कुरुक्षेत्र की धूल भरी धरती। युद्ध की गंध हवा में। दुर्योधन का स्वर गूंजता है। “हमारे पास विशिष्ट नायक हैं,” वह कहता है। उसकी आवाज में गर्व। लेकिन भीतर डर। आज का समाज भी ऐसा ही है। हम गर्व करते हैं। अपनी उपलब्धियों पर। अपनी ताकत पर। लेकिन क्या यह गर्व हमें कमजोर करता है?
मैंने यह कहानी लिखी है। मन भारी है। समाज को देखता हूँ। हर कोई अपनी ताकत गिनाता है। लेकिन सच्चाई छिप जाती है। यह कहानी आज के लिए है। आइए, सुनिए।
कहानी: गर्व का पतन
नगर में रोहन रहता था। युवा। महत्वाकांक्षी। एक स्टार्टअप का मालिक। उसकी कंपनी चमक रही थी। निवेशक तारीफ करते। कर्मचारी उसका सम्मान करते। रोहन को लगता, वह अजेय है। “मेरे पास सबसे तेज दिमाग है,” वह दोस्तों से कहता। “मेरी टीम बेमिसाल है।” उसका गर्व आसमान छूता।
एक दिन, एक नया प्रोजेक्ट आया। बड़ा सौदा। रोहन ने ठान लिया। “यह मेरा मौका है। दुनिया मेरे नाम को जानेगी।” उसने अपनी टीम को बुलाया। “हमारे पास सर्वश्रेष्ठ लोग हैं। यह प्रोजेक्ट हमारा है।” उसकी आवाज में दुर्योधन की गूंज थी। गर्व। आत्मविश्वास। लेकिन कुछ कमी थी।
टीम ने काम शुरू किया। रोहन ने हर निर्णय खुद लिया। “मुझे सब पता है,” वह कहता। सलाह को ठुकराया। कर्मचारियों की बात अनसुनी की। एक जूनियर कर्मचारी, श्याम, ने चेतावनी दी। “सर, यह तकनीक पुरानी है। हमें नया तरीका अपनाना चाहिए।” रोहन हँसा। “तुम क्या जानो, श्याम? मैंने बाजार को जीता है।” श्याम चुप हो गया।
दिन बीते। प्रोजेक्ट लटकने लगा। समय कम था। निवेशकों का दबाव बढ़ा। रोहन घबराया। उसने कर्मचारियों पर चिल्लाना शुरू किया। “तुम लोग निकम्मे हो!” वह गुस्से में बोला। लेकिन गलती उसकी थी। उसने सलाह नहीं मानी। उसका गर्व आड़े आया।
आखिरी दिन। प्रोजेक्ट फेल हो गया। निवेशक पीछे हटे। कंपनी का नाम डूबा। रोहन अकेला बैठा। उसका गर्व टूट चुका था। आँखों में आंसू। मन में सवाल। “मैंने क्या गलती की?” तभी श्याम आया। “सर, गर्व अच्छा है। लेकिन सलाह सुनना जरूरी है। हम सब एक हैं।”
रोहन ने सिर झुकाया। उसे दुर्योधन याद आया। उसका गर्व। उसकी सेना। फिर भी हार। रोहन ने श्याम से कहा, “तुम सही थे। मैंने गलती की।” उसने फैसला किया। अब वह सुनकर काम करेगा। गर्व को छोड़ेगा।
आज के समाज के लिए संदेश
हमारा समाज गर्व से भरा है। सोशल मीडिया पर तस्वीरें। उपलब्धियों की गिनती। “मैं सबसे बेहतर हूँ,” हर कोई कहता है। लेकिन गर्व हमें अंधा करता है। हम दूसरों की बात नहीं सुनते। उदाहरण लीजिए। एक स्टूडेंट, जो अपनी डिग्री पर गर्व करता है। वह अपने दोस्तों की सलाह ठुकराता है। नौकरी नहीं मिलती। गर्व टूटता है। अगर वह सुनता, तो शायद जीतता।
रोहन की तरह, हमें गर्व छोड़ना होगा। दूसरों का सम्मान करना होगा। दुर्योधन ने अपनी सेना की ताकत गिनाई। लेकिन हार गया। क्यों? क्योंकि उसने सलाह को नजरअंदाज किया। आज हमें एक-दूसरे की सुनना होगा। चाहे वह ऑफिस हो। घर हो। या समाज। गर्व हमें ऊँचा ले जाता है। लेकिन सलाह हमें बचाती है।
मेरा मन हल्का हुआ। यह कहानी लिखी। लगा, कुछ कहना जरूरी था। आज का समाज तेज है। लेकिन रुककर सुनना भूल गया है। अगर हम सुनें। सम्मान करें। तो जीतेंगे। जैसे पांडवों ने। गीता का यह श्लोक यही कहता है। गर्व करो। लेकिन अंधा गर्व नहीं। सच्चा नेतृत्व वही, जो सुनता है। जो सीखता है।