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Pratah Smaran and Mangala Charan | प्रातः स्मरण एवं मंगलाचरण : Shri Pratah Smaran Mangla Charan Stotra will force it to forget about everything.
Pratah Smaran and Mangala Charan
Shree Govardhannath paad yugalam, haiyangvina priyam I
Nityam Shree Mathuradhipam sukhkaram, Shree Vithalesham muda, II
Shreemad Dwaravatigokulpati , Shree Gokulendum vibhum, I
Shree Manmanmathmohanam natvaram , Shree Bal Krushnam bhajet. II
Shrimad vallabh vittalo giridharam govindraya midham I
Shrimad balak Krishna gokulpati nath raghunaam tatha II
Evam shri yadunayakam kil ghanshyamch tadv shajan I
Kalindin sva gurum girim guru vibhum swiyat prabhuchya smaret II
Chinta santaan hantaro, yad-pad-ambuj renahva
Swiyanam tan-nijacharyan, pranamami muhur-muhur II 1 II
Yadanugrahato jantuhu sarvadhukhatigo bhavet
Tamaham sarvadavande Shrimad Vallabhanandanam II 2 II
Agyantimirandhasya Gyananjanshalakya
Chakshurunmilitam yen tasmai Shri Guruve Namah II 3 II
Namani hridaye sheshe leelakshirabdhi shayinam
Lakshmi-sahasra leelabhi sevyamanam kalanidhim II 4 II
Chaturbhishch, Chaturbhishch, Chaturbhishch, tribhistatha
Shadbhir virajte yosao panchdha hridaye mama II 5 II
II Iti Sree Mangalcharan Sampurna II
प्रातः स्मरण एवं मंगलाचरण
श्री गोवर्धन नाथ पाद युगलम हे यंगवीन प्रियं ।
नित्यं श्री मधुराधिपं सुखकरं श्री विट्ठलेशं मुदा ॥
श्रीमदद्वारवतीश गोकुल पति श्री गोकुलेन्दुं विभुं ।
श्री मन मन्मथ मोहनं नटवरं श्री बालकृष्णं भजे ॥
श्रीमद वल्लभ विट्ठ्लो गिरिधरं गोविन्दराया मिधम ।
श्रीमद बालकृष्ण गोकुलपति नाथं रघुणाम तथा ॥
एवं श्री यदुनायकं किल घनश्यामं च तद् वंशजान् ।
कालिन्दिन स्व गुरुं गिरिं गुरु विभुं स्वीयत प्रभुश्च स्मरेत ॥
चिन्ता सन्तान हन्तारो यत्पादांबुज रेणवः।
स्वीयानां तान्निजार्यान प्रणमामि मुहुर्मुहुः ॥ १ ॥
यदनुग्रहतो जन्तुः सर्व दुःखतिगो भवेत ।
तमहं सर्वदा वंदे श्री मद वल्लभ नन्दनम ॥ २ ॥
अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानान्जनशलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवै नमः ॥ ३ ॥
नमामि हृदये शेषे लीलाक्षीराब्धिशायिनम ।
लक्ष्मी सहस्त्रलीलाभिः सेव्यमानं कलानिधिम ॥ ४ ॥
चतुर्भिश्च चतुर्भिश्च चतुर्भिश्च त्रिभिस्तथा ।
षडभिर्विराजते योSसौ पंचधा हृदये ममः ॥ ५ ॥
॥ इति श्री मंगलाचरण संपूर्णम ॥
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