Credit the Video: Astrologer Pitamber subedi by Krishna chandra thakurji YouTube Channel
Gopi Geet
Gopya Ucchu:
Jayati Te Dhikam Janma Naa Vrajah
Srayat Indira Sasvad Atra Hi
Dayita Drsyatam Diksu Tavakas
Tvayi Dhrtasavas Tvam Vicinvate ॥ 1 ॥
Sarad-Udasaye Sadhu-Jata-Sat-
Sarasijodara-Sri-Musa Drsa
Surata-Natha Te Sulka-Dasika
Vara-Da Nighnato Neha Kim Vadhah ॥ 2 ॥
Visa-Jalapyayad Vyala-Raksasad
Varsa-Marutad Vaidyutanalat
Vrsa-Mayatmajad Visvato Bhayad
Rsabha Te Vayam Raksita Muhuh ॥ 3 ॥
Na Khalu Gopika-Nandano Bhavan
Akhila-Dehinam Antaratma-Drk
Vikhanasarthito Visva-Guptaye
Sakha Udeyivan Satvatam Kule ॥ 4 ॥
Viracitabhayam Vrsni-Dhurya Te
Caranam Iyusam Samsrter Bhayat
Kara-Saroruham Kanta Kama-Dam
Sirasi Dhehi Nah Sri-Kara-Graham ॥ 5 ॥
Vraja-Janarti-Han Vira Yositam
Nija-Jana-Smaya-Dhvamsana-Smita
Bhaja Sakhe Bhavat-Kinkarih Sma No
Jalaruhananam Caru Darsaya ॥ 6 ॥
Pranata-Dehinam Papa-Karsanam
Trna-Caranugam Sri-Niketanam
Phani-Phanarpitam Te Padambujam
Krnu Kucesu Nah Krndhi Hrc-Chayam ॥ 7 ॥
Madhuraya Gira Valgu-Vakyaya
Budha-Manojshaya Puskareksana
Vidhi-Karir Ima Vira Muhyatir
Adhara-Sidhunapyayayasva Nah ॥ 8 ॥
Tava Kathamrtam Tapta-Jivanam
Kavibhir Iditam Kalmasapaham
Sravana-Mangalam Srimad Atatam
Bhuvi Grnanti Ye Bhuri-Da Janah ॥ 9 ॥
Prahasitam Priya-Prema-Viksanam
Viharanam Ca Te Dhyana-Mangalam
Rahasi Samvido Ya Hrdi Sprsah
Kuhaka No Manah Ksobhayanti Hi ॥ 10 ॥
Calasi Yad Vrajac Carayan Pasun
Nalina-Sundaram Natha Te Padam
Sila-Trnankuraih Sidatiti Nah
Kalilatam Manah Kanta Gacchati ॥ 11 ॥
Dina-Pariksaye Nila-Kuntalair
Vanaruhananam Bibhrad Avrtam
Ghana-Rajasvalam Darsayan Muhur
Manasi Nah Smaram Vira Yacchasi ॥ 12 ॥
Pranata-Kama-Dam Padmajarcitam
Dharani-Mandanam Dhyeyam Apadi
Carana-Pankajam Santamam Ca Te
Ramana Nah Stanesv Arpayadhi-Han ॥ 13 ॥
Surata-Vardhanam Soka-Nasanam
Svarita-Venuna Susthu Cumbitam
Itara-Raga-Vismaranam Nrnam
