वृंदावन के वराह घाट स्थित श्री हित राधा केली कुंज के पवित्र वातावरण में पंजाब के अरुण जी ने परम पूज्यपाद श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज से एक हृदयस्पर्शी प्रश्न किया, जो मानव अहंकार की गहन समस्या को उजागर करता है: जो जितना बड़ा होता है उसमें उतना ही अहम क्यों होता है?
कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान दुर्योधन ने भीष्म पितामह पर कटु वचन कहे कि आप सेनापति होते हुए भी प्रतिदिन दस हजार महारथियों को मारते हैं, किंतु एक भी पांडव नहीं। क्रोधित होकर भीष्म ने प्रतिज्ञा की कि यदि कल जीवित रहा तो पांच बाणों से पांचों पांडवों का संहार कर देंगे। गुप्तचरों ने यह समाचार पांडव शिविर पहुंचाया, तथापि भगवान श्रीकृष्ण, द्रौपदी जी एवं पांडव भाइयों को कोई चिंता न हुई। उन्होंने कहा, आप हो ना?
भगवान ने एक दिव्य छल रचा। दासी वेश धारण कर वे द्रौपदी जी को स्वामिनी रूप में भीष्म के शिविर ले गए। ब्रह्मचारी भीष्म ने द्रौपदी को दुर्योधन की पत्नी समझकर आशीर्वाद दिया, सौभाग्यवती भव। द्रौपदी ने घूंघट उठाया और बोलीं, अभी कुछ समय पहले आप प्रतिज्ञा करते हैं कि पांचों पांडवों को मार देंगे, और संध्या समय सौभाग्यवती भव कहते हैं – कौन-सी सत्य?
भीष्म हतबुद्धि हो गए जब बाहर पीतांबर में लिपटे अर्जुन के पादुकाओं को देखा। महाराज ने समझाया कि भगवान भक्तों की सेवा में स्वयं जूतियां धोते हैं। जगन्नाथ पुरी में माधवदास बाबा के मलिन वस्त्र स्वयं धोते हैं, कहते हैं, जो मेरे भजन करता है और मेरा ही सहारा है, मैं स्वयं उसकी सेवा करता हूं।
प्रेमानंद जी महाराज, जो 1969 में कानपुर के निकट जन्मे रसिक संत हैं, ने निष्कर्ष निकाला कि अज्ञान से अहंकार उत्पन्न होता है। धन-अहंकार क्षणभंगुर है; सेवा में लगाओ तो स्वर्ग गति मिलेगी।

