November 8, 2025
Chalisa

Shiv Chalisa | शिव चालीसा

Credit the Video: Bhakti Bhajan Mantra by Manjeera Ganguly YouTube Channel

Shiv Chalisa | शिव चालीसा: दोस्तों नमस्कार, आज हम आप लोगों को इस पोस्ट के माध्यम से शिव चालीसा के बारे में बताएँगे। शिव चालीसा का पाठ कल्याणकारी माना गया है। इसमें भगवान शिव को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए पाठ किया जाता है। जिसकी रचना संत अयोध्यादास जी ने की थी। जिसमें आप शिव चालीसा की 40 चौपाइयों का जाप करके भगवान शिव को अपनी समस्या बता सकते हो।

Shiv Chalisa

॥ Doha ॥

Jai Ganesh Girija Suvan,
Mangal Mul Sujan
Kahat Ayodhya Das Tum
Dev Abhaya Varadan

॥ Chaupai ॥

Jai Girija Pati Dinadayala
Sada Karat Santan Pratipala
Bhala Chandrama Sohat Nike
Kanan Kundal Nag Phani Ke

Anga Gaur Shira Ganga Bahaye
Mundamala Tan Chhara Lagaye
Vastra Khala Baghambar Sohain
Chhavi Ko Dekha Naga Muni Mohain

Maina Matu Ki Havai Dulari
Vama Anga Sohat Chhavi Nyari
Kara Trishul Sohat Chhavi Bhari
Karat Sada Shatrun Chhayakari

Nandi Ganesh Sohain Tahan Kaise
Sagar Madhya Kamal Hain Jaise
Kartik Shyam Aur Ganarauo
Ya Chhavi Ko Kahi Jata Na Kauo

Devan Jabahi Jaya Pukara
Tabahi Dukha Prabhu Apa Nivara
Kiya Upadrav Tarak Bhari
Devan Sab Mili Tumahi Juhari

Turata Shadanana Apa Pathayau
Lava-Ni-Mesh Mahan Mari Girayau
Apa Jalandhara Asura Sanhara
Suyash Tumhara Vidit Sansara

Tripurasur Sana Yudha Machai
Sabhi Kripakar Lina Bachai
Kiya Tapahin Bhagiratha Bhari
Purva Pratigya Tasu Purari

Danin Mahan Tum Sama Koi Nahin
Sevak Astuti Karat Sadahin
Veda Nam Mahima Tab Gai
Akatha Anandi Bhed Nahin Pai

Prakati Udadhi Mantan Men Jvala
Jarae Sura-Sur Bhaye Vihala
Kinha Daya Tahan Kari Sarayee
Nilakantha Tab Nam Kahai

Pujan Ramchandra Jab Kinha
Jiti Ke Lanka Vibhishan Dinhi
Sahas Kamal Men Ho Rahe Dhari
Kinha Pariksha Tabahin Purari

Ek Kamal Prabhu Rakheu Joi
Kushal-Nain Pujan Chaha Soi
Kathin Bhakti Dekhi Prabhu Shankar
Bhaye Prasanna Diye-Ichchhit Var

Jai Jai Jai Anant Avinashi
Karat Kripa Sabake Ghat Vasi
Dushta Sakal Nit Mohin Satavai
Bhramat Rahe Mohin Chain Na Avai

Trahi-Trahi Main Nath Pukaro
Yahi Avasar Mohi Ana Ubaro
Lai Trishul Shatrun Ko Maro
Sankat Se Mohin Ana Ubaro

Mata Pita Bhrata Sab Hoi
Sankat Men Puchhat Nahin Koi
Svami Ek Hai Asha Tumhari
Ava Harahu Aba Sankat Bhari

Dhan Nirdhan Ko Deta Sadahe
Jo Koi Janche So Phal Pahin
Astuti Kehi Vidhi Karai Tumhari
Kshamahu Nath Aba Chuka Hamari

