Adya Stotram | Kali Vandana | आद्या स्तोत्रम् | ଆଦ୍ୟା ସ୍ତୋତ୍ରମ୍: दोस्तों नमस्कार, आज हम आपको इस लेख के जरिए आद्या स्तोत्रम् के बारे में बात करेंगे। आद्या स्तोत्र, ब्रह्म-यामल तंत्र (Brahma-Yamala Tantra) नामक एक प्राचीन आगम ग्रंथ के भगवान ब्रह्मा और नारद के बीच संवाद के रूप में प्रकट हुआ है। माँ आदि शक्ति, मातृ स्वरूपा, सर्व कल्याण दायिनी, वात्सल्यमयी समय-समय पर अनेक रूपों में प्रकट होती रहती हैं। जो असीमित चेतना शक्ति सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, चर- अचर में व्याप्त है। आद्या माँ को प्रकृति की मूल और सर्वोच्च शक्ति, देवी काली के रूप में की जाती है। यह स्तोत्र माता आद्या शक्ति की विभिन्न रूपों और अवतारों का वर्णन करती है। अनेक सोलह उत्तम स्वरूप, दुर्गा, नारायणी, ईशानी, विष्णुमाया, शिवा, सती, नित्या, सत्या, भगवती, वणी, सर्व मंगला, अम्बिका, वैष्णवी, गौरी, पार्वती और सनातनी। सृष्टि के आदि में श्रीकृष्ण ने गोलोक में सर्वप्रथम देवी के इन स्वरूपों की अर्चना की। इसके बाद ब्रह्म ने मधुकैटभ से भयभीत होकर और बाद में तीसरे त्रिपुर से प्रेरित होकर त्रिपुरारी-शिव ने उनकी पूजा की। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से सभी प्रकार के भय, रोग और संकटों से मुक्ति मिलती है। जीवन में सुख, मुक्ति, भक्ति, आध्यात्मिक उन्नति और सफलता प्रदान करता है, और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है। ब्रह्म यामल तंत्र में उल्लिखित, ब्रह्मा यामल से उद्भूत यह प्राचीन स्तोत्र, यह जिसमें कुल 20 श्लोक हैं, ब्रह्मांड की आद्य शक्ति आद्या माँ के आशीर्वाद का आवाहन करता है। यह भगवान ब्रह्मा तथा उनके मानसपुत्र महर्षि नारद के बीच हुए दिव्य संवाद का अंग है। कहा जाता है कि यह स्तोत्र स्वयं आद्य महाशक्ति ने अन्नदात ठाकुर को स्वप्न में उपदेश रूप में प्रदान किया था। पूर्वी भाग में दक्षिणेश्वर स्थित आद्यपीठ में आद्य देवी विराजमान हैं। श्रद्धा और भक्ति के साथ, हम इस पवित्र स्तोत्र का जप सनातन आद्य शक्ति — दिव्य माँ को एक विनम्र अर्पण के रूप में करते हैं।
आद्या स्तोत्रम्
ॐ नम आद्यायै।
श्रृणु वत्स प्रवक्ष्यामि आद्यास्तोत्रं महाफलम्।
