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December 6, 2024
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Breathing: सांस लेने और छोड़ने की क्रिया से मन स्थिर हो जाता है, प्रणी दीर्घायु हो जाता है, व्यक्ति को दिव्य शक्ति प्राप्त होती है

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Breathing: सांस लेने और छोड़ने की क्रिया से मन स्थिर हो जाता है, प्रणी दीर्घायु हो जाता है, व्यक्ति को दिव्य शक्ति प्राप्त होती है: दोस्तों नमस्कार, आज हम इस लेख के माध्यम से सांस लेने और छोड़ने की क्रिया, और सांस लेने से हमारे मन, मस्तिष्क, सोच, विचारों, चिंता, चेतना और अंगों में रक्त संचार का क्या असर पड़ता है, इसके बारे में बात करेंगे। बात शुरू होती है आज से हजार वर्षों पहले भारत के महान ऋषि (Rishi) मुनियों ने सांस लेने और छोड़ने के ऊपर शोध करना शुरू कर दिया था। सांसो की क्रिया को अनुसंधान के बाद इनको ज्ञान हुआ कि अगर सांसो को संतुलित करे तो कोई भी मनुष्‍य दीर्घायु हो सकता है। उन्होंने नासाग्र पर नजर रखके सांसों पर पकड़ बनानाने की रहस्य बताए।

इसे देखा जाए तो मनाब सरिर में 72000 नाडी अंकुर की तारा फैलते हैं। जिनमेसे 24 प्रधान नाडी हैं। 10 अति प्रधान नाडी है। इनमेसे 3 अतिशय प्रधान नाडी है। जो बायीं नासिका से निकलती बायु है बो इड़ा नाडी अर्थात चंद्र नाड़ी, जो दाहिनी नासिका से निकलती बायु है बो पिंगला नाड़ी अर्थात सूर्य नाड़ी और जो बाएँ और दाएँ दोनों नासिका से समान बायु निकलती है बो सुषुम्ना नाड़ी है। जिस नासिका से 75% बायु निकलता है स्वर करते हैं।

चंद्र स्वर – इदा नाड़ी – वाममार्ग – गंगा – परीक्षा में लिखना समय चंद्र स्वर
सूर्य स्वर – पिंगला नाड़ी – दाहिना पक्ष – यमुना – किसी से मिलने के समय सूर्य स्वर
सुषुम्ना स्वर – सुषुम्ना नाड़ी – मध्य स्वर – सरस्वती – पढाई के समय सुषुम्ना स्वर

कौनसा दीन चन्द्र स्वर : सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार
कौनसा दीन सूर्य स्वर : शनिवार, रविवार और मंगलवार

उलम बिलम: सूर्य और चंद्र की सीदी सुसुमना को ऊपर की तरफ खींचना है

पंच तत्व से बनी हमारा शरीर के नासिका छिद्र से प्रतिक स्वर में पाँच तत्व निकलता है। जब किसी नासिका छिद्र से 16 अंगुल तक ठंडी हवा निकलती है तो बो जल तत्व है। जब बायु नासिका छिद्र से 12 अंगुल तक ना ठंडी ना गरम निकलती है, तो बो पृथ्वी तत्व है। जब बायु नासिका छिद्र से 8 अंगुल तक तिरछी निकलती है तो बो वायु तत्व है। जब बायु नासिका छिद्र से ऊपर की तरफ 4 अंगुल तक जा रही है तो बो अग्नि तत्व है। जब बायु नासिका छिद्र के अंदर ही अंदर आराही हो तो बो आकाश तत्व है।

जब संसार के सारे विज्ञान विफल हो जाते हैं, तो उसी समय स्वर विज्ञान सफलता के साथ कदम रखता है।

