara-Sundara Dhrita-Mandara E ।
Sri-Mukha-Candra-Cakora Jaya Jaya Deva Hare ॥ 7 ॥
Tava Caranam Pranata Vayam Iti Bhavaya E ।
Kuru Kusalam Pranatesu Jaya Jaya Deva Hare ॥ 8 ॥
Sri-Jayadeva-Kaver Idam Kurute Mudam E ।
Mańgalam Ujjvala-Gitam Jaya Jaya Deva Hare ॥ 9 ॥
ଶ୍ରୀ ଜୟଦେବ କୃତ ଗୀତ ଗୋବିନ୍ଦ
ଗୀତ ଗୋବିନ୍ଦ ଓଡିଆରେ
ଶ୍ରୀତ କମଲା କୁଚ ମଣ୍ଡଲ ଧୃତ କୁଣ୍ଡଲ ଏ ।
କଲିତ ଲଲିତ ବନ ମାଲ ଜୟ ଜୟ ଦେବ ହରେ ॥ ୧ ॥
ଦିନ ମଣି ମଣ୍ଡଳ ମଣ୍ଡନ ଭବ ଖଣ୍ଡନ ଏ ।
ମୁନି ଜନ ମାନସ ହଂସ ଜୟ ଜୟ ଦେବ ହରେ ॥ ୨ ॥
କାଳୀୟ ବିଷ ଧର ଗଞ୍ଜନ ଜନ ରଞ୍ଜନ ଏ ।
ଯଦୁ କୁଲ ନଲିନ ଦିେନଶ ଜୟ ଜୟ ଦେବ ହରେ ॥ ୩ ॥
ମଧୁ ମୁର ନରକ ବିନାଶନ ଗରୁଡାସନ ଏ ।
ସୁର କୁଲ କେଲି ନିଦାନ ଜୟ ଜୟ ଦେବ ହରେ ॥ ୪ ॥
ଅମଲ କମଲ ଦଲ ଲୋଚନ ଭବ ମୋଚନ ଏ ।
ତ୍ରିଭୁବନ ଭୁବନ ନିଧାନ ଜୟ ଜୟ ଦେବ ହରେ ॥ ୫ ॥
ଜନକ ସୁତା କୃତ ଭୂଷଣ ଜିତ ଦୂଷଣ ଏ ।
ସମର ଶମିତ ଦଶ କଣ୍ଠ ଜୟ ଜୟ ଦେବ ହରେ ॥ ୬ ॥
ଅଭିନବ ଜଲଧର ସୁନ୍ଦର ଧୃତ ମନ୍ଦର ଏ ।
ଶ୍ରୀ ମଖୁ ଚନ୍ଦ୍ର ଚକୋର ଜୟ ଜୟ ଦେବ ହରେ ॥ ୭ ॥
ତବ ଚରଣମ ପ୍ରଣତା ବୟମ ଇତି ଭାବୟ ଏ ।
କୁରୁ କୁଶଲମ ପ୍ରଣତେଷୁ ଜୟ ଜୟ ଦେବ ହରେ ॥ ୮ ॥
ଶ୍ରୀ ଜୟଦେବ କବେର ଇଦଂ କୁରୁତେ ମୁଦମ ଏ ।
ମଙ୍ଗଳ ମୁଜ୍ଜ୍ଵଳ ଗୀତଂ ଜୟ ଜୟ ଦେବ ହରେ ॥ ୯ ॥
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