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November 21, 2024
Bhajan

अमृत ​​है हरि नाम जगत में | Amrit Hai Hari Naam Jagat Me

Credit the Video: Maithili Thakur YouTube Channel

अमृत ​​है हरि नाम जगत में | Amrit Hai Hari Naam Jagat Me: दोस्तों नमस्कार, आज हम इस लेख माध्यम से अमृत है हरि नाम जगत में बारे में बात करेंगे। जेसे सागर में जलचर जिब रहते हैं, उसितरा हम भी जहां रहते हैं बो भी एक सागर का तारा है। इसमे कोरोडो कोरोडो कण प्रभावित होते हैं, जो हमारे आंखों को दिखाइ नहीं देता है। अगर आप दिव्य दृष्टि से देखेंगे तो आपको दिखाई देगा कि हम भी एक भव सागर रूपी जल में रहते हैं। तो भगवान का पवित्र नाम ही जीवित सभी प्राणियों को इस भव सागर रूपी जल से मुक्ति का अमृत प्रदान कर सकता है। आइए, सबसे पहले हम जान लेते हैं बो पवित्र नाम:

तो अनंत नामों में मुख्य राम नाम है। उनका नामों जपने से भगवान के गुण, प्रभाव, तत्व, लीला और चरित्र की याद आती है। जो निर्गुण निराकार रूप से सब जगह रम रहे हैं, उस परमात्मा का नाम राम है। बो नाम निर्गुण ब्रह्म और सगुण राम दोनों से बड़ा है। इस प्रकार दशरथ के नंदन भगवान राम से बड़ा राम का नाम।

महामंत्र जोइ जपत महेसू।
कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥

महिमा जासु जान गनराऊ।
प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥

जो महामंत्र है, जिसे श्री शिवजी जपते हैं। जिसकी महिमा को गणेशजी जानते हैं, जो इस ‘राम’ नाम के प्रभाव से ही सबसे पहले पूजे जाते हैं। जिस अनंत, नित्यानंद और चिन्मय परमब्रह्म में योगी लोग रमण करते हैं, उसी राम-नाम से परमब्रह्म प्रतिपादित होता है। अर्थात राम नाम ही परमब्रह्म है।

शिवजी ने रामायण के तीन विभाग कर त्रिलोक में बाँट दिया। तीन लोकों को तैंतीस – तैंतीस करोड़ दिए तो एक करोड़ बच गया। उसके भी तीन टुकड़े किए तो एक लाख बच गया। उसके भी तीन टुकड़े किये तो एक हज़ार बच गया और उस एक हज़ार के भी तीन भाग किये तो सौ बच गया। उसके भी तीन भाग किए एक श्लोक बच गया।

इस प्रकार एक करोड़ श्लोकों वाली रामायण के तीन भाग करते करते एक अनुष्टुप श्लोक बचा रह गया। एक अनुष्टुप छंद के श्लोक में बत्तीस अक्षर होते हैं। उसमें दस – दस करके तीनों को दे दिए तो अंत में दो ही अक्षर बचे। भगवान् शंकर ने यह दो अक्षर रा और म आपने पास रख लिए। राम अक्षर में ही पूरी रामायण है, पूरा शास्त्र है।

राम नाम यह लोक में चिंतामणि और परलोक में भगवत्दर्शन कराने वाला है। जैसे वृक्ष में जो शक्ति है, वह बीज से ही आती है। इसी प्रकार अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा में जो शक्ति है, वह राम नाम से आती ही। राम नाम वेदों के प्राण के सामान है। शास्त्रों का और वर्णमाल का भी प्राण है। प्रणव को वेदों का प्राण माना जाता है। प्रणव तीन मात्र वाल ॐ कार पहले ही प्रगट हुआ, उससे त्रिपदा गायत्री बनी और उससे वेदत्रय। ऋक, साम और यजुः – ये तीन प्रमुख वेद बने। इस प्रकार ॐ कार (प्रणव) वेदों का प्राण है।

