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Rakshabandhan | रक्षाबंधन का शुभ समय, महत्व और इतिहास

Rakshabandhan | रक्षाबंधन का शुभ समय, महत्व और इतिहास: दोस्तों नमस्कार, आज हम आपको इस लेख के जरिए रक्षाबंधन का शुभ समय और इतिहास के बारे में बात करेंगे। रक्षाबंधन मनाने की परंपरा का प्रारंभ कैसे हुआ और कैसे श्रावणी पूर्णिमा ने कालांतर में राखी और भाई बहनों के प्रिय पर्व का रूप ले लिया, आइए लेख के जरिए जानते हैं 2023 रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का शुभ समय और इतिहास:

रक्षा बंधन क्या है: भाई बहनो के बीच मनाया जाने वाला पर्व यह रक्षाबंधन त्यौहार हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। रक्षा का मतलब होता है सुरक्षा और बंधन का मतलब होता है रिश्ता। रक्षाबंधन का मतलब है बहन अपने भाई का सुरक्षा एवं समृद्धि के लिए कामना कर, भाई का कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं। बदले में भाई भी बहन की सुरक्षा के लिए कामना करते हैं। रक्षाबंधन के दिन सबसे पहले बहन को सूर्योदय पहले स्नान करना चाहिए। घर की साफ सफाई कर के, साफ वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद राखी में स्वर्ण, केसर, चन्दन, अक्षत और दूर्वा रख कर पहले राखी की पूजा करना चाहिए। इसके बाद अपने बड़ों का भी आर्शीवाद प्राप्त करें। राखी की पूजा के बाद बहनें अपने भाई को तिलक और टीके पर अक्षत लगाएं। इसके बाद अपने भाई के दहिन हाथ पर राखी बांधे। राखी बांधने के बाद भाई को मुंह मीठा कर के अपनी बहन के पैर छुकर उसका आर्शीवाद लेना चाहिए।

 रक्षाबंधन कब और क्यों मनाया जाता हैं: रक्षा बंधन 2023 पर पूर्णिमा तिथि लगने के साथ सुबह से रात तक भद्रा रहेगी। जो रात को 09 बजकर 01 मिनट तक रहेगी। भद्रा का साया चलने से राखी का त्योहार 30 और 31 अगस्त यानी 2 दिनों तक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भद्रा काल में राखी बांधना शुभ नहीं माना जाता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार किसी भी तरह के शुभ काम को भद्राकाल के दौरान नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है रावण को उसकी बहन ने भद्रा काल में राखी बांधी थी, जिसकी वजह से रावण का अंत भगवान राम के हाथों हुआ। इस बार पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त बुधवार की शाम को शुरू होकर अगले दिवस 31 अगस्त तक रहेगी। ऐसे में जो लोग रात को राखी बांधना चाहते हैं वह रात 09 बजकर 03 मिनट के बाद रक्षाबंधन का पर्व मना सकते हैं। जिन घरों में रात को राखी का त्योहार नहीं मनाया जाता है वह लोग 31 अगस्त को सुबह 7:05 बजे से पहले राखी बांध सकते हैं। इसके बाद भाद्रपद की प्रतिपदा तिथि लग जाएगी। 31 अगस्त 2023 को सुबह 07 बजकर 05 मिनट के पूर्व अपने रक्षा सूत्र को श्री गणेश जी का ध्यान करके भगवान को स्पर्श करके रख ले। इसके बाद बहन को अपने सुविधानुसार रक्षा सूत्र को भाई की दाहिनी कलाई पर ही बांधना चाहिए।

रक्षाबंधन का शुभ समय (Happy Raksha Bandhan 2023):

तारीख 30 अगस्त और 31 अगस्त 2023
दिन बुधवार
शुभ समय 30 अगस्त की रात 9 बजकर 03 मिनट से लेकर 31 अगस्त को सुबह 7 बजकर 05 मिनट तक रहेगा
महीना अगस्त 2023

 

रक्षाबंधन का महत्व (Raksha Bandhan 2023):

