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Bhavani Ashtakam: श्री भवानी अष्टकम का उपासना, शरणागति और महत्व : दोस्तो नमस्कार, आज हम आप लोगोंको इसी पोस्ट के माध्यम से भवानी अष्टकम के बारे में बात करेंगे। जगत गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा रचित भवानी अष्टकम माँ आदिशक्ति का एक अति प्रभावशाली, शरणागति स्तोत्र है, जो माँ भवानी, शिवा, दुर्गा, जगदम्बा भवानी को समर्पित है। भवानी अष्टकम में आठ श्लोक हैं, जिसमें माता के कठोर रूप के साथ दया का भाव के बारे में वर्णन हैं। जो कोई इस स्तोत्र को पूरी भक्ति और शरणागति के साथ पढ़ता है, वह माँ भवानी शरणागतवत्सला होकर अपने भक्त को शक्ति, स्वास्थ्य, भोग, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करती हैं। तो चलिये जानते हैं भवानी अष्टकम का उपासना और महत्व :
बात अति है जगत गुरु आदि शंकराचार्य की। आदि शंकराचार्य निर्गुण-निराकार अद्वैत परब्रह्म के उपासक थे। एक कहानी के अनुसार आदि शंकराचार्य एक बार काशी आए तो वहां बीमार पड़ गये और शरीर अत्यन्त दुर्बल हो गया। उसे अत्यधिक प्यास लगी, लेकिन वह खुद पानी का गिलास नहीं उठा सकते। उस समय माता भगवती प्रकट हुई परन्तु लेकिन उनकी मदद नहीं की। जब गुरु जी ने माता से पूछा कि वह उनके इस रोग का इलाज क्यों नहीं कर रही है। तब माता भवानी ने कहा, तुमने शक्ति की उपासना की होती, तब शक्ति आती। यह सुनकर शंकराचार्यजी की आंखें खुल गयीं। इसलिए उन्होंने शक्ति की उपासना के लिए यह मनमोहक भवानी अष्टकम की रचना की।
शंकराचार्यजी के द्वारा स्थापित चार पीठ और चारों में चार शक्तिपीठ हैं। उनकी साधना भी हमें यह बात सिखाती है, यह बात केवल आदि शंकराचार्य के जीबन में आया नहीं, बो हर इंसान के जीबन में आता है। तो इसीलिये हर मानब को भक्ति के साथ-साथ शक्ति की भी उपासना करनी चाहिए। यह एक संपूर्ण विचारधारा को दर्शाता है, कि हमारे जीवन में उच्चतम आदर्शों और अधात्मिकता को प्राप्त करने के लिए, भक्ति के साथ-साथ शक्ति की प्राप्ति महत्वपूर्ण होती है। जब सब मार्ग बंद हो जाए तो उस समय माँ आदि शक्ति हर कष्ट से मुक्ति देते हैं। इसलिए मां भवानी का शरणागति स्तोत्र नित्य पाठ करना चाहिए।
Bhavani Ashtakam
Na Tato Na Mata Na Bandhu Na Data,
Na Putro Na Putree Na Bhrtyo Na Bharta.
Na Jaaya Na Vidya Na Vrttirmamaiv
Gatistvam Gatistvam Twameka Bhavani ॥ 1 ॥
Bhavaabdhaavapaare Mahaaduhkhabheeru
Papaat Prakaamee Pralobhee Pramattah.
Kusansaarapaashaprabaddhah Sadaahan
Gatistvam Gatistvam Twameka Bhavani ॥ 2 ॥
Na Jaanaami Daanan Na Ch Dhyaanayogan
Na Jaanaami Tantran Na Ch Stotramantram.
Na Jaanaami Poojaan Na Ch Nyaasayogan
Gatistvam Gatistvam Twameka Bhavani ॥ 3 ॥
Na Jaanaami Punyan Na Jaanaami Teerth
Na Jaanaami Muktin Layan Va Kadaachit.
Na Jaanaami Bhaktin Vratan Vaapi Maatar
Gatistvam Gatistvam Twameka Bhavani ॥ 4 ॥
Kukarmi, Kusangi, Kubudhi, Kudhasa,
Kulachaara Heena, Kadhachaara Leena.
Kudrushti, Kuvakya Prabandha, Sadaham,
Gathisthwam, Gathisthwam, Thwam Ekaa Bhavani ॥ 5 ॥
Prajeshan Rameshan Maheshan Sureshan
Dineshan Nisheetheshvaran Va Kadaachit.
Na Jaanaami Chaanyat Sadaahan Sharanye
Gatistvam Gatistvam Twameka Bhavani ॥ 6 ॥
Vivaade Vishaade Pramaade Pravaase
Jale Chanale Parvate Shatrumadhye.
Aranye Sharanye Sada Maan Prapaahi
Gatistvam Gatistvam Twameka Bhavani ॥ 7 ॥
Anaatho Daridro Jaraarogayukto
Mahaaksheenadeenah Sada Jaadyavaktrah.
Vipattau Pravishtah Pranashtah Sadaahan
Gatistvam Gatistvam Twameka Bhavani ॥ 8 ॥
॥ Iti Srimad Sankaracharya Krutam Bhavani Ashtakam Sampoornam ॥
श्री भवानी अष्टकम
न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ १ ॥
भवाब्धावपारे महादुःखभीरु
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः ।
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ २ ॥
न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् ।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ३ ॥
न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थ
न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित् ।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मात
र्गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ४ ॥
कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कदाचारलीनः ।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ५ ॥
प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् ।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ६ ॥
विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये ।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ७ ॥
अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः ।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ८ ॥
॥ इति श्रीमद् शंकराचार्य कृतम् (भवान्यष्टकं) भवानी अष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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