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राम नाम को वेदों का प्राण माना जाता है, क्योंकि राम नाम से प्रणव होता है। जैसे प्रणव से र निकाल दो तो केवल पणव हो जाएगा अर्थात ढोल हो जायेगा। ऐसे ही ॐ में से म निकाल दिया जाए तो वह शोक का वाचक हो जाएगा। प्रणव में र और ॐ में म कहना आवश्यक है। इसलिए राम नाम वेदों का प्राण भी है।

राम नाम अविनाशी है। व्यापक रूप से सर्वत्र परिपूर्ण है, सत् है, चेतन है और आनंद राशि है। उस आनंद रूप परमात्मा से कोई जगह, समय, व्यक्ति प्रकृति खाली नही, ऐसे परिपूर्ण है। ऐसे अविनाशी वह निर्गुण है। वस्तुएं नष्ट जाती है, व्यक्ति नष्ट हो जाते हैं, समय का परिवर्तन हो जाता है, देश बदल जाता है, लेकिन यह सत् ही रहता है, इसका विनाश नही होता है, इसलिए यह सत् है।

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राम नाम कि महिमा :

  • जीभ वागेन्द्रिय है, उससे राम राम जपने से उसमें इतनी अलौकिकता आ जाती है की ज्ञानेन्द्रिय और उसके आगे अंतःकरण और अन्तः कारण से आगे प्रकृति और प्रकृति से अतीत परमात्मा तत्व है, उस परमात्मा तत्व को यह नाम जाना दे ऐसी उसमें शक्ति है।
  • एक दीपक होता है, और एक मणिदीप होता है। तेल का दिया दीपक कहलाता है, मणिदीप स्वतः प्रकाशित होती है। जो मणिदीप है वह कभी बुझती नहीं है। जैसे दीपक को चौखट पर रख देने से घर के अंदर, और बाहार दोनों हिस्से प्रकाशित हो जाते हैं। वैस ही राम नाम रूपी मणिदीप को जीभ पर रखने से अंतःकरण और बाहरी आचरण दोनों प्रकाशित हो जाते हैं। इसलिए राम नाम मणिदीप है। यानी भक्ति को यदि ह्रदय में बुलाना हो तो, राम नाम का जप करो इससे भक्ति दौड़ी चली आएगी। जिन्होंने जन्मों जन्मों से युग युगांतर से पाप किये हों, उनके ऊपर राम नाम की दीप्तिमान अग्नि रख देने से सारे पाप कटित हो जाते हैं।
  • राम के दोनों अक्षर मधुर और सुन्दर हैं। मधुर का अर्थ रचना में रस मिलता हुआ और मनोहर कहने का अर्थ है की मन को अपनी ओर खींचता हुआ। राम राम कहने से मुंह में मिठास पैदा होती है। दोनों अक्षर वर्णमाल की दो आँखें हैं। राम के बिना वर्णमाला भी अंधी है।
  • जगत में सूर्य पोषण करता है, और चन्द्रना अमृत वर्षा करता है। राम नाम विमल है, जैसे सूर्य और चंद्रमा को राहु – केतु ग्रहण लगा देते हैं, लेकिन राम नाम पर कभी ग्रहण नहीं लगता है। चन्द्रमा घटा बढता रहता है, लेकिन राम तो सदैव बढता रहता है। यह सदा शुद्ध है, अतः यह निर्मल चन्द्रमा और तेजश्वी सूर्य के समान है।
  • अमृत के स्वाद और तृप्ति के सामान राम नाम है। राम कहते समय मुंह खुलता है, और कहने पर बंद होता है। जैसे भोजन करने पर मुख खुला होता है, और तृप्ति होने पर मुंह बंद होता है। इसी प्रकार रा और अमृत के स्वाद और तोष के सामान हैं।
  • छह कमलों में एक नाभि कमल चक्र है। उसकी पंखुड़ियों में भगवान के नाम है, वे भी दिखने लग जाते हैं। आँखों में जैसे सभी बाहरी ज्ञान होता है, ऐसे नाम जाप से बड़े बड़े शास्त्रों का ज्ञान हो जाता है। जिसने पढ़ाई नहीं की, शास्त्र नहीं पढ़े, उनकी वाणी में भी वेदों का ज्ञान स्वतः हो जाता है।