Shankar Ho Sankat Ke Nishan
Vighna Vinashan Mangal Karan
Yogi Yati Muni Dhyan Lagavan
Sharad Narad Shisha Navavain

Namo Namo Jai Namah Shivaya
Sura Brahmadik Par Na Paya
Jo Yah Patha Karai Man Lai
Tapar Hota Hai Shambhu Sahai

Riniyan Jo Koi Ho Adhikari
Patha Karai So Pavan Hari
Putra-hin Ichchha Kar Koi
Nischaya Shiva Prasad Tehi Hoi

Pandit Trayodashi Ko Lavai
Dhyan-Purvak Homa Karavai
Trayodashi Vrat Kare Hamesha
Tan Nahin Take Rahe Kalesha

Dhupa Dipa Naivedya Charhavai
Shankar Sanmukh Paath Sunave
Janam Janam Ke Paap Nasave
Anta Vasa Shivapur Men Pavai
Kahai Ayodhya Asha Tumhari,
Jani Sakal Dukha Harahu Hamari

॥ Doha ॥

Nitya Nema Kari Pratahi
Patha Karau Chalis
Tum Meri Man Kamana
Purna Karahu Jagadish

॥ Om Namah Shivaya ॥

शिव चालीसा

॥ दोहा ॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

॥ चौपाई ॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देखि नाग मन मोहे ॥

मैना मातु की हवे दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद माहि महिमा तुम गाई । अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला । जरत सुरासुर भए विहाला ॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट ते मोहि आन उबारो ॥

मात-पिता भ्राता सब होई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु मम संकट भारी ॥

धन निर्धन को देत सदा हीं । जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । शारद नारद शीश नवावैं ॥

नमो नमो जय नमः शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई । ता पर होत है शम्भु सहाई ॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा । ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥ दोहा ॥

नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसिर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।
स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥

ଶିବ ଚାଳିଶା

ଦୋହା

ଜୟ ଗଣେଶ ଗିରିଜାସୁବନ, ମଂଗଲ ମୂଲ ସୁଜାନ ।
କହତ ଅୟୋଧ୍ୟାଦାସ ତୁମ, ଦେଉ ଅଭୟ ବରଦାନ ॥

ଜୟ ଗିରିଜାପତି ଦୀନଦୟାଲା । ସଦା କରତ ସନ୍ତନ ପ୍ରତିପାଲା ॥
ଭାଲ ଚନ୍ଦ୍ରମା ସୋହତ ନୀକେ । କାନନ କୁଣ୍ଡଲ ନାଗ ଫନୀ କେ ॥

ଅଂଗ ଗୌର ଶିର ଗଂଗ ବହାୟେ । ମୁଣ୍ଡମାଲ ତନ କ୍ଷାର ଲଗାୟେ ॥
ବସ୍ତ୍ର ଖାଲ ବାଘମ୍ବର ସୋହେ । ଛବି କୋ ଦେଖି ନାଗ ମନ ମୋହେ ॥

ମୈନା ମାତୁ କି ହବେ ଦୁଲାରୀ । ବାମ ଅଂଗ ସୋହତ ଛବି ନ୍ୟାରୀ ॥
କର ତ୍ରିଶୂଲ ସୋହତ ଛବି ଭାରୀ । କରତ ସଦା ଶତ୍ରୁନ କ୍ଷୟକାରୀ ॥

ନଂଦୀ ଗଣେଶ ସୋହୈଂ ତହଂ କୈସେ । ସାଗର ମଧ୍ୟ କମଲ ହୈଂ ଜୈସେ ॥
କାର୍ତିକ ଶ୍ୟାମ ଔର ଗଣରାଊ । ଯା ଛବି କୌ କହି ଜାତ ନ କାଊ ॥

ଦେବନ ଜବହୀଂ ଜାୟ ପୁକାରା । ତବହିଂ ଦୁଖ ପ୍ରଭୁ ଆପ ନିବାରା ॥
କିୟା ଉପଦ୍ରବ ତାରକ ଭାରୀ । ଦେବନ ସବ ମିଲି ତୁମହିଂ ଜୁହାରୀ ॥

