धूल भरी सड़कों पर सूरज डूब रहा था। गाँव का मेला शांत हो चला था। लेकिन मेरे मन में तूफान उठ रहा था। सामने खड़ा था वह, जिसे मैंने कभी छोटा समझा। उसकी आँखों में वही आग थी, जो कभी अर्जुन की धनुष पर चमकती थी।
मेरा नाम रवि है। गाँव का सबसे बड़ा व्यापारी। मैंने हमेशा अपनी ताकत पर भरोसा किया। धन, रुतबा, सब मेरे पास था। लेकिन आज, उस छोटे से स्कूल के मास्टर, अखिल, ने मुझे चुनौती दी। उसने कहा, “रवि, ताकत सिर्फ धन में नहीं, मन में होती है।”
मैं हँसा। “तुम क्या जानो, मास्टर? यह दुनिया पैसे से चलती है।” लेकिन उसकी बातें मेरे मन को कुरेद गईं। उसने गाँव के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। मुफ्त में। हर शाम, वह पेड़ के नीचे बैठता। बच्चे उसकी बातें सुनते। उनकी आँखें चमकतीं। मैंने सोचा, यह सब बेकार है। लेकिन फिर, गाँव बदलने लगा।
एक दिन, गाँव में बाढ़ आई। मेरा गोदाम डूब गया। मेरा धन, मेरी ताकत, सब पानी में बह गया। मैं निराश बैठा था। तभी अखिल आया। उसने बच्चों को इकट्ठा किया। उन्होंने मिलकर गाँव वालों को बचाया। घर बनाए। खाना बाँटा। मैं देखता रह गया। यह क्या ताकत थी?
अखिल ने मुझे पास बुलाया। “रवि, महारथी वही है, जो दूसरों के लिए जिए। धन नहीं, दिल जीतने की ताकत असली है।” उसकी बात मेरे सीने में चुभ गई। मैंने देखा, बच्चे, जो कभी भूखे थे, अब मुस्कुरा रहे थे। गाँव, जो डर में था, अब एकजुट था।
मैंने फैसला किया। अपने धन का एक हिस्सा स्कूल के लिए दिया। अखिल के साथ मिलकर बच्चों को पढ़ाने लगा। हर किताब, हर बच्चे की मुस्कान, मुझे नई ताकत देती। मैं समझ गया—असली महारथी वह नहीं, जो डराए। असली महारथी वह है, जो दूसरों को उठाए।
आज का समाज भूल गया है। हम धन, पद, और शक्ति के पीछे भागते हैं। लेकिन सच्ची ताकत दूसरों के लिए जीने में है। जैसे अखिल ने गाँव को बदला, वैसे ही हमें अपने आसपास के लोगों के लिए कुछ करना होगा। एक छोटा कदम। एक छोटी मदद। यही हमें आज का महारथी बनाएगा।