  • पृथ्वी तत्व में जो वि कार्य किया जाता है, तो बो पृथिवी के समान स्थिर हो जाता है। बिभाह करेंगे तो सफल होगा, बिजनेस आरंभ करेंगे तो बो सफलता मिलेगी।
  • जल तत्व में वही होगा लेकिन जल्दी लाभ होगा।
  • अग्नि तत्व में जो बिभा करेगा, प्यार करेगा, किसी को लोन दे दो, सब आपका खतम हो जाएगा।
  • वायु तत्व में दिया गे पेसा आधा ही निकलता है। इसी समय जो वी किया हुआ कार्य आधा ही होता है। सिरिफ आसवना के अलावा कुछ नहीं मिलता है। इसी के लिए जो वि कार्य करनेका निर्णय लेना है, हमें पृथ्वी तत्व में ले।
  • आकाश तत्व में सिर्फ आध्यात्मिक कार्य किया जा सकता है। जदी ऐप उसी समय सांसारिक कार्य करोगे तो सफल नहीं होगा।

यदि आप योग, प्राणायाम और ध्यान के जरिए, सांस लेने की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करते हैं, श्वास अन्दर लेने की तुलना में श्वास बाहर छोड़ने में लगभग दुगुना समय लगाये, तो हमारे अहितकर चक्र से माली दूर करने में सहज होगा। इसी तरह धीमी और गहरी सांस लेने और छोड़ने श्वसन प्रक्रिया से मन को शांत, स्थिर तथा एकाग्र बनाया जा सकता है। यदि आप सांसों की गति को नियंत्रित करके, धीमा और गहरी सांस लेने का अभ्यास करते हैं, तो इससे हृदय गति की अस्थिरता में सुधार होता है। हमारे मस्तिष्क के आकार में वृद्धि होती है। सांस लेने और छोड़ने की गति अधिक तेज हो जाती तो हमारे शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक अवरोध जन्म लेते हैं। इसलिए तन और मन दोनों में नकारात्मक विचार प्रभाव डालता है।

Right way to breath

सांस लेने का सही तरीका

श्वास लेने का यह तरीका हर बीमारी जड़ से खत्म करेगा

सांस लेने की क्रिया: एसे देखा जाये तो सांस लेने की क्रिया को (Breathing-श्वास लेना यानी पूरक) कहा जाता है। जो ऑक्सीजन को हमारे फेफड़ों के द्वारा बिभिर्न अंगों और कोशिकाओं तक पहचाता है। श्वास को अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कहते हैं। 

सांस छोड़ने की क्रिया: सांस छोड़ने की क्रिया को (Exhaling-श्वास छोड़ना यानी रेचक) कहा जाता है। जो कार्बन डाइऑक्साइड को शरीर से बाहर वातावरण में निकालने की क्रिया को प्रश्वास कहलाती है। श्वास को बाहर रोकने की क्रिया को बाहरी कुम्भक कहते हैं।

व्यक्ति दिन भर कितने बार सांस लेता छोड़ता है: आमतौर पर सामान्य व्यक्ति हर मिनट 15 बार सांस लेते और छोड़ते है। इस तरह हम पूरे दिन में लगभग 21,600 बार सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया करते है।

नोट : किसी भी बीमारी का पूर्ण उपचार के लिए इस सांस लेने और छोड़ने की क्रिया (प्राणायाम) को करने से पहले कोई योग विशेषज्ञ से सलाह जरूर ले।

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सांस लेने और छोड़ने की क्रिया से मन स्थिर हो जाता है:

ईश्वर ने सभी मनुष्य को शक्ति प्रदान किया है कि अपने उमर को बढ़ा सके। मनुष्य को सांस की विज्ञान को समझना होगा। अगर आप अपने सांस को समझ गई तो आपके शरीर में होने बाली सभी बिमारिया को सांस की माध्यम से सही किआ जा सकता है। सांसों पर पकड़ बनाने के लिए हम सुबह, दोपहर, शाम और रात को 15 मिनट प्राणायाम करने से अपने तन, मन, जीवन को स्वस्थ और सुखमय बना सकते हैं। मानसिक शांति के लिए योग, मेडिटेशन, और सकारात्मक विचारों का अभ्यास कर सकते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सही आहार, व्यायाम और पर्याप्त आराम कर सकते हैं।

