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मोहिनी एकादशी 2023 | मोहिनी एकादशी क्या हैं | Mohini Ekadashi Vrat

मोहिनी एकादशी 2023 | मोहिनी एकादशी क्या हैं | Mohini Ekadashi Vrat

महत्वपूर्ण जानकारी
• मोहिनी एकादशी व्रत
सोमवार, 01 मई 2023
• मोहिनी एकादशी शुरू: 30 अप्रैल 2023 को रात 08:28 बजे
• मोहिनी एकादशी समाप्त: 01 मई 2023 रात 10:09 बजे

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व है। पूरे वर्ष में 24 एकादशी व्रत आती है। इन्हीं 24 एकादशी में से मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) सबसे अधिक प्रचलित व्रत है। यह वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है। सरल शब्दों में कहा जाए तो वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मोहिनी एकादशी सभी पापों को नष्ट करने वाला बहुत ही उत्तम दिन है।
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा था कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? श्रीकृष्ण कहा कि हे राजेश्वर! इस एकादशी का नाम मोहिनी है। पोस्ट के जरिए आज हम आपको मोहिनी एकादशी 2023 | मोहिनी एकादशी क्या हैं | Mohini Ekadashi Vart के बारे में विस्तार पूर्वक बताएंगे। आशा करते हैं आप पोस्ट को शुरू से लेकर अंत तक जरूर पढ़ेंगे।

ये भी पढ़िए : Achala Ekadashi

मोहिनी एकादशी व्रत पूजा विधि :

• माेहिनी एकादशी तिथि की अलसुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करने के बाद सबसे पहले सूर्य को अर्घ्य दें। जिसके बाद भगवान श्री विष्णु का स्मरण कर व्रत का संकल्प लें।
• संकल्प के बाद कलश की स्थापना करें और भगवान विष्णु का दोबारा स्मरण करें।
• जिसके बाद श्री विष्णु को पीले फूल, फल, पंचामृत और तुलसी अपर्ण करें।
• पूजन करने के बाद मोहिनी एकादशी कथा का पाठ करें।
• रात्रि के समय श्री हरि का मनन करें और संभव हो सके तो भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें।
• दूसरे सबसे पहले भगवान का पूजन करें और ब्राह्मण या जरूरतमंदों को भोजन प्रसाद स्वरूप बांटे। भोजन के उपरांत उन्हें दक्षिणा दें। इसके बाद ही स्वयं प्रसाद ग्रहण करें।

मोहिनी एकादशी व्रत कथा :

बहुत समय पूर्व की बात है। एक राजा हुआ करते थे। जिनके पांच पुत्र थे। सुमना, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत तथा धृष्ट्बुद्धि। धृष्ट्बुद्धि पांचवा पुत्र था, वह बड़ा ही व्याभिचारी, दुर्जन संग, बड़ों का अपमान करने वाला था। जुये आदि दुर्व्यसनों में उसकी बड़ी आसक्ति थी। वह वेश्याओं से मिलने के लिये लालायित रहता और अन्याय के मार्ग पर चलकर पिता का धन बरबाद किया करता। राजा ने उससे तंग आकर उसे अपने राज्य से बाहर निकाल दिया। वह वनों में जाकर रहने लगा और वह दर दर भटकने लगा। एक दिन पूर्व जन्म के संस्कार वश वह भटकते हुए भूख-प्यास से व्याकुल वह महर्षि कौँन्डिन्य के आश्रम जा पहुँचा। ऋषि ने उसे सत्संगति का महत्त्व समझाया। इससे उस धृष्ट्बुद्धि का हृदय परिवर्तित हो गया। वह अपने किये पाप कर्मों पर पछताने लगा। तब महर्षि कौँन्डिन्य ने उसे वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। व्रत के प्रभाव से धृष्ट्बुद्धि की बुद्धि निर्मल हो गई। इस प्रकार वह अपने पापों तथा दुःखों से मुक्त हो गया था। आज भी यह व्रत श्रद्धा के साथ किया जाता है।

मोहिनी एकादशी का महत्व :

सनातन संस्कृति में प्रचलित पौराणिक लोक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान, अमृत की प्राप्ति के बाद, देवताओं और राक्षसों में विवाद होने लगा। इतना ही नहीं देव और असुरों के बीच धक्का मुक्की होने लगी। परेशानी यह थी कि, स्वयं की शक्तियों का उपयोग कर देवता असुरों को पराजित नहीं कर सकते थे, इसलिए भगवान श्री हरी ने मोहिनी का रूप धारण किया और असुरों को अपने प्रेम के जाल में फंसा लिया, और सारा अमृत देवताओं को पिला दिया। ऐसा करने से देवताओं ने अमरत्व का वर प्राप्त हो गया। इसी खंड के कारण इस एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन विधिवत व्रत और उपासना से गौदान का पुण्य फल मिलता है। यदि किसी दंपत्ति को संतान की प्राप्ति नहीं हो रही हैं, उन्हें मोहिनी एकादशी का व्रत आवश्यक रूप से करना चाहिए।

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