वृंदावन के शांत घाटों पर, जहाँ यमुना की लहरें भगवान की लीला गुनगुनाती हैं, वहाँ एक ऐसी आध्यात्मिक दुनिया बसती है जहाँ शब्दों की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। श्री हित राधा केली कुंज, वराह घाट पर, परम पूज्य वृंदावन रसिक संत श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज – प्यार से जिन्हें महाराज जी कहते हैं – अपने शिष्यों से बातें करते हैं, लेकिन वो बातें होंठों से नहीं, आँखों की चमक से होती हैं।
एक मुस्कान, एक नज़र… बस इतना ही। आज जब मैं यहाँ आया, तो मेरा दिल भी ठहर सा गया। लगता है, जैसे माँ राधा स्वयं फुसफुसा रही हों – “बेटा , प्रेम की भाषा चुप्पी में छिपी है।” एक भक्त , नोएडा से आए देवी प्रसाद पांडे जी, ने अपना दिल खोलकर पूछा, “महाराज जी, जब आप अपने गुरुदेव से मिलते हैं, तो लोग कम ही देखते हैं कि आप बातें कर रहे होते हैं। बस एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा देते हैं। ये क्या तकनीक है? इसे कैसे सीखें?” महाराज जी की आँखों में एक दिव्य ज्योति चमकी। वो मुस्कुराए, जैसे कोई पुरानी याद ताज़ा हो गई हो। “जब हृदय प्रेम से भर जाता है, तो शब्द बेकार हो जाते हैं, ” उन्होंने धीरे से कहा।
प्रेम तो चेहरे पर, आँखों में झलकता है। हर कोशिका से वो बहता है। “मैं तुमसे प्यार करता हूँ” जैसे शब्द अक्सर दुनिया की चाहत से निकलते हैं, सच्चा प्रेम तो बिना बोले ही दिख जाता है – एक नज़र में, एक चुप्पी में । मेरे मन में सवाल घूमने लगा। महाराज जी ने बताया, सालों से उनके और गुरुदेव के बीच ऐसी बातें कम हुई हैं। लेकिन वो चुप्पी ? वो तो समंदर सा गहरा है। “जब गुरुदेव मुस्कुराते हैं, तो जीवन पूरा हो जाता है। मानो सबसे बड़ा सम्मान मिल गया, “
महाराज जी की आवाज़ में वो भाव था, जो शब्दों से परे था। कभी-कभी गुरुदेव जिज्ञासा पर कृपा बरसाते। जैसे, जब महाराज जी ने “सेवक वाणी” का अर्थ पूछा, तो गुरुदेव ने कहा, “पास रहो – समझ खुद चली आएगी।”
सूरज की धूप में बैठो, तो रोशनी माँगने की ज़रूरत नहीं। गुरु की संगति में अज्ञान भाग जाता है, बिना कुछ कहे। दशकों की सेवा ने महाराज जी को निखारा। ब्रज की परिक्रमा पर गुरुदेव के साथ चलना, उनकी शिक्षाओं को डायरी में उतारना, सात्विक भोजन ग्रहण करना – सब कुछ सादगी से। गुरुदेव की चुप्पी भरी ज़िंदगी ने सिखाया कि ज्ञान शब्दों से नहीं, निकटता से आता है।
उनका स्पर्श, उनकी देखभाल, रोज़मर्रा की दिनचर्या – ये सब आशीर्वाद हैं। आज यह मिलन मुझे छू गया। सच्ची “तकनीक” तो यही है – सच्ची मुस्कान, दयालु नज़रें, विनम्र सेवा। महाराज जी की ये बातें याद आती हैं तो आँखें नम हो जाती हैं। वृंदावन सिखाता है कभी-कभी सबसे गहरी बातें चुप्पी में होती हैं सबसे बड़ा प्रेम बस एक-दूसरे को मुस्कुराकर कह देना है। राधे-राधे… ये शब्द अब मेरे दिल की धड़कन बन गए हैं।