Vitara Vira Nas Te Dharamrtam ॥ 14 ॥
Atati Yad Bhavan Ahni Kananam
Truti Yugayate Tvam Apasyatam
Kutila-Kuntalam Sri-Mukham Ca Te
Jada Udiksatam Paksma-Krd Drsam ॥ 15 ॥
Pati-Sutanvaya-Bhratr-Bandhavan
Ativilanghya Te Nty Acyutagatah
Gati-Vidas Tavodgita-Mohitah
Kitava Yositah Kas Tyajen Nisi ॥ 16 ॥
Rahasi Samvidam Hrc-Chayodayam
Prahasitananam Prema-Viksanam
Brhad-Urah Sriyo Viksya Dhama Te
Muhur Ati-Sprha Muhyate Manah ॥ 17 ॥
Vraja-Vanaukasam Vyaktir Anga Te
Vrjina-Hantry Alam Visva-Mangalam
Tyaja Manak Ca Nas Tvat-Sprhatmanam
Sva-Jana-Hrd-Rujam Yan Nisudanam ॥ 18 ॥
Yat-Te Sujata-Caranamburuham Stanesu
Bhitah Sanaih Priya Dadhimahi Karkasesu
Tenatavim Atasi Tad Vyathate Na Kim Svit
Kurpadibhir Bhramati Dhir Bhavad-Ayusam Nah ॥ 19 ॥
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गोपी गीत
गोप्य ऊचुः
जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः
श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि ।
दयित दृश्यतां दिक्षु तावका-
स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥ १॥
शरदुदाशये साधुजातस-
त्सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा ।
सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका
वरद निघ्नतो नेह किं वधः ॥ २॥
विषजलाप्ययाद्व्यालराक्षसा-
द्वर्षमारुताद्वैद्युतानलात् ।
वृषमयात्मजाद्विश्वतोभया-
दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥ ३॥
न खलु गोपिकानन्दनो भवा-
नखिलदेहिनामन्तरात्मदृक् ।
विखनसार्थितो विश्वगुप्तये
सख उदेयिवान्सात्वतां कुले ॥ ४॥
विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते
चरणमीयुषां संसृतेर्भयात् ।
करसरोरुहं कान्त कामदं
शिरसि धेहि नः श्रीकरग्रहम् ॥ ५॥
व्रजजनार्तिहन्वीर योषितां
निजजनस्मयध्वंसनस्मित ।
भज सखे भवत्किंकरीः स्म नो
जलरुहाननं चारु दर्शय ॥ ६॥
प्रणतदेहिनां पापकर्शनं
तृणचरानुगं श्रीनिकेतनम् ।
फणिफणार्पितं ते पदांबुजं
कृणु कुचेषु नः कृन्धि हृच्छयम् ॥ ७॥
मधुरया गिरा वल्गुवाक्यया
बुधमनोज्ञया पुष्करेक्षण ।
विधिकरीरिमा वीर मुह्यती-
रधरसीधुनाऽऽप्याययस्व नः ॥ ८॥