यः पठेत् सततं भक्त्या स एव विष्णुवल्लभः ॥ १॥
मृत्युर्व्याधिभयं तस्य नास्ति किंचित् कलौ युगे।
अपुत्रा लभते पुत्रं त्रिपक्षं श्रवणं यदि ॥ २॥
द्वौ मासौ बन्धनान्मुक्ति विप्रवक्त्रात् श्रुतं यदि।
मृतवत्सा जीववत्सा षण्मासं श्रवणं यदि ॥ ३॥
नौकायां संकटे युद्धे पठनाज्जयमाप्नुयात्।
लिखित्वा स्थापयेद् गेहे नाग्निचौरभयं क्वचित् ॥ ४॥
राजस्थाने जयी नित्यं प्रसन्नाः सर्वदेवताः।
ॐ ह्रीं ब्रह्माणी ब्रह्मलोके च वैकुण्ठे सर्वमंगला ॥ ५॥
इन्द्राणी अमरावत्यामम्बिका वरुणालये।
यमालये कालरूपा कुबेरभवने शुभा ॥ ६॥
महानन्दा अग्निकोणे च वायव्यां मृगवाहिनी।
नैऋत्यां रक्तदन्ता च ऐशान्यां शूलधारिणी ॥ ७॥
पाताले वैष्णवीरूपा सिंहले देवमोहिनी।
सुरसा च मणिद्वीपे लङ्कायां भद्रकालिका ॥ ८॥
रामेश्वरी सेतुबन्धे विमला पुरुषोत्तमे।
विरजा औड्रदेशे च कामाक्ष्या नीलपर्वते ॥ ९॥
कालिका बंगदेशे च अयोध्यायां महेश्वरी।
वाराणस्यामन्नपूर्णा गयाक्षेत्रे गयेश्वरी ॥ १०॥
कुरुक्षेत्रे भद्रकाली ब्रजे कात्यायनी परा।
द्वारकायां महामाया मथुरायां माहेश्वरी ॥ ११॥
क्षुधा त्वं सर्वभूतानां बेला त्वं सागरस्य च।
नवमी शुक्लपक्षस्य कृष्णैकादशी परा ॥ १२॥
दक्षसा दुहिता देवी दक्षयज्ञविनाशिनी।
रामस्य जानकी त्वं हि रावणध्वंसकारिणी ॥ १३॥
चण्डमुण्डवधे देवी रक्तबीजविनाशिनी।
निशुम्भशुम्भमथिनी मधुकैटभघातिनी ॥ १४॥
विष्णुभक्तिप्रदा दुर्गा सुखदा मोक्षदा सदा।
आद्यास्तवमिमं पुण्यं यः पठेत् सततं नरः ॥ १५॥
सर्वज्वरभयं न स्यात् सर्वव्याधिविनाशनम्।
कोटितीर्थफलं तस्य लभते नात्र संशयः ॥ १६॥
जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः।
नारायणी शीर्षदेशे सर्वाङ्गे सिंहवाहिनी ॥ १७॥
शिवदूती उग्रचण्डा प्रत्यङ्गे परमेश्वरी।
विशालाक्षी महामाया कौमारी शङ्खिनी शिवा ॥ १८॥
चक्रिणी जयधात्री च रणमत्ता रणप्रिया।
दुर्गा जयन्ती काली च भद्रकाली महोदरी ॥ १९॥
नारसिंही च वाराही सिद्धिदात्री सुखप्रदा।
भयंकरि महारौद्री महाभयविनाशिनी ॥ २०॥
इति ब्रह्मयामले ब्रह्मनारदसंवादे आद्यास्तोत्रं समाप्तम्।
॥ ॐ नम आद्यायै ॐ नम आद्यायै ॐ नम आद्यायै ॥
Adya Stotram: Kali Vandana
ଆଦ୍ୟା ସ୍ତୋତ୍ରମ୍
ଓଁ ନମ ଆଦ୍ୟାୟୈ ।
ଶୃଣୁ ବତ୍ସ ପ୍ରବକ୍ଷ୍ୟାମି ଆଦ୍ୟାସ୍ତୋତ୍ରଂ ମହାଫଳମ୍ ।
