November 26, 2025
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दिल का युद्ध: गीता का श्लोक और आत्मविश्वास की ताकत

गीता श्लोक 1.10 के अर्थ और अनन्या की प्रेरणादायक कहानी के माध्यम से जानें कि कैसे आत्मविश्वास और हौसला हमें डर से जीत तक ले जा सकते हैं। पढ़ें और प्रेरित हों!

अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् |

पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ||

यह श्लोक भगवद्गीता के प्रथम अध्याय (1.10) से लिया गया है, जहाँ दुर्योधन अपने सेनापति भीष्म पितामह और पांडवों की सेना के रक्षक भीम के बल की तुलना करता है कुरुक्षेत्र युद्ध के मैदान में। दुर्योधन कहता है कि भीष्म पितामह की रक्षा करने वाली हमारी सेना अपर्याप्त (कमजोर या सीमित) लगती है, जबकि पांडवों की सेना पर्याप्त (शक्तिशाली और सक्षम) लगती है।

यह श्लोक दुर्योधन की मानसिक स्थिति को चित्रित करता है, जब वह अपनी सेना की शक्ति पर संदेह करता है और शत्रु की शक्ति को बढ़ाता है। यह भय और आत्मविश्वास की कमी का प्रतिनिधित्व करता है, जो युद्ध से पहले उसके मन में मौजूद थे। यह हमें सिखाता है कि आत्मविश्वास और शांति का महत्व है क्योंकि डर और संदेह हमें कमजोर बना सकते हैं, भले ही हमारे पास बहुत सारे साधन हों।

एक सुंदर काल्पनिक कहानी: “दिल का युद्ध”

कभी-कभी, ऐसा लगता है जैसे जिंदगी एक युद्ध का मैदान है। मेरे गाँव में, जहाँ हर सुबह सूरज की किरणें खेतों को चूमती थीं, एक लड़की रहती थी—नाम था उसका अनन्या। अनन्या का दिल इतना बड़ा था कि वह हर किसी की मदद करना चाहती थी, लेकिन उसकी आँखों में हमेशा एक अनजाना डर झलकता था। वह सोचती थी कि वह दुनिया की समस्याओं को हल करने में असमर्थ है, कि उसका बल “अपर्याप्त” है।

अनन्या एक छोटे से स्कूल में पढ़ाती थी, जहाँ बच्चे गरीब परिवारों से आते थे। वह चाहती थी कि उन बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो, लेकिन गाँव में संसाधनों की कमी थी। किताबें पुरानी थीं, स्कूल की दीवारें टूटी थीं, और शिक्षकों की कमी ने अनन्या के मन में संदेह के बादल घने कर दिए। वह सोचती, “मेरे पास तो कुछ खास नहीं है। मैं इन बच्चों के लिए क्या कर सकती हूँ? सामने वाले शहर के स्कूलों में तो इतने साधन हैं, वहाँ के शिक्षक कितने सक्षम हैं। मेरे सामने तो कुछ भी नहीं।”

एक दिन, स्कूल में एक नया बच्चा आया—राहुल। राहुल की आँखों में एक चमक थी, लेकिन उसकी जिंदगी कठिनाइयों से भरी थी। उसके पिता एक मजदूर थे, और माँ बीमार रहती थी। राहुल स्कूल में चुपचाप बैठता, लेकिन उसकी डायरी में लिखे सपने अनन्या को छू गए। उसने लिखा था, “मैं एक दिन डॉक्टर बनूँगा और अपनी माँ को ठीक करूँगा।” अनन्या ने उस डायरी को पढ़ा और उसका दिल भर आया। उस रात वह सो नहीं पाई। उसे दुर्योधन की बात याद आई—कैसे उसने अपनी सेना को कमजोर समझा और शत्रु को शक्तिशाली। लेकिन अनन्या ने ठान लिया कि वह अपने डर को जीत लेगी।

अगले दिन, उसने गाँव के कुछ लोगों को इकट्ठा किया। उसने कहा, “हमें संसाधन कम हैं, लेकिन हमारा हौसला अपर्याप्त नहीं है। अगर हम मिलकर कोशिश करें, तो ये बच्चे अपने सपनों को पंख दे सकते हैं।” गाँव वालों ने उसकी बात सुनी। कोई पुरानी किताबें लाया, किसी ने स्कूल की दीवारें रंगी, तो किसी ने बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने का वादा किया। अनन्या ने ऑनलाइन कोर्स शुरू किए, जहाँ वह बच्चों को मुफ्त में पढ़ाती थी। धीरे-धीरे, स्कूल बदलने लगा। राहुल ने अपनी पढ़ाई में मेहनत की और एक दिन, उसने स्कूल में एक छोटा सा विज्ञान मॉडल बनाया, जो गाँव के मेले में पुरस्कार जीत गया।

लेकिन असली जीत तब हुई, जब राहुल ने अनन्या को गले लगाते हुए कहा, “मैम, आपने मुझे सिखाया कि सपने देखने की ताकत किसी किताब या पैसे में नहीं, बल्कि दिल में होती है।” अनन्या की आँखों में आँसू थे। उसने महसूस किया कि उसका बल, जो उसे कमजोर लगता था, असल में अपार था।

आज के समाज के लिए संदेश:
हमारी जिंदगी में कई बार ऐसा लगता है कि हमारे पास कुछ कम है—पैसा, संसाधन, या ताकत। लेकिन गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि असली ताकत हमारे मन के विश्वास में है। अगर हम अपने डर को छोड़कर, अपने छोटे-छोटे प्रयासों को महत्व दें, तो हम वो कर सकते हैं, जो हमें असंभव लगता है। जैसे अनन्या ने अपने डर को जीता और गाँव के बच्चों के लिए उम्मीद की किरण बनी, वैसे ही हमें भी अपने भीतर की भीम जैसी शक्ति को पहचानना होगा।

आज के समय में, सोशल मीडिया पर हम अक्सर दूसरों की जिंदगी को देखकर खुद को कमतर आंकते हैं। हमें लगता है कि हमारे पास न तो उनके जैसा टैलेंट है, न ही संसाधन। लेकिन अगर एक छोटा सा कदम उठाएँ—like अनन्या ने गाँव वालों को एकजुट किया—तो हम भी बदलाव ला सकते हैं। चाहे वह अपने मोहल्ले में एक पेड़ लगाना हो, किसी जरूरतमंद की मदद करना हो, या अपने सपनों को छोटे-छोटे कदमों से पूरा करना हो। असली युद्ध बाहर नहीं, हमारे मन के भीतर है।

यह कहानी मेरे दिल से निकली है, क्योंकि मैंने भी कई बार खुद को कमजोर समझा। लेकिन जब मैंने अपने डर को छोड़ा, तो पाया कि मेरे पास भी वो ताकत है, जो दुनिया को बेहतर बना सकती है। और यही ताकत आप में भी है। बस, उसे पहचानिए, और चल पड़िए।

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