तव कथामृतं तप्तजीवनं
कविभिरीडितं कल्मषापहम् ।
श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं
भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः ॥ ९॥
प्रहसितं प्रिय प्रेमवीक्षणं
विहरणं च ते ध्यानमङ्गलम् ।
रहसि संविदो या हृदिस्पृशः
कुहक नो मनः क्षोभयन्ति हि ॥ १०॥
चलसि यद्व्रजाच्चारयन्पशून्
नलिनसुन्दरं नाथ ते पदम् ।
शिलतृणाङ्कुरैः सीदतीति नः
कलिलतां मनः कान्त गच्छति ॥ ११॥
दिनपरिक्षये नीलकुन्तलै-
र्वनरुहाननं बिभ्रदावृतम् ।
घनरजस्वलं दर्शयन्मुहु-
र्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि ॥ १२॥
प्रणतकामदं पद्मजार्चितं
धरणिमण्डनं ध्येयमापदि ।
चरणपङ्कजं शंतमं च ते
रमण नः स्तनेष्वर्पयाधिहन् ॥ १३॥
सुरतवर्धनं शोकनाशनं
स्वरितवेणुना सुष्ठु चुम्बितम् ।
इतररागविस्मारणं नृणां
वितर वीर नस्तेऽधरामृतम् ॥ १४॥
अटति यद्भवानह्नि काननं
त्रुटिर्युगायते त्वामपश्यताम् ।
कुटिलकुन्तलं श्रीमुखं च ते
जड उदीक्षतां पक्ष्मकृद्दृशाम् ॥ १५॥
पतिसुतान्वयभ्रातृबान्धवा-
नतिविलङ्घ्य तेऽन्त्यच्युतागताः ।
गतिविदस्तवोद्गीतमोहिताः
कितव योषितः कस्त्यजेन्निशि ॥ १६॥
रहसि संविदं हृच्छयोदयं
प्रहसिताननं प्रेमवीक्षणम् ।
बृहदुरः श्रियो वीक्ष्य धाम ते
मुहुरतिस्पृहा मुह्यते मनः ॥ १७॥
व्रजवनौकसां व्यक्तिरङ्ग ते
वृजिनहन्त्र्यलं विश्वमङ्गलम् ।
त्यज मनाक् च नस्त्वत्स्पृहात्मनां
स्वजनहृद्रुजां यन्निषूदनम् ॥ १८॥
यत्ते सुजातचरणाम्बुरुहं स्तनेष
भीताः शनैः प्रिय दधीमहि कर्कशेषु ।
तेनाटवीमटसि तद्व्यथते न किंस्वित्
कूर्पादिभिर्भ्रमति धीर्भवदायुषां नः ॥ १९॥
॥ इति श्रीमद्भागवत महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
दशमस्कन्धे पूर्वार्धे रासक्रीडायां गोपीगीतं नामैकत्रिंशोऽध्यायः ॥
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Gopi Geet Lyrics in Odia
ଗୋପୀଗୀତମ୍
ଗୋପ୍ୟ ଊଚୁଃ ।
ଜଯତି ତେଧିକଂ ଜନ୍ମାନ ବ୍ରଜଃ
ଶ୍ରଯତ ଇନ୍ଦିରା ଶଶ୍ୱଦତ୍ର ହି ।
ଦଯତ ଦୃଶ୍ୟରାଂ ଦିକ୍ଷୁ ତାବକା-
ସ୍ତବଯ ଧୃତାସବସ୍ତ୍ବାଂ ବିଚିନ୍ବତେ ॥ ୧ ॥
ଶରଦୁଦାଶଯେ ସାଧୁଜାତସ-
ତ୍ସରସିଜୋଦରଶ୍ରୀମୁଷା ଦୃଶା ।
ସୁରନାଥ ତେଶୁଲ୍କଦାସିକା
ବରଦ ନିଘ୍ନତୋ ନେହ କିଂ ବଧଃ ॥ ୨ ॥
ବିଷଜଲାପ୍ୟଯାଦ୍ବ୍ୟାଲରାକ୍ଷସା-
ଦ୍ବର୍ଷମାରୁତାଦ୍ବୌଦ୍ୟୁତାନଲାତ୍ ।
ବୃଷମଯାତ୍ମଜାଦ୍ବିଶ୍ବତୋଭଯା-
