श्री कृष्ण की बंसी का रहस्य | भगवान शंकर जी की कठोर तपस्या: दोस्तों नमस्कार, आज हम आप लोगों को इस पोस्ट के माध्यम से श्री कृष्ण भगवान को बंसी से इतना प्रेम और भगवान शंकर जी की कठोर तपस्या का रहस्य के बारे में बात करेंगे। इस पवित्र बांसुरी के रहस्य को जानेंगे और इसे जोड़ने वाले गहरे आध्यात्मिक अर्थ को भी समझेंगे।
भगवान् के परम आनंदमय स्वरूप का आश्वासन प्राप्त करके समस्त देवगण अत्यंत प्रसन्न और कृतार्थ होकर भगवान् की सेवा हेतु प्रकट हुए। जिसमें भगवान रूद्र ने श्री कृष्ण भगवान से कहा प्रभु आपके इस परमानंददायक रूप की प्राप्ति कैसे होगा, इसका उपाय मुझे बताइए। मेरी इच्छा, आपके कृष्णा अवतार की लीला में इस कल्प में, मैं बंसी बन करके आपके अधों पर विराजो। श्री कृष्ण भगवान ने कहा – रूद्र जो गौपीभाव से मेरी उपासना करता है, वही मुझे पा सकता है। सुख में थोड़ी भगवान मिलते हैं, कुछ तो त्याग करनी पड़ेगी। गोविंद का सानिध्य के लिए, उस अधमृत को प्राप्त करने के लिए बड़ी तपस्या करनी पड़ेगी। भगवान शंकर ने इसके लिए हजारों वर्ष तपस्या किया। श्री कृष्ण भगवान प्रकट हुए, बोले तपस्या तो की, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।
श्री कृष्ण भगवान ने बोले अब इस तपस्या के फल स्वरूप आपको चेतन से जड़ बनना पड़ेगा। आप पहले बांस बनो, जो जड़ है। बांस बनने के बाद कुछ दिन तक धूप, आतप, जल, वर्षा सहन करके परिपक्व हो, फिर तुम्हारा उच्छेद किया जाएगा। तुम्हारे वंश से तुमको अलग किया जाएगा। जहां तुम पैदा होगे वहां से तुमको काट के अलग किया जाएगा। इस दुख को सहना पड़ेगा। इसके बाद भी तुम्हें सूखना पड़ेगा। इसके बाद जलना पड़ेगा। जलती हुई लोहे की सलाका से उस बांस के भीतर के रंद्र को एकीकृत किया जाएगा। फिर जलती हुई सलाकाओं से छिदना पड़ेगा। अपने वंश से उच्छेद, फिर कटना, जलना, छिदना, विधना, इतनी सहन शक्ति जिसके अंदर हो गोविंद के चरणों तक पहुंचेगी। भगवान शंकर ने कहा मैं सब सहन करूंगा।
वंशस्तु भगवान् रुद्रः भगवान् रुद्र ही बंसी बनकर के गोविंद के अधों पर बैठे।
तब भगवान शंकर को बंसी बनने का सौभाग्य मिला और उस बंसी को भगवान अपने अधों पर रखा। जो भक्त भगवान के लिए कठोर तप करके, सब कुछ त्याग करके, बंसोच्छेद करके, जल करके, छिद करके, विध करके, कट करके भगवान के चरणों में पहुंचेगी वही भक्त बड़ा उत्कर्ष होगा। भगवान उस बंसी को अपने अधों के ऊपर विराजमान करते। अपने हाथों का उसको बिस्तर देते हैं। अधों का तकिया लगा देते हैं। अपनी अलकावली से उसे व्यजन करते हैं। अपनी उंगलियों से उसका चरण दबाते हैं।
जो भक्त भगवान के लिए इतना बड़ा त्याग किया, ऐसे भक्त भगवान को बहुत प्रिय है। सब कुछ छूट जाए बंसी ना छूटे। भगवान श्रीकृष्ण को सबसे अतिप्रिय बांस निर्मित बांसुरी। जिस बांसुरी से निकलने वाला धुन गोपिकाएं और पूरा गोकुल को शांति प्रदान करता है। इस वंसी को हिलाया जाता है तो बुरी आत्माएं दूर हो जाती हैं। जब इसे बजाया जाता है तो घरों में शुभ चुंबकीय प्रवाह का प्रवेश होता है।