ଯଃ ପଠେତ୍ ସତତଂ ଭକ୍ତ୍ୟା ସ ଏବ ବିଷ୍ଣୁବଲ୍ଲଭଃ ॥ ୧ ॥
ମୃତ୍ୟୁର୍ବ୍ୟାଧିଭୟଂ ତସ୍ୟ ନାସ୍ତି କିଞ୍ଚିତ୍ କଲୌ ଯୁଗେ ।
ଅପୁତ୍ରା ଲଭତେ ପୁତ୍ରଂ ତ୍ରିପକ୍ଷଂ ଶ୍ରବଣଂ ଯଦି ॥ ୨ ॥
ଦ୍ୱୌ ମାସୌ ବନ୍ଧନାନ୍ମୁକ୍ତି ବିପ୍ରବକ୍ତ୍ରାତ୍ ଶ୍ରୁତଂ ଯଦି ।
ମୃତବତ୍ସା ଜୀବବତ୍ସା ଷଣ୍ମାସଂ ଶ୍ରବଣଂ ଯଦି ॥ ୩ ॥
ନୌକାୟାଂ ସଙ୍କଟେ ଯୁଦ୍ଧେ ପଠନାଜ୍ଜୟମାପ୍ନୁୟାତ୍ ।
ଲିଖିତ୍ୱା ସ୍ଥାପୟେଦ୍ଗେହେ ନାଗ୍ନିଚୌରଭୟଂ କ୍ୱଚିତ୍ ॥ ୪ ॥
ରାଜସ୍ଥାନେ ଜୟୀ ନିତ୍ୟଂ ପ୍ରସନ୍ନାଃ ସର୍ୱଦେବତାଃ ।
ଓଁ ହ୍ରୀଂ ବ୍ରହ୍ମାଣୀ ବ୍ରହ୍ମଲୋକେ ଚ ବୈକୁଣ୍ଠେ ସର୍ୱମଙ୍ଗଳା ॥ ୫ ॥
ଇନ୍ଦ୍ରାଣୀ ଅମରାବତ୍ୟାମମ୍ବିକା ବରୁଣାଲୟେ ।
ଯମାଲୟେ କାଲରୂପା କୁବେରଭବନେ ଶୁଭା ॥ ୬ ॥
ମହାନନ୍ଦାଗ୍ନିକୋଣେ ଚ ବାୟବ୍ୟାଂ ମୃଗବାହିନୀ ।
ନୈଋତ୍ୟାଂ ରକ୍ତଦନ୍ତା ଚ ଐଶାନ୍ୟାଂ ଶୂଳଧାରିଣୀ ॥ ୭ ॥
ପାତାଳେ ବୈଷ୍ଣବୀରୂପା ସିଂହଳେ ଦେବମୋହିନୀ ।
ସୁରସା ଚ ମଣିଦ୍ୱୀପେ ଲଙ୍କାୟାଂ ଭଦ୍ରକାଳିକା ॥ ୮ ॥
ରାମେଶ୍ୱରୀ ସେତୁବନ୍ଧେ ବିମଳା ପୁରୁଷୋତ୍ତମେ ।
ବିରଜା ଔଡ୍ରଦେଶେ ଚ କାମାକ୍ଷ୍ୟା ନୀଳପର୍ବତେ ॥ ୯ ॥
କାଳିକା ବଙ୍ଗଦେଶେ ଚ ଅୟୋଧ୍ୟାୟାଂ ମହେଶ୍ୱରୀ ।
ବାରାଣସ୍ୟାମନ୍ନପୂର୍ଣା ଗୟାକ୍ଷେତ୍ରେ ଗୟେଶ୍ୱରୀ ॥ ୧୦ ॥
କୁରୁକ୍ଷେତ୍ରେ ଭଦ୍ରକାଳୀ ବ୍ରଜେ କାତ୍ୟାୟନୀ ପରା ।
ଦ୍ୱାରକାୟାଂ ମହାମାୟା ମଥୁରାୟାଂ ମାହେଶ୍ୱରୀ ॥ ୧୧ ॥
କ୍ଷୁଧା ତ୍ୱଂ ସର୍ୱଭୂତାନାଂ ବେଳା ତ୍ୱଂ ସାଗରସ୍ୟ ଚ ।
ନବମୀ ଶୁକ୍ଲପକ୍ଷସ୍ୟ କୃଷ୍ଣୈକାଦଶୀ ପରା ॥ ୧୨ ॥
ଦକ୍ଷସା ଦୁହିତା ଦେବୀ ଦକ୍ଷଯଜ୍ଞବିନାଶିନୀ ।
ରାମସ୍ୟ ଜାନକୀ ତ୍ୱଂ ହି ରାବଣଧ୍ୱଂସକାରିଣୀ ॥ ୧୩ ॥
ଚଣ୍ଡମୁଣ୍ଡବଧେ ଦେବୀ ରକ୍ତବୀଜବିନାଶିନୀ ।
ନିଶୁମ୍ଭଶୁମ୍ଭମଥିନୀ ମଧୁକୈଟଭଘାତିନୀ ॥ ୧୪ ॥
ବିଷ୍ଣୁଭକ୍ତିପ୍ରଦା ଦୁର୍ଗା ସୁଖଦା ମୋକ୍ଷଦା ସଦା ।
ଆଦ୍ୟାସ୍ତବମିମଂ ପୁଣ୍ୟଂ ଯଃ ପଠେତ୍ ସତତଂ ନରଃ ॥ ୧୫ ॥
ସର୍ୱଜ୍ୱରଭୟଂ ନ ସ୍ୟାତ୍ ସର୍ୱବ୍ୟାଧିବିନାଶନମ୍ ।
କୋଟିତୀର୍ଥଫଳଂ ତସ୍ୟ ଲଭତେ ନାତ୍ର ସଂଶୟଃ ॥ ୧୬ ॥
ଜୟା ମେ ଚାଗ୍ରତଃ ପାତୁ ବିଜୟା ପାତୁ ପୃଷ୍ଠତଃ ।
ନାରାୟଣୀ ଶୀର୍ଷଦେଶେ ସର୍ୱାଙ୍ଗେ ସିଂହବାହିନୀ ॥ ୧୭ ॥
ଶିବଦୂତୀ ଉଗ୍ରଚଣ୍ଡା ପ୍ରତ୍ୟଙ୍ଗେ ପରମେଶ୍ୱରୀ ।
ବିଶାଲାକ୍ଷୀ ମହାମାୟା କୌମାରୀ ଶଙ୍ଖିନୀ ଶିବା ॥ ୧୮ ॥
ଚକ୍ରିଣୀ ଜୟଧାତ୍ରୀ ଚ ରଣମତ୍ତା ରଣପ୍ରିୟା ।
ଦୁର୍ଗା ଜୟନ୍ତୀ କାଳୀ ଚ ଭଦ୍ରକାଳୀ ମହୋଦରୀ ॥ ୧୯ ॥
ନାରସିଂହୀ ଚ ବାରାହୀ ସିଦ୍ଧିଦାତ୍ରୀ ସୁଖପ୍ରଦା ।
ଭୟଙ୍କରୀ ମହାରୌଦ୍ରୀ ମହାଭୟବିନାଶିନୀ ॥ ୨୦ ॥
ଇତି ବ୍ରହ୍ମୟାମଲେ ବ୍ରହ୍ମନାରଦସଂବାଦେ ଆଦ୍ୟାସ୍ତୋତ୍ରଂ ସମାପ୍ତମ୍ ॥
Credit the Video: Swar Mandir YouTube Channel
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