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October 5, 2025
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नवरात्रि का छठा दिन: मां कात्यायनी की आराधना – शक्ति, साहस और विजय का प्रतीक

नवरात्रि का पावन पर्व अपने छठे दिन पर पहुंच चुका है, और इस दिन भक्त मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में से छठे स्वरूप, मां कात्यायनी की भक्ति में लीन हैं। यह दिन शक्ति, साहस और विजय का प्रतीक है। ज्योतिषाचार्य डॉ. श्रीपति त्रिपाठी के अनुसार, मां कात्यायनी एक उग्र और दयालु शक्ति हैं, जो दुष्टों का नाश करती हैं और अपने भक्तों की मातृवत रक्षा करती हैं।

मां कात्यायनी का स्वरूप और महत्व

मां कात्यायनी का नाम महर्षि कात्यायन से लिया गया है, जिन्होंने कठोर तपस्या कर मां को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त किया था। यह दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि मां ने महिषासुर जैसे राक्षस का वध कर धर्म की रक्षा की थी, जिसके कारण उन्हें महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है।

मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और प्रेरणादायक है। चार भुजाओं वाली मां कमल, तलवार, अभय मुद्रा और वरद मुद्रा धारण करती हैं। सिंह पर सवार, उनकी स्वर्णिम आभा भक्तों में साहस और शक्ति का संचार करती है। इस दिन भक्त लाल या सुनहरे वस्त्र पहनकर, लाल फूलों जैसे गुड़हल और गुलाब से मां की मूर्ति को सजाकर, शहद और गुड़ से बने मिठाइयों का भोग लगाकर, और दीप जलाकर मां के मंत्रों का जाप करते हैं।

पूजा की रीतियां और मंत्र

इस दिन की पूजा में विशेष ध्यान देने योग्य बातें हैं। भक्तों को प्रातः स्नान कर शुद्ध मन से पूजा स्थल को सजाना चाहिए। मां को शहद का भोग लगाना विशेष फलदायी माना जाता है। मंत्र जाप में निम्नलिखित मंत्रों का उपयोग करें:

  • बीज मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥

  • मुख्य मंत्र: ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥

पंचोपचार पूजा (गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य) के साथ दुर्गा सप्तशती का पाठ और मां की आरती करें। इससे मां की कृपा प्राप्त होती है, जो भक्तों के जीवन से भय, नकारात्मकता और कमजोरी को दूर करती है।

मां कात्यायनी का संदेश

मां कात्यायनी न केवल पूजा की देवी हैं, बल्कि एक प्रेरणा भी हैं। वे हमें अन्याय और अधर्म के खिलाफ साहस और सत्य के साथ खड़े होने की शिक्षा देती हैं। उनकी कृपा से भक्तों का मनोबल बढ़ता है, और वे जीवन में विजय और तेजस्विता प्राप्त करते हैं। डॉ. त्रिपाठी के शब्दों में, “मां कात्यायनी की भक्ति हमें न केवल आध्यात्मिक बल देती है, बल्कि जीवन की हर चुनौती का सामना करने की शक्ति भी प्रदान करती है।”

शुभकामनाएं और मार्गदर्शन

डॉ. श्रीपति त्रिपाठी इस पावन अवसर पर सभी भक्तों को हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं और मां कात्यायनी की रक्षा और शक्ति की ऊर्जा को अपने जीवन में आत्मसात करने की सलाह देते हैं। जो भक्त ज्योतिषीय या आध्यात्मिक मार्गदर्शन चाहते हैं, वे Astro Tak के विशेषज्ञ पैनल से संपर्क कर सकते हैं।

पूजा का शुभ मुहूर्त (सामान्य दिशानिर्देश, पंचांग अनुसार समायोजित करें)

  • अभिजीत मुहूर्त: प्रातःकाल या मध्याह्न में।
  • विजय मुहूर्त: दोपहर के समय।
  • पूजा का समय: प्रातः स्नानोपरांत, सूर्योदय से पहले या सायंकाल।

आवश्यक सामग्री

  • मूर्ति या चित्र, कलश, गणेश जी की मूर्ति।
  • फूल (लाल गुड़हल या गुलाब), अक्षत, कुमकुम, चंदन, धूप, दीप, अगरबत्ती।
  • शहद (भोग के लिए), फल, मिष्टान्न, सोलह श्रृंगार सामग्री।
  • दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा, आरती की पुस्तक।
  • लाल वस्त्र, आसन।

पूजा विधि (चरणबद्ध तरीके से)

  1. कलश स्थापना और गणेश पूजन: सबसे पहले कलश की पूजा करें, जो स्वयं गणेश हैं। भगवान गणेश को फूल, अक्षत, रोली, चंदन अर्पित करें। उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत और मधु से स्नान कराएं।
  2. पूजा स्थल की सफाई: सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा घर की सफाई करें। लाल आसन बिछाएं।
  3. मां कात्यायनी का ध्यान: मां के स्वरूप का ध्यान करें – चार भुजाएं, कमल पर विराजमान, सिंह वाहन, ऊपर हाथों में कमल व तलवार, नीचे अभय और वर मुद्रा।
  4. आवाहन और आसन: मां को आमंत्रित करें (आवाहन मंत्र जपें)। आसन अर्पित करें।
  5. पंचोपचार:
    • गंध (चंदन),
    • पुष्प (लाल फूल),
    • धूप,
    • दीप,
    • नैवेद्य (शहद का भोग) अर्पित करें।
  6. अर्पण: अक्षत, कुमकुम, पुष्प, सोलह श्रृंगार (सिंदूर, बिंदी आदि) अर्पित करें। जल चढ़ाएं।
  7. पाठ और जाप: दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। मुख्य मंत्रों का जाप करें (नीचे दिए गए)। कम से कम 108 बार जाप करें।
  8. आरती: मां की आरती उतारें। घंटी-घड़ियाल बजाएं।
  9. प्रसाद वितरण: भोग के बाद प्रसाद (शहद आदि) परिवार में बांटें। व्रतधारी फलाहार करें।

भोग, रंग और फूल

  • भोग: शहद का भोग लगाएं। इससे व्यक्तित्व निखरता है और आकर्षण बढ़ता है। शहद को प्रसाद रूप में बांटें।
  • शुभ रंग: लाल (वस्त्र धारण करें)।
  • प्रिय फूल: लाल गुड़हल या गुलाब।

महर्षि कात्यायन ने कठोर तप किया कि देवी उनके घर कन्या रूप में जन्म लें। भगवान ने वरदान दिया। इसी समय महिषासुर वध के लिए देवी ने कात्यायन के घर जन्म लिया। सिंह पर सवार होकर उन्होंने महिषासुर का वध किया। इस कथा का पाठ पूजा के अंत में करें। इस विधि से पूजा करने से मां कात्यायनी की कृपा प्राप्त होती है। शुभ नवरात्रि!

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