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प्रणी दीर्घायु हो जाता है:

सांस स्थिर होने से मन स्थिर हो जाता है, और प्रणी दीर्घायु हो जाता है। जब हमारा मन शांत होता है, तो हमारे मस्तिष्क पर तनाव का प्रभाव कम होता है। देखा जाए तो भोजन करते समय सांस की लंबाई 16 से 17 इंच होती है। चलते समय इसकी लम्बाई 22 से 24 इंच हो जाता है। दौड़ते समय निकलने बाली स्वाश को लम्बाई 45 से 50 इंच हो जाती है। सोते समय निंद में बहार निकल ने बाली स्वाश की लंबाई 60 से 70 तक पहुंच जाती है। दोस्तो आपको नाभि तक सांस महेसस होना चाहिए। प्राचीन शास्त्र के अनुसार यदि प्राण बयु की लम्बाई आधा इंच कम हो जाए तो व्यक्ति के भीतर से काम बसवाना खत्म हो जाता है।

सांस की गति एक इंच कम होने पर आनंद की प्राप्ति होती है, और लेखन शक्ति बढ़ जाती है। दो इंच कम होने से बाक सीधी प्राप्त होती है। ढाई इंच कम होने से दूर दृष्टि प्राप्त होती है। 6 से 7 इंच कम होने से तीव्र गति से चलने की शक्ति प्राप्त होती है। बो कुछ पलो में एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहंच जाते हैं। रहस्य ए है कि शरीर के अंदर जाने बाली सांस की लम्बाई कम होती है, और बाहर जाने बाली सांस की लम्बाई जादा होती है। अगर बाहर जाने बाली प्राण बियु को कम कर दिया जाए तो लंबी उम्र को प्राप्त किया जा सकता है।

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व्यक्ति को दिव्य शक्ति प्राप्त होती है:

सांस की गति 8 इंच कम होने से साधक को अष्ट सिधिया प्राप्त होती है। राम भक्त हनुमान जी ने 8 सिधियों को प्राप्त किये थे। इसलिए इनको अष्ट सिधि नव निधि के दाता कहा जाता है। इसी आठ सिधिया हर इंसान में होती है, बस जरूरी है इसे जागृत करने की। सांस की लम्बाई 10 से 12 इंच कम होने पर बयक्ति जबतक चाये खुदको जिबित रख सकती है। मतलब इच्छा मृत्यु प्राप्त होती है। सबसे पहले सांसो पर नियंतरण करना सीखिए। रात में इड़ा और दिन में पिंगला नाड़ी रोक ने में सफल हो जाते तो, असल में आप सच्चा योगी बन सकते।

आप उस बिधि को पालन करके आपके शरीर को सही कर सकते। आपको एक स्थान पर आँखे बंद करके बैठ कर अपने स्वस को अपने सीने से नहीं नाभी से लेना है। जितनी गहरी स्वास आप ले सकते हैं उतना अच्छा है। इसी तरह आपके शरीर के हर अंग में ऑक्सीजन का लेवल बढ़ सकते है। अगर अप्प ब्रह्म मुहूर्त में करता है तो आपको दिव्य शक्ति प्राप्त होती है।

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यदि आप गुरु से दिए गए नाम रूपी दिव्यास्त्र को,
सांस रूपी तीर से,
नासाग्र रूपी धनुष पर रखके,
कोशिकाओं पर रोग सृष्टि करने बाले रावण रूपी राक्षस के ऊपर प्रहार करे,
तो धीरे-धीरे शरीर में सुधार आना शुरू हो जायेगा।

इसके पश्च्यात सोचे परमात्मा आपके सामने खड़े हैं,
आप नतमस्तक हो कर इनके चरणों में प्रणाम करते हैं।
ऐसा भाव भरो की आपकी माथे से प्रेम की गंगा जल निकालकर,
प्रभु के चारणो को धो दे रही है।
अनुभव करे परमात्मा आपकी भक्ति से प्रसन्न होकर,
आपके हृदय में आकर बैठ जाते हैं।

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