Site icon Bhakti Bharat Ki

नवरात्रि का चौथा दिन: माँ कुष्मांडा की पूजा में डूबा देश

आश्विन की ठंडी सुबह में एक अलौकिक उत्साह है। उड़ीसा, पूरे देश के साथ, नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्मांडा की आराधना में डूबा है। मंदिरों और घरों में भक्तों की भक्ति भरी आवाजें गूंज रही हैं, मानो हवा में माँ की ज्योति साकार हो रही हो। मेरे दिल में भी एक अजीब सी उमंग है, जैसे माँ स्वयं मेरे पास खड़ी हों, अपनी मुस्कान से सृष्टि को रोशन करती हुई।

माँ कुष्मांडा, सृष्टि की आदि शक्ति, सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की दाता हैं। उनकी आठ भुजाओं में कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जपमाला शोभायमान हैं।

सिंह पर सवार माँ की शक्ति अनंत है। उनकी जपमाला भक्तों को अष्ट सिद्धियाँ और नौ निधियाँ प्रदान करती है। सूर्य के केंद्र में निवास करने वाली माँ का तेज हजार सूर्यों सा चमकता है, जो समस्त विश्व को आलोकित करता है। वे सूर्यदेव की परम आराध्या हैं, और उनकी कृपा से ही यह सृष्टि जीवंत है। ‘कु’ यानी छोटा, ‘उष्म’ यानी ऊर्जा, और ‘अंड’ यानी ब्रह्मांडीय अंडा – माँ कुष्मांडा का नाम ही उनकी सृजन शक्ति को दर्शाता है। कहते हैं, उनकी हल्की सी मुस्कान से ही ब्रह्मांड का जन्म हुआ। उनका प्रिय भोग, कद्दू, उनके नाम से जुड़ा है, जो उनकी सादगी और महिमा को दर्शाता है।

उड़ीसा के मंदिरों में भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है। “सुरासम्पूर्ण कलसं रुधिराप्लुतमेव च, दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडेति नमो नमः”, का जाप हर दिल को जोड़ रहा है।

नवरात्रि के नौ दिन, माँ के नौ रूपों की पूजा, हमें एकता और भक्ति की माला में पिरोते हैं। मेरी आत्मा आज माँ के चरणों में है, और यह उत्सव मेरे दिल को एक अनमोल शांति दे रहा है, जो शब्दों में बयां नहीं हो सकती।

Exit mobile version