ତୁରତ ଷଡାନନ ଆପ ପଠାୟୌ । ଲବ ନିମେଷ ମହଂ ମାରି ଗିରାୟୌ ॥
ଆପ ଜଲଂଧର ଅସୁର ସଂହାରା । ସୁୟଶ ତୁମ୍ହାର ବିଦିତ ସଂସାରା ॥

ତ୍ରିପୁରାସୁର ସନ ଯୁଦ୍ଧ ମଚାଈ । ତବହିଂ କୃପା କର ଲୀନ ବଚାଈ ॥
କିୟା ତପହିଂ ଭାଗୀରଥ ଭାରୀ । ପୁରବ ପ୍ରତିଜ୍ଞା ତାସୁ ପୁରାରୀ ॥

ଦାନିନ ମହଂ ତୁମ ସମ କୋଉ ନାହୀଂ । ସେବକ ସ୍ତୁତି କରତ ସଦାହୀଂ ॥
ବେଦ ମାହି ମହିମା ତୁମ ଗାଈ । ଅକଥ ଅନାଦି ଭେଦ ନହୀଂ ପାଈ ॥

ପ୍ରକଟେ ଉଦଧି ମଂଥନ ମେଂ ଜ୍ୱାଲା । ଜରତ ସୁରାସୁର ଭଏ ବିହାଲା ॥
କୀନ୍ହ ଦୟା ତହଂ କରୀ ସହାଈ । ନୀଲକଂଠ ତବ ନାମ କହାଈ ॥

ପୂଜନ ରାମଚଂଦ୍ର ଜବ କୀନ୍ହାଂ । ଜୀତ କେ ଲଂକ ବିଭୀଷଣ ଦୀନ୍ହା ॥
ସହସ କମଲ ମେଂ ହୋ ରହେ ଧାରୀ । କୀନ୍ହ ପରୀକ୍ଷା ତବହିଂ ତ୍ରିପୁରାରୀ ॥

ଏକ କମଲ ପ୍ରଭୁ ରାଖେଉ ଜୋଈ । କମଲ ନୟନ ପୂଜନ ଚହଂ ସୋଈ ॥
କଠିନ ଭକ୍ତି ଦେଖୀ ପ୍ରଭୁ ଶଂକର । ଭୟେ ପ୍ରସନ୍ନ ଦିଏ ଇଚ୍ଛିତ ବର ॥

ଜୟ ଜୟ ଜୟ ଅନଂତ ଅବିନାଶୀ । କରତ କୃପା ସବକେ ଘଟ ବାସୀ ॥
ଦୁଷ୍ଟ ସକଲ ନିତ ମୋହି ସତାବୈଂ । ଭ୍ରମତ ରହୌଂ ମୋହେ ଚୈନ ନ ଆବୈଂ ॥

ତ୍ରାହି ତ୍ରାହି ମୈଂ ନାଥ ପୁକାରୋ । ଯହ ଅବସର ମୋହି ଆନ ଉବାରୋ ॥
ଲେ ତ୍ରିଶୂଲ ଶତ୍ରୁନ କୋ ମାରୋ । ସଂକଟ ସେ ମୋହିଂ ଆନ ଉବାରୋ ॥

ମାତ ପିତା ଭ୍ରାତା ସବ କୋଈ । ସଂକଟ ମେଂ ପୂଛତ ନହିଂ କୋଈ ॥
ସ୍ୱାମୀ ଏକ ହୈ ଆସ ତୁମ୍ହାରୀ । ଆୟ ହରହୁ ମମ ସଂକଟ ଭାରୀ ॥

ଧନ ନିର୍ଧନ କୋ ଦେତ ସଦା ହୀ । ଜୋ କୋଈ ଜାଂଚେ ସୋ ଫଲ ପାହୀଂ ॥
ଅସ୍ତୁତି କେହି ବିଧି କରୋଂ ତୁମ୍ହାରୀ । କ୍ଷମହୁ ନାଥ ଅବ ଚୂକ ହମାରୀ ॥