राम नाम निर्गुण और सगुण के बीच सुन्दर साक्षी है। यह नाम सगुण और निर्गुण दोनों के बीच का वास्तविक ज्ञान करवाने वाला, दोनों से श्रेष्ट चतुर दुभाषिया है। राम जाप से रोम रोम पवित्र हो जाता है। साधक ऐसा पवित्र हो जाता है, जो उसके दर्शन, भाषण से ही दूसरे पर असर पड़ता है। शोक और चिंता दूर होते हैं, पापों का नाश होता है। वे जहां रहते हैं, वह धाम बन जाता है। वे जहां चलते हैं, वहां का वायुमंडल पवित्र हो जाता है। परमात्मा ने अपनी पूरी पूरी शक्ति राम नाम में रख दी है। नाम जप के लिए कोई स्थान, पात्र विधि की जरुरत नही है। रात दिन राम नाम का जप करो, निषिद्ध पापाचरण आचरणों से स्वतः ग्लानी हो जायेगी। अभी अंतकरण मैला है, इसलिए मलिनता अच्छी लगती है। जीभ से राम राम शुरू कर दो, मन के शुद्ध होने पर मैली वस्तुओं कि अकांक्षा नहीं रहेगी।

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कैसे लें राम नाम : 

  • सोते समय सभी इन्द्रिय मन में, मन बुध्दि में, बुद्धि प्रकृति में अर्थात अविद्या में लीन हो जाती है। गाढ़ी नींद में जब सभी इन्द्रियां लीन होती है, उस पर भी उस व्यक्ति को पुकारा जाए तो वह अविद्या से जग जाता है।
    अंतर्मन निर्मल होने लगता है। राम नाम में अपार अपार शन्ति, आनंद और शक्ति भरी हुई है।
  • यह सुनने और स्मरण करने में सुन्दर और मधुर है। राम नाम जप करने से यह अचेतन मन में बस जाता है, उसके बाद अपने आप से राम राम जप होने लगता है, करना नहीं पड़ता है। रोम रोम उच्चारण करता है। चित्त इतना खिंच जाता है की छुडाये नहीं छुटता। 
  • भगवान शरण में आने वाले को मुक्ति देते हैं लेकिन भगवान का नाम उच्चारण मात्र से मुक्ति दे देता है। जैसे छत्र का आश्रय लेने वाल छत्रपति हो जाता है, वैसे ही राम रूपी धन जिसके पास है, वही असली धनपति है। सुगति रूपी जो सुधा है, वह सदा के लिए तृप्त करने वाली होती है। जिस लाभ के बाद में कोई लाभ नहीं बच जाता है, जहां कोई दुःख नहीं पहुँच सकता है, ऐसे महान आनंद को राम नाम प्राप्त करवाता है।
  • भगवान के नाम से समुन्द्र में पत्थर तैर गए। राम अपने भक्तों को धारण करने वाले है।

अमृत ​​है हरि नाम जगत में

Amrit Hai Hari Naam Jagat Me

अमृत है हरी नाम जगत में,
इसे छोड़ विषय रस पीना क्या
हरी नाम नहीं तो जीना क्या

काल सदा अपने रस डोले,
ना जाने कब सर चढ़ बोले।
हर का नाम जपो निसवासर,
इसमें बरस महीना क्या॥

॥ हरी नाम नहीं तो जीना क्या ॥

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तीरथ है हरी नाम हमारा,
फिर क्यूँ फिरता मारा मारा।
अंत समय हरी नाम ना आवे,
फिर काशी और मदीना क्या॥

॥ हरी नाम नहीं तो जीना क्या ॥

भूषन से सब अंग सजावे,
रसना पर हरी नाम ना लावे।
देह पड़ी रह जावे यही पर,
फिर कुंडल और नगीना क्या॥

॥ हरी नाम नहीं तो जीना क्या ॥

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