ଦୃଷଭ ତତେ ବଯଂ ରକ୍ଷିତା ମୁହୁଃ ॥ ୩ ॥
ନଖଲୁ ଗୋପିକାନନ୍ଦନୋ ଭବା-
ନଖିଲଦେହିନାମନ୍ତରାତ୍ମଦୃକ୍ ।
ବିଖନସାର୍ଥିତୋ ବିଶ୍ବଗୁପ୍ତଯେ
ସଖ ଉଦେଯବାନ୍ସାତ୍ବତାଂ କୁଲେ ॥ ୪ ॥
ବିରଚିତାଭଯଂବୃଷ୍ଣିଧୁର୍ଯ ତେ
ଚରଣମୀଯୁଷାଂ ସଂସୃତେର୍ଭଯାତ୍ ।
କରସରୋରୁହଂ କାନ୍ତ କାମଦଂ
ଶିରସି ଧେହି ନଃ ଶ୍ରୀକରଗ୍ରହମ୍ ॥ ୫ ॥
ବ୍ରଜଜନାର୍ତିହନ୍ବୀର ଯୋଷିତାଂ
ନିଜଜନସ୍ମଯଧ୍ବଂସନସ୍ମିତ ।
ଭଜ ସଖେ ଭବତ୍କିଂକରୀଃ ସ୍ମ ନୋ
ଜଲରୁହାନନଂ ଚାରୁ ଦର୍ଶଯ ॥ ୬ ॥
ପ୍ରଣତଦେହିନାଂ ପାପକର୍ଶନଂ
ତୃଣଚରାନିଗଂ ଶ୍ରୀନିକେତନମ୍ ।
ଫଣିଫଣାର୍ପିତଂ ତେ ପଦାଂବୁଜଂ
କୃଣୁ କୁଚେଷୁ ନଃ କୃନ୍ଧି ହୃଚ୍ଛଯମ୍ ॥ ୭ ॥
ମଧୁରଯା ଗିରା ବଲ୍ଗୁବାକ୍ୟଯା
ବୁଧମନୋଜ୍ଞଯା ପୁଷ୍କରେକ୍ଷଣ ।
ବିଧକରୀରିମା ବୀର ମୁହ୍ୟତୀ-
ରଧରସୀଧୁବାପ୍ୟାଯଯସ୍ବ ନଃ ॥ ୮ ॥
ତବ କଥାମୃତଂ ତପ୍ତଜୀବନଂ
କବିଭୋରୀଡିତଂ କଲ୍ମଷାପହମ୍
ଶ୍ରବଣମଙ୍ଗଲଂ ଶ୍ରୀମଦାତତଂ
ଭୁବ ଗୃଣନ୍ତି ତେ ଭୂରିଦା ଜନାଃ ॥ ୯ ॥
ପ୍ରହସିତଂ ପ୍ରିଯ ପ୍ରେମବୀକ୍ଷଣଂ
ବିହରଣଂଚ ତେ ଧ୍ୟାନମଙ୍ଗଲମ୍ ।
ରହସି ସଂବିଦୋ ଯା ହୃଦିସ୍ପୃଶଃ
କୁହକ ନୋ ମନଃ କ୍ଷୋଭଯନ୍ତି ହି ॥ ୧୦ ॥
ଚଲସି ଯଦ୍ବ୍ରଜାଚ୍ଚାରଯନ୍ପଶୂନ୍
ନଲିନସୁନ୍ଦରଂ ନାଥ ତେ ପଦମ୍ ।
ଶିଲତୃଣାଙ୍କୁରୈଃ ସୀଦତୀତି ନଃ
କଲିକତାଂ ମନଃ କାନ୍ତ ଗଚ୍ଛତି ॥ ୧୧ ॥
ଦିନପରିକ୍ଷେଯ ନୀଲକୁନ୍ତଲୈ-
ର୍ବନରୁହାନନଂ ବିଭ୍ରଦାବୃତମ୍ ।
ଘନରଜସ୍ବଲଂ ଦର୍ଶଯନ୍ମୁହୁ-
ର୍ମନସି ନଃ ସ୍ମରଂ ବୀର ଯଚ୍ଛସି ॥ ୧୨ ॥
ପ୍ରଣତକାମଦଂ ପଦ୍ମଜାର୍ଚିତଂ
ଧରଣିମଣ୍ଡନଂ ଧ୍ୟେଯମାପଦି ।
ଚରଣପଙ୍କଜଂ ଶଂତମଂ ଚ ତେ
ରମଣ ନଃ ସ୍ତନେଷ୍ବର୍ପଯାଧିହନ୍ ॥ ୧୩ ॥
ସୁରତବର୍ଧନଂ ଶୋକନାଶନଂ
ସ୍ବରିତବେଣୁନା ସୁଷ୍ଠୁ ଚୁମ୍ବିତମ୍ ।
ଇତରରାଗବିସ୍ମାରଣଂ ନୃଣାଂ
ବିତର ବୀର ନସ୍ତେଧରାମୃତମ୍ ॥ ୧୪ ॥
ଅଟତି ଯଭବାନହ୍ନି କାନନଂ
ତ୍ରୁଟିର୍ଯୁଗାଯ ତେ ତ୍ବାମପଶ୍ୟତାମ୍ ।
କୁଟିଲକୁନ୍ତଲଂ ଶ୍ରୀମୁଖଂ ଚ ତେ
ଜଡ ଉଦୀକ୍ଷତାଂ ପକ୍ଷ୍ମକୃଦ୍ଦଶାମ୍ ॥ ୧୫ ॥
ପତିସୁତାନବଯଭ୍ରାତୃବାନ୍ଧବା-
ନତିବିଲଘ୍ୟଂ ତେନ୍ତ୍ୟଚ୍ୟୁତାଗତାଃ ।
ଗତିବିଦସ୍ତବୋଦ୍ଗୀତ ମୋହିତାଃ
କିତବ ଯୋଷିତଃ କସ୍ତ୍ୟଜେନ୍ନିଶି ॥ ୧୬ ॥
ରହସି ସଂବିଦଂ ହୃଚ୍ଛଯୋଦଯଂ
ପ୍ରହସିତାନନଂ ପ୍ରେମବୀକ୍ଷଣମ୍ ।
ବୃହଦୁରଃ ଶ୍ରିଯୋ ବୀକ୍ଷ୍ୟ ଧାମ ତେ
ମୁହୁରତିସ୍ପୃହା ମୁହ୍ୟତେ ମନଃ ॥ ୧୭ ॥
ବ୍ରଜବନୌକସାଂ ବୂକ୍ତିରଙ୍ଗ ତେ
ବୃଜିନହନ୍ତ୍ର୍ୟଲଂ ବିଶ୍ବମଙ୍ଗଲମ୍ ।
ତ୍ୟଜ ମନାକ୍ ଚ ନସ୍ତବତ୍ସ୍ପୃହାତ୍ମନାଂ
ସ୍ବଜନହୃଦ୍ରୁଜାଂ ଯନ୍ନିଷୂଦନମ୍ ॥ ୧୮ ॥
ଯତ୍ତେ ସିଜାତଚରଣାମ୍ବୁରୁହଂ ସ୍ତନେଷ
ଭୀତାଃ ଶନୈଃ ପ୍ରିଯ ଦଧୀମହି କର୍କଶେଷୁ ।
ତେନାଟବୀମଟସି ତଦ୍ୱୟଥତେ ନ କିଂସ୍ବିତ୍
କୂର୍ପାଦୋଭିର୍ଭ୍ରମତି ଧୀର୍ଭବଦାଯୁଷାଂ ନଃ ॥ ୧୯ ॥
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