ଶଂକର ହୋ ସଂକଟ କେ ନାଶନ । ମଂଗଲ କାରଣ ବିଘ୍ନ ବିନାଶନ ॥
ଯୋଗୀ ଯତି ମୁନି ଧ୍ୟାନ ଲଗାବୈଂ । ଶାରଦ ନାରଦ ଶୀଶ ନବାବୈଂ ॥

ନମୋ ନମୋ ଜୟ ନମଃ ଶିବାୟ । ସୁର ବ୍ରହ୍ମାଦିକ ପାର ନ ପାୟ ॥
ଜୋ ଯହ ପାଠ କରେ ମନ ଲାଈ । ତା ପର ହୋତ ହୈଂ ଶମ୍ଭୁ ସହାଈ ॥

ରନିୟାଂ ଜୋ କୋଈ ହୋ ଅଧିକାରୀ । ପାଠ କରେ ସୋ ପାବନ ହାରୀ ॥
ପୁତ୍ର ହୋନ କୀ ଇଚ୍ଛା ଜୋଈ । ନିଶ୍ଚୟ ଶିବ ପ୍ରସାଦ ତେହି ହୋଈ ॥

ପଣ୍ଡିତ ତ୍ରୟୋଦଶୀ କୋ ଲାବେ । ଧ୍ୟାନ ପୂର୍ୱକ ହୋମ କରାବେ ॥
ତ୍ରୟୋଦଶୀ ବ୍ରତ କରୈ ହମେଶା । ତନ ନହିଂ ତାକେ ରହୈ କଲେଶା ॥

ଧୂପ ଦୀପ ନୈବେଦ୍ୟ ଚଢ଼ାବେ । ଶଂକର ସମ୍ମୁଖ ପାଠ ସୁନାବେ ॥
ଜନ୍ମ ଜନ୍ମ କେ ପାପ ନସାବେ । ଅନ୍ତ ଧାମ ଶିବପୁର ମେଂ ପାବେ ॥

କହୈଂ ଅୟୋଧ୍ୟାଦାସ ଆସ ତୁମ୍ହାରୀ । ଜାନି ସକଲ ଦୁଖ ହରହୁ ହମାରୀ ॥

ଦୋହା

ନିତ ନେମ ଉଠି ପ୍ରାତଃହୀ ପାଠ କରୋ ଚାଲୀସ ।
ତୁମ ମେରୀ ମନକାମନା ପୂର୍ଣ କରୋ ଜଗଦୀଶ ॥

॥ ଓଁ ନମଃ ଶିବାୟ ॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

अर्थ – हे गिरजा-पुत्र अर्थात पार्वती के नंदन श्री गणेश, आप ही समस्त शुभता और बुद्धि का कारण हो। अतः आपकी जय हो। अयोध्यादास जी प्रार्थना करते हैं कि आप ऐसा वरदान दें कि सभी भय दूर हो जाए।

जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥

अर्थ – हे पार्वती ( गिरिजा) के पति, आप सबसे दयालु हो, आपकी जय हो, आप हमेशा साधु-संतों की रक्षा करते हो।

भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥

अर्थ – आप त्रिशूल रखते हो और मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित हैं, आपने कानो में नागफनी के समान कुण्डल पहन रखे हो।

अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥

अर्थ – आपका रंग श्वेत हैं, आपकी जटाओं से गंगा नदी बहती हैं, आपने गले में राक्षसों के सिरो की माला पहन रखी हैं और शरीर पर चिताओं की भस्म लगा रखी है।

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥

अर्थ – आपने बाघ की खाल को वस्त्र के रूप में पहना हुआ हैं, आपके रूप को देखकर साँपो भी आकर्षित हो जाते हैं।

मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

अर्थ – मैना की दुलारी अर्थात् उनकी पुत्री पार्वती भी आपकी पत्नी के रूप में पूजनीय हैं, उनकी छवि भी मन को सुख देने वाली हैं।

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

अर्थ – हाथों में त्रिशूल आपकी छवि को ओर भी शोभायमान बनाता है। क्योंकि उससे सदैव शत्रुओं का विनाश होता हैं।

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥

अर्थ – आपके पास में आपकी सवारी नंदी व पुत्र गणेश इस तरह दिखाई दे रहे है जैसे कि समुंद्र के मध्य में दो कमल खिल रहे हो।

कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥

अर्थ – कार्तिकेय और अन्य गणों की उपस्थिति से आपकी छवि ऐसी बनती है कि कोई उनका बखान नहीं कर सकता।

देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥

अर्थ – जब कभी भी देवताओं ने संकट के समय में आपको पुकारा हैं, आपने सदैव उनके संकटों का निवारण किया हैं।

किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

अर्थ – जब ताड़कासुर नामक राक्षस ने देवताओं पर अत्यधिक अत्याचार किये तब सभी देवतागण उससे छुटकारा पाने के लिए आपकी शरण में चले आये।

तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥

अर्थ – देवताओं के आग्रह पर आपने तुरंत अपने बड़े पुत्र कार्तिक ( षडानन) को वहां भेजा और उन्होंने बिना देरी किये उस पापी राक्षस का वध कर दिया।

आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥

अर्थ – आपने जलंधर नामक राक्षस का संहार किया जिस कारण आपका यश संपूर्ण विश्व में व्याप्त हुआ।

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥

अर्थ – त्रिपुरासुर नामक राक्षस से भी आप ही ने युद्ध कर उसका वध किया और आपकी कृपा से ही देवताओं के मान की रक्षा हुई।

किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

अर्थ- जब भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया तब आपने ही अपनी जटाओं से गंगा के प्रवाह को अपनी जटाओं में समाहित कर लिया।

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥

अर्थ – आपके समान दानदाता इस संसार में कोई नही हैं, भक्तगण हमेशा आपकी स्तुति करते रहते हैं।

वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥

अर्थ – समस्त वेद भी आपकी महिमा का बखान करते हैं लेकिन आप रहस्य हैं, इसलिए आपका भेद कोई भी नही जान पाया हैं।

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥

अर्थ – समुद्र मंथन के दौरान विष का घड़ा निकलने पर देवता और असुर भय से कांपने लगे थे।

कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

अर्थ – तब आपने सभी पर दया कर उस विष को कंठ में धारण कर लिया, और उसी समय से आपका नाम “नीलकंठ” पड़ गया।

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥

अर्थ – लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व श्रीराम ने तमिलनाडु के रामेश्वरम में आपकी पूजा की थी और उसके बाद उन्होंने लंका पर विजय प्राप्त कर विभीषण को वहां का राजा बनाया था।

सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥

अर्थ – जब श्रीराम आपकी पूजा-अर्चना कर रहे थे और आपको कमल के पुष्प अर्पित कर रहे थे, तब आपने उनकी परीक्षा लेनी चाही।

एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥

अर्थ – आपने उन कमल पुष्पों में से एक कमल का पुष्प छुपा दिया, तब श्रीराम ने अपने नेत्र रूपी कमल से आपकी पूजा शुरू की।

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

अर्थ – श्रीराम की ऐसी कठोर भक्ति को देखकर आप अत्यधिक प्रसन्न हुए और आपने उन्हें मनचाहा वरदान दिया।

जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥

अर्थ – हे भोलेनाथ ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो, आपका कोई आदि-अंत नही हैं, आपका विनाश नही किया जा सकता हैं, आप सभी के ऊपर अपनी कृपा दृष्टि ऐसे ही बनाये रखो।

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥

अर्थ – बुरे विचार हमेशा मेरे मन को कष्ट पहुंचाते हैं और जिससे मेरा मन हमेशा भ्रमित रहता है और मुझे क्षणमात्र भी चैन नहीं मिलता।

