नई दिल्ली: दुनिया भर में लोग 1 जनवरी को अंग्रेजी नववर्ष (ग्रेगोरियन कैलेंडर) के तौर पर मनाते हैं, लेकिन हिंदुओं का नववर्ष इससे बिल्कुल अलग तारीख पर आता है। यह चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है, जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल में पड़ती है।
इस फर्क की वजह कैलेंडर की गणना है। अंग्रेजी कैलेंडर सूर्य पर आधारित है। इसमें साल में 365 दिन होते हैं और यह पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने पर टिका है। दूसरी तरफ, हिंदू कैलेंडर चंद्र-सौर (लूनिसोलर) है। इसमें चंद्रमा की गति से महीने तय होते हैं और सूर्य से साल। चंद्रमा का एक चक्कर लगभग 29.5 दिन का होता है, इसलिए हिंदू साल 354 दिन का होता है। इसे सूर्य के साथ जोड़ने के लिए हर 2-3 साल में एक अतिरिक्त महीना (अधिक मास) जोड़ा जाता है।
इस वजह से हिंदू नववर्ष हर साल अलग-अलग तारीख पर आता है और यह वसंत ऋतु, नई फसल और प्रकृति के नए चक्र से जुड़ा होता है।
यह फर्क कब से है?
यह फर्क बहुत पुराना है। हिंदू कैलेंडर की जड़ें हजारों साल पुरानी हैं। विक्रम संवत (जिसे हिंदू नववर्ष के लिए इस्तेमाल करते हैं) की शुरुआत 57 ईसा पूर्व मानी जाती है। राजा विक्रमादित्य ने शक शासकों पर जीत के बाद इसे शुरू किया था। दूसरी ओर, ग्रेगोरियन कैलेंडर 1582 ईस्वी में पोप ग्रेगरी XIII ने लागू किया। यह जूलियन कैलेंडर की गलतियों को सुधारने के लिए आया था।
भारत में ब्रिटिश राज के समय से अंग्रेजी कैलेंडर सरकारी कामों के लिए इस्तेमाल होने लगा, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में हिंदू कैलेंडर आज भी मजबूत है।
क्षेत्रीय नाम और उत्सव
हिंदू नववर्ष पूरे भारत में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है:
- महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा
- कर्नाटक-आंध्र में उगादी
- पंजाब में बैसाखी
- केरल में विशु
- गुजरात में दीवाली के बाद बेस्टू वरस
यह उत्सव नई शुरुआत, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के साथ मनाया जाता है। लोग घर सजाते हैं, पूजा करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं।
यह फर्क हमें बताता है कि भारत की संस्कृति कितनी समृद्ध और विविध है। जहां दुनिया एक तारीख पर नया साल मनाती है, वहीं हिंदू परंपरा प्रकृति के साथ तालमेल बिठाती है।