एक बार गोपियों ने श्रीकृष्ण की बांसुरी से पूछा कि आखिर पिछले जन्म में तुमने ऐसा कौन-सा पुण्य कार्य किया था, जो तुम हमारे मुरली मनोहकर के गुलाब की पंखुडी जैसे होंठों पर स्पर्श करती रहती हो। ये सुनकर बांसुरी ने मुस्कुराकर कहा ‘मैंने उनके समीप आने के लिए जन्मों तक इंजतार किया। त्रेतायुग में जब भगवान राम वनवास काट रहे थे, तो उस वक्त मेरी भेंट उनसे हुई थी। भगवन की कोमल चरणों का स्पर्श पाकर मुझे प्रेम का अनुभव होता था। जीवन में पहली बार मुझे किसी ने इतने प्रेम से स्वीकार किया था। यही कारण है कि मैंने आजीवन उनके साथ रहने की कामना की। पंरतु उस काल में वो अपनी मर्यादा से बंधे हुए थे, इसलिए उन्होंने मुझे द्वापर युग में अपने साथ रखने का वचन दिया। इस प्रकार श्रीराम ने अपना वचन निभाते हुए श्रीकृष्ण रूप में मुझे अपने निकट रखा।
श्रीकृष्ण जब राधा और गोपियों को छोड़कर जा रहे थे तब उन्होंने ऐसी बांसुरी बजाई थी कि सभी गोपिकाएं बेसुध हो गई थी। शरद पूर्णिमा की रात्रि को जमुना के तट पर भगवान ने रास लीला का विचार किया और अपनी योग माया को आदेश दिया। योग माया ने रास लीला के लिए संपूर्ण वातावरण को सुसज्जित कर दिया।
भगवानपि ता रात्री: शरदोत्फुल्लामल्लिका .
वीक्ष्य रन्तुं मश्रच्क्रे योगमायामुपाश्रित:
योग माया का आश्रय लेकर भगवान ने उस रात महारास किया। जमुना की निर्मल धार, जमुना का दिव्य पुलिन, जमुना की जो बालुका है वो रजत के समान चमकती हुई सुंदर सुगंधित वायु प्रवाहित होने लगी। कमल पुष्प खिल गए। भवरे गुंजार करने लगे। चंद्रमा अपनी किरणों से पृथ्वी को आलादित करने लगा। मल्लिका के पुष्प की सुगंध को वायु प्रसारित करने लगी। पूरा वातावरण सुरम्य हो गया। भगवान श्याम सुंदर ने अपने अधों पर बंसी रखी और गोपियों को बुलाने के लिए अर्ध रात्रि में बंसी बजाया।
निशम्य गीतं तदनंगवर्धनं
व्रजस्त्रिय: कृष्णगृहीतमानसा:।
आजग्मुरन्योन्यमलक्षितोद्यमा:
स यत्र कांतो जवलोलकुण्डला:।।4।।
भगवान ने अधर पर बंसी रखी और सुंदर स्वर ललहरी प्रकट किया। गोपांगनाओं ने जब सुना तो अपने घर के सारे कार्य को छोड़कर दौड़ पड़े। लेकिन आज जो बंसी बजी इसकी ध्वनि सबको सुनाई पड़ती थी।
इति वेणु रव राजन सर्वभूत मनोहरम
समस्त भूत को, समस्त प्राणियों को सुनाई पड़ता था और तो और जिनके कान नहीं है, उन पत्थर को भी सुनाई पड़ता था। बंसी के श्रवण से उन पत्थरों में भी परिवर्तन दिखने लगता था। वो पत्थर पिघल जाते थे। पिघल के पानी जैसे बहने लगते थे और केवल पानी जैसे बहते नहीं थे। पिघले हुए उन पत्थरों के ऊपर कमल खिल जाते थे। ये तो बड़ी कोरी कल्पना है। जो कल्पना ब्रह्मांड में असंभव हो वह भी भगवान की लीला में संभव है। क्योंकि भगवान सर्व समर्थ, इससे भी बड़ा असंभव क्या वहां असंभव शब्द भगवान की लीला में होता ही नहीं।