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥

अर्थ – इस संकट की स्थिति में मैं आपका ही नाम पुकारता हूँ, इस संकट के समय आप ही मेरा उद्धार कर सकते हैं।

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥

अर्थ – आप अपने त्रिशूल से मेरे शत्रुओं का नाश कर दो और मुझे संकट से बहार निकालो।

मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥

अर्थ – माता, पिता, भाई आदि सभी सुख के ही साथी हैं, लेकिन संकट आने पर हमे कोई नही पूछता।

स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥

अर्थ – इसलिए हे भोलेनाथ ! मुझे केवल आप से ही आशा हैं कि आप आकर मेरे संकटों का निवारण करेंगे।

धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥

अर्थ – आप हमेशा निर्धन व्यक्तियों को धन देकर उनकी आर्थिक समस्या को दूर करते हैं, जो कोई आपकी जैसी भक्ति करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है।

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

अर्थ – आपकी पूजा करने की विधि क्या है, इसके बारे में हमे कम ज्ञान हैं, इसलिए यदि हमसे किसी प्रकार की कोई भूल हो जाये तो कृपया करके हमारी भूल को माफ़ कर दे।

शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥

अर्थ – हे भगवान शंकर, आप ही सभी संकटों का नाश करने वाले हो , आप ही सभी का मंगल करने वाले हो, आप ही विघ्नों का नाश करने वाले हो।

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥

अर्थ – सभी योगी-मुनि आपका ही ध्यान करते हैं और नारद व माँ सरस्वती आपके सामने अपना शीश नवाते हैं।

नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥

अर्थ – आपका ध्यान करने का मूल मंत्र “ऊं नमः शिवाय“ है। इस मंत्र का जाप करके भी सभी देवता और भगवान ब्रह्मा भी पार नही पा सकते हैं।

जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥

अर्थ – जो भी भक्त सच्चे मन से इस शिव चालीसा का पाठ कर लेते हैं उन पर भोलेनाथ की कृपा अवश्य होती हैं।

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥

अर्थ – जो भी भक्त शिव चालीसा का पाठ करता हैं वह सभी प्रकार के ऋणों से मुक्त हो जाता हैं और वह तनाव मुक्त महसूस करता है।

पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥

अर्थ – यदि किसी दम्पति को संतान प्राप्ति नही हो रही हैं, तो निश्चय ही शिव की कृपा से उसे पुत्र की प्राप्ति होगी।

पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

अर्थ – प्रत्येक माह की त्रयोदशी के दिन अपने घर में पंडित को बुलाकर शिव चालीसा का पाठ व हवन करवाना चाहिए।

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥

अर्थ – जो भी भक्त त्रयोदशी के दिन आपका व्रत करता हैं, उसका तन हमेशा निरोगी रहता हैं।

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥

अर्थ – भगवान शिव को पूजा में धूप, दीप व नैवेद्य चढ़ाना चाहिए और उनके सम्मुख बैठकर शिव चालीसा का पाठ सुनाना चाहिए।

जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥

अर्थ -शिव चालीसा का पाठ करके जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे शिव जी के शिवपुर धाम में शरण मिलती हैं।

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥

अर्थ – अयोध्यादास आपके सामने यह आस लगाकर विनती करता हैं कि आप मेरे सभी दुखों का निवारण कर दे।

॥दोहा॥

नित्त नेम कर प्रातः ही,पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,पूर्ण करो जगदीश ॥

अर्थ – रोजाना प्रातःकाल शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए। साथ ही भगवान शिव से अपनी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने की अर्जी लगाना चाहिए।

मगसर छठि हेमन्त ॠतु,संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,पूर्ण कीन कल्याण ॥

अर्थ – माघ मास की छठी तिथि को हेमंत ऋतु में संवत चौसठ में इस शिव चालीसा के लेखन कार्य पूर्ण हुआ।

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