रक्षाबंधन का इतिहास:

रक्षा बंधन की सबसे लोकप्रिय किंवदंतियों में से एक लोकप्रिय कथा भगवान इंद्र और असुर राजा बलि की कहानी, राजा बलि और देवी लक्ष्मी की कहानी, संतोषी माँ सम्बंधित रक्षा बंधन की कहानी, कृष्ण और द्रौपदी सम्बंधित रक्षा बंधन की कहानी, यम और यमुना की कहानी, 1905 का बंग भंग, रविन्द्रनाथ टैगोर और रक्षा बंधन की कहानी है।

इन्द्रदेव को भगवन विष्णु ने दिया था रक्षा सूत्र: भविष्यत् पुराण के अनुसार दैत्यों और देवताओं के मध्य होने वाले एक युद्ध में भगवान इंद्र को एक असुर राजा, राजा बलि ने हरा दिया था। उन्होंने पति इंद्र के प्राणों की रक्षा के लिए कठोर तप शुरू कर दिया। इस समय इंद्र की पत्नी सची ने भगवान विष्णु से मदद माँगी। भगवान विष्णु ने सची को सूती धागे से एक हाथ में पहने जाने वाला वलय बना कर दिया। सची ने इस धागे को इंद्र की कलाई में बाँध दिया तथा इंद्र की सुरक्षा और सफलता की कामना की। इसके बाद अगले युद्द में इंद्र बलि नामक असुर को हार कर अमरावती पर अपना अधिकार कर लिया। यहाँ से इस पवित्र धागे का प्रचलन आरम्भ हुआ। इसके बाद युद्द में जाने के पहले अपने पति को औरतें यह धागा बांधती थीं। इस तरह यह त्योहार सिर्फ भाइयों बहनों तक ही सीमित नहीं रह गया।

राजा बलि और माँ लक्ष्मी रक्षा बंधन की कहानी: भगवत पुराण और विष्णु पुराण के आधार पर यह माना जाता है कि जब भगवान विष्णु ने राजा बलि को हरा कर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया तो बलि ने भगवान विष्णु से उनके महल में रहने का आशीर्वाद माँग लिया। माँ लक्ष्मी विष्णु के साथ वापस वैकुण्ठ जाना चाहती थीं | इसलिए उन्होंने ने बलि को रक्षा धागा बाँध कर भाई बना लिया। राजा बलि से उपहार स्वरुप यह माँगा कि वह भगवान विष्णु को बलि के महल में ही रहने के वचन से मुक्त करें। बलि ने ये बात मान ली और साथ ही माँ लक्ष्मी को अपनी बहन के रूप में भी स्वीकार किया।

संतोषी माँ सम्बंधित रक्षा बंधन की कहानी: भगवान गणेश जी के दो पुत्र हुए शुभ और लाभ। इन दोनों भाइयों को एक बहन की कमी बहुत खलती थी, क्यों की बहन के बिना वे लोग रक्षाबंधन नहीं मना सकते थे। इन दोनों भाइयों ने भगवान गणेश से एक बहन की मांग की। कुछ समय के बाद भगवान नारद ने भी गणेश को पुत्री के विषय में कहा। इस पर भगवान गणेश राज़ी हुए और उन्होंने एक पुत्री की कामना की। भगवान गणेश की दो पत्नियों रिद्धि और सिद्धि, की दिव्य ज्योति से माँ संतोषी का अविर्भाव हुआ। इसके बाद माँ संतोषी के साथ शुभ लाभ रक्षाबंधन मना सके।

कृष्ण और द्रौपदी सम्बंधित रक्षा बंधन की कहानी: महाभारत युद्ध के समय द्रौपदी ने कृष्ण की रक्षा के लिए उनके हाथ मे राखी बाँधी थी। इसी युद्ध के समय कुंती ने भी अपने पौत्र अभिमन्यु की कलाई पर सुरक्षा के लिए राखी बाँधी।