जब हरि मुरली नाद प्रकाशी: भगवान मुरली बजाते सचर अचर चर भय, चर अचर हो जाते और अचर सचर हो जाते, पत्थर जो हिलता नहीं है वह पिघलने लगता है, गाय, बछड़े, हिरण जो दौड़ते रहते हैं वह सब जहां थे वही रुक जाते, अचर में चरता आ जाती है और चर में अचरता आ जाती है।
पान जलज विकासी: पत्थर पर कमल खिल जाते, जमुना की धार रुक जाती, जमुना की धार जमुना का जल उस जल के एक एक परमाणु गोविंद की बंशी निनाद को सुनने के लिए ठहर जाते। कहीं मैं बह गया इस बंसी का निनाद नहीं सुन पाया, जमुना के जल में स्थिरता आ जाती, ये कृष्ण के बंशी की महिमा थी।
मैया कहते उस बंसी से कृष्ण को इतना प्रेम है। कन्हैया रात में सोते थे तो बंसी को कमर में लगाके बहाना करते। मैया को बहाना करते बोलते थे वो राधिका मेरी बंसी को चुराना चाहती है, कहीं रखूंगा, ले जाएगी, इसलिए मैं अपनी फेंट में रखूंगा। अगर वो आएगी भी चुराने के लिए, तो मुझे पता चल जाएगा।
गीता में कहा है:
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: ॥११॥
[Bhagavad Gita-Chapter-4-Verse-11]
जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूँ। जो मुझको जैसे भजता है, मैं उसको याद करता हूँ।
भगवान का लीला कुछ ही काल की थी और उस बंसी के प्रति कृष्ण का कितना प्रेम। मथुरा जाते समय भगवान ने बंसी लेकर मैया को दिया, बोले मैया इसको रख दे। मैया ने कहा इस बंसी की इतनी चिंता क्यों है। श्री कृष्ण भगवान बोले मैया मेरी बंसी खो ना जाए, हमारी बंसी को सुरक्षित रख दे।
भगवान का ऐसा समर्पित भक्त कहीं भी रहे लेकिन उसके जीवन की चाबी ठाकुर के हाथ में ही रहती है। वो भक्त कहीं भी रहेगा सुरक्षित रहेगा। भगवान मथुरा चले और वहां जाने पर भी भगवान को बार-बार बंसी की याद आती रहती है। मथुरा में पहुंच कर नंद बाबा को जब विदा करने लगे, तो नंद बाबा से भगवान कहा, बाबा मैया से जाकर के कह देना मेरी बंसी को संभाल करके रखेगी कहीं इधर उधर होने ना पावे।
वंशस्तु भगवान रुद्रः नंद बाबा ने कहा ये बंसी कौन है।
श्री कृष्ण भगवान कहते हैं, ऐसी विलक्षण बंसी भगवान शंकर है। नंद बाबा ने बोले एक बंसी कि इतनी बड़ी महिमा। श्री कृष्ण भगवान कहते हैं बजाने वाला भी विलक्षण है और बंसी भी विलक्षण है। बजाने वाले गोविंद है और बंसी भगवान शंकर है। भगवान शंकर ही बंसी बनकर के गोविंद के अधों पर विराजे हुए। कहते जो भक्त भगवान के लिए सब कुछ त्याग कर भगवान का स्मरण करता है, भगवान भी उसको बार-बार स्मरण करते रहते हैं।
कहते हैं कि इसके बाद श्रीकृष्ण ने राधा को वह बांसुरी भेंट कर दी थी और राधा ने भी निशानी के तौर पर उन्हें अपने आंगन में गिरा मोर पंख को उनके सिर पर बांध दिया था। आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांग लें, लेकिन राधा ने मना कर दिया। कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं। श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते एक दिन राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।
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