कुरुक्षेत्र का मैदान धूल से अटा पड़ा था। युद्ध की गूँज हवाओं में थी। भीष्म खड़े थे, तलवार चमक रही थी। उनके साथ कर्ण, कृप, अश्वत्थामा, विकर्ण और सौमदत्ति। सभी योद्धा, सभी शक्तिशाली। पर उनके मन में एक ही प्रश्न था। क्या यह युद्ध सही है? क्या यह धर्म है?
आज का समाज भी ऐसा ही मैदान है। हर ओर संघर्ष। लोग अपनी मान्यताओं के लिए लड़ते हैं। पर क्या हम सही लड़ाई चुन रहे हैं? कुरुक्षेत्र में भीष्म जानते थे। उनका कर्तव्य था, पर मन में संदेह था। कर्ण का गुस्सा, अश्वत्थामा की महत्वाकांक्षा, सभी के अपने कारण थे। फिर भी, वे एक साथ खड़े थे।
कल्पना करो, एक छोटा सा गाँव। नाम है सूरजपुर। यहाँ राहुल नाम का एक नौजवान रहता था। वह मेहनती था। पर गाँव में झगड़े बढ़ रहे थे। पानी की कमी थी। लोग बँट गए थे। एक समूह नदी का पानी चाहता था। दूसरा कुएँ का। राहुल दोनों पक्षों को जानता था। दोनों में अच्छे लोग थे। फिर भी, वे लड़ रहे थे।
राहुल ने सोचा, “यह युद्ध क्यों?” उसने गाँव वालों को बुलाया। एक पेड़ के नीचे सब बैठे। उसने कहा, “हम सब सूरजपुर के हैं। पानी हमारा है। इसे बाँट क्यों रहे हैं?” कुछ लोग चुप रहे। कुछ ने विरोध किया। पर राहुल ने हार नहीं मानी। उसने एक योजना बनाई। नदी और कुएँ का पानी मिलाकर बाँटा जाए। सबको हिस्सा मिले।
शुरू में लोग हँसे। “यह असंभव है,” उन्होंने कहा। पर राहुल ने कोशिश की। उसने दोनों पक्षों के बड़े-बूढ़ों को मनाया। एक नया तालाब बनाया गया। नदी और कुएँ का पानी उसमें आया। गाँव फिर हरा-भरा हुआ। लोग एक हुए।
भीष्म और उनके साथी योद्धाओं की तरह, राहुल भी एक युद्ध में था। पर उसने हथियार नहीं उठाया। उसने बातचीत चुनी। उसने समझदारी दिखाई। आज का समाज भी ऐसा ही है। हमारी लड़ाइयाँ अलग हैं। कभी जाति, कभी धर्म, कभी पैसा। पर क्या हम राहुल की तरह एक हो सकते हैं?
कुरुक्षेत्र में योद्धा अपने कर्तव्य के लिए लड़े। पर आज हमें अपने कर्तव्य को समझना होगा। लड़ना नहीं, जोड़ना होगा। पानी की तरह, जो बाँटने से बढ़ता है। समाज को एक करने की शक्ति हम में है। बस, एक कदम उठाना है।
राहुल की कहानी सिखाती है। भीष्म, कर्ण, और अन्य योद्धाओं की तरह, हमें अपने मन के संदेह को सुनना होगा। सही रास्ता चुनना होगा। क्योंकि युद्ध मैदान में नहीं, मन में जीता जाता है।