यम और यमुना सम्बंधित रक्षा बंधन की कहानी: एक अन्य पौराणिक कहानी के अनुसार, मृत्यु के देवता यम जब अपनी बहन यमुना से 12 वर्ष तक मिलने नहीं गये, तो यमुना ने दुखी होकर माँ गंगा से प्रार्थना कि माँ गंगा ने यम तक यह बात पहुँचाई कि यमुना उनकी प्रतीक्षा कर रही हैं। इस पर यम युमना से मिलने आये। उन्होंने यमुना से कहा कि वे मनचाहा वरदान मांग सकती हैं। इस पर यमुना ने उनसे ये वरदान माँगा कि यम जल्द पुनः अपनी बहन के पास आयें। यम अपनी बहन के प्रेम और स्नेह से गद-गद हो गए और यमुना को अमरत्व का वरदान दिया। और यहाँ से यह प्रथा शुरू हुई कि वर्ष में एक बार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन हर भाई अपनी बहन से मिलने जाए और बहनें प्रेम से भाइयों को रक्षा सूत्र बांधें।

1905 का बंग भंग, रविन्द्रनाथ टैगोर और रक्षा बंधन: भारत में जिस समय अंग्रेज अपनी सत्ता जमाये रखने के लिए ‘डिवाइड एंड रूल’ की पालिसी अपना रहे थे, उस समय रविंद्रनाथ टैगोर ने लोगों में एकता के लिए रक्षाबंधन का पर्व मनाया। वर्ष 1905 में बंगाल की एकता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार बंगाल को विभाजित तथा हिन्दू और मुस्लिमों में सांप्रदायिक फूट डालने की कोशिश करती रही। इस समय बंगाल में और हिन्दू मुस्लिम एकता बनाए रखने के लिए और देश भर में एकता का सन्देश देने के लिए रविंद्रनाथ टैगोर ने रक्षा बंधन का पर्व मनाना शुरू किया।

सिकंदर और राजा पुरु: एक महान ऐतिहासिक घटना के अनुसार जब 326 ई पू में सिकंदर ने भारत में प्रवेश किया, सिकंदर की पत्नी रोशानक ने राजा पोरस को एक राखी भेजी और उनसे सिंकंदर पर जानलेवा हमला न करने का वचन लिया। परंपरा के अनुसार कैकेय के राजा पोरस ने युद्ध भूमि में जब अपनी कलाई पर बंधी वह राखी देखी तो सिकंदर पर व्यक्तिगत हमले नहीं किये।

रानी कर्णावती और हुमायूँ: एक अन्य ऐतिहासिक गाथा के अनुसार रानी कर्णावती और मुग़ल शासक हुमायूँ से सम्बंधित है। सन 1535 के आस पास की इस घटना में जब चित्तोड़ की रानी को यह लगने लगा कि उनका साम्राज्य गुजरात के सुलतान बहादुर शाह से नहीं बचाया जा सकता तो उन्होंने हुमायूँ, जो कि पहले चित्तोड़ का दुश्मन था, को राखी भेजी और एक बहन के नाते मदद माँगी। हालाँकि इस बात से कई बड़े इतिहासकार इत्तेफाक नहीं रखते, जबकि कुछ लोग पहले के हिन्दू मुस्लिम एकता की बात इस राखी वाली घटना के हवाले से करते हैं।

सिखों का इतिहास: 18 वीं शताब्दी के दौरान सिख खालसा आर्मी के अरविन्द सिंह ने राखी नामक एक प्रथा का अविर्भाव किया, जिसके अनुसार सिख किसान अपनी उपज का छोटा सा हिस्सा मुस्लिम आर्मी को देते थे और इसके एवज में मुस्लिम आर्मी उन पर आक्रमण नहीं करते थे। महाराजा रणजीत सिंह, जिन्होंने सिख साम्राज्य की स्थापना की, की पत्नी महारानी जिन्दान ने नेपाल के राजा को एक बार राखी भेजी थी। नेपाल के राजा ने हालाँकि उनकी राखी स्वीकार ली किन्तु, नेपाल के हिन्दू राज्य को देने से इनकार कर दिया।

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