December 3, 2025
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Shiv Chalisa with Meaning | शिव चालीसा

Shiv Chalisa with Meaning

Shiv Chalisa with Meaning | शिव चालीसा: दोस्तों नमस्कार, आज हम आप लोगों को इस पोस्ट के माध्यम से शिव चालीसा के बारे में बताएँगे। भगवान शिव की 40 छंदों वाली यह शिव चालीसा, जो उनके गुणों, महिमा और कृपा का वर्णन करती है। शिवजी को प्रसन्न करने के लिए, उनके आशीर्वाद से सुख-शांति, समृद्धि और साहस पाने के लिए यह चालीसा पाठ किया जाता है। इस चालीसा का नियमित पाठ करने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं, इच्छाएं पूरी होती हैं, और अंत में शिवलोक की प्राप्ति होती है।

ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय

शिव शंभू सम्मानित शंकर ओमकार गूंजे हृदयम
महा महान महिम महेश्वर नव नव शरणम हे हरदम
शव शंभू सम्मानित शंकर ओमकार गंजे हृदयम
महा महान महिम महेश्वर नम नम चरणम हे हरदम

हरम हरम हर हरम हरम हर हरम हरम हर हर
हरम हरम हर हरम हरम हर हरम हरम हर हर

हर हर शंकर जय जय शंकर सांब शिवा सांब शिवा
शंभो शंकर मृत्युंजय हर सदाशिवा महा शिवा
टजन मंडित तांडव पंडित भंडन भीम विभो
ढम ढम ढम रुक नाद समुद गत वर्णम नाय प्रभो

हर हर शंकर जय जय शंकर सांब शिवा सांब शिवा
शंभो शंकर मृत्युंजय हर सदाशिवा महा शिवा
नग जन मंडित तांडव पंडित भंडर भीम विभो
ढम ढम ढम रुक नाद समुद गत वर्णम नाय प्रभो

शिव चालीसा

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

अर्थ – हे गिरजा-पुत्र अर्थात पार्वती के नंदन श्री गणेश, आप ही समस्त शुभता और बुद्धि का कारण हो। अतः आपकी जय हो। अयोध्यादास जी प्रार्थना करते हैं कि आप ऐसा वरदान दें कि सभी भय दूर हो जाए।

जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥

अर्थ – हे पार्वती ( गिरिजा) के पति, आप सबसे दयालु हो, आपकी जय हो, आप हमेशा साधु-संतों की रक्षा करते हो।

भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के ॥

अर्थ – आप त्रिशूल रखते हो और मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित हैं, आपने कानो में नागफनी के समान कुण्डल पहन रखे हो।

अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥

अर्थ – आपका रंग श्वेत हैं, आपकी जटाओं से गंगा नदी बहती हैं, आपने गले में राक्षसों के सिरो की माला पहन रखी हैं और शरीर पर चिताओं की भस्म लगा रखी है।

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देखि नाग मन मोहे ॥

अर्थ – आपने बाघ की खाल को वस्त्र के रूप में पहना हुआ हैं, आपके रूप को देखकर साँपो भी आकर्षित हो जाते हैं।

मैना मातु की हवे दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

अर्थ – मैना की दुलारी अर्थात् उनकी पुत्री पार्वती भी आपकी पत्नी के रूप में पूजनीय हैं, उनकी छवि भी मन को सुख देने वाली हैं।

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

अर्थ – हाथों में त्रिशूल आपकी छवि को ओर भी शोभायमान बनाता है। क्योंकि उससे सदैव शत्रुओं का विनाश होता हैं।

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥

अर्थ – आपके पास में आपकी सवारी नंदी व पुत्र गणेश इस तरह दिखाई दे रहे है जैसे कि समुंद्र के मध्य में दो कमल खिल रहे हो।

कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥

अर्थ – कार्तिकेय और अन्य गणों की उपस्थिति से आपकी छवि ऐसी बनती है कि कोई उनका बखान नहीं कर सकता।

देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥

अर्थ – जब कभी भी देवताओं ने संकट के समय में आपको पुकारा हैं, आपने सदैव उनके संकटों का निवारण किया हैं।

किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

अर्थ – जब ताड़कासुर नामक राक्षस ने देवताओं पर अत्यधिक अत्याचार किये तब सभी देवतागण उससे छुटकारा पाने के लिए आपकी शरण में चले आये।

तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥

अर्थ – देवताओं के आग्रह पर आपने तुरंत अपने बड़े पुत्र कार्तिक ( षडानन) को वहां भेजा और उन्होंने बिना देरी किये उस पापी राक्षस का वध कर दिया।

आप जलंधर असुर संहारा । सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥

अर्थ – आपने जलंधर नामक राक्षस का संहार किया जिस कारण आपका यश संपूर्ण विश्व में व्याप्त हुआ।

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥

अर्थ – त्रिपुरासुर नामक राक्षस से भी आप ही ने युद्ध कर उसका वध किया और आपकी कृपा से ही देवताओं के मान की रक्षा हुई।

किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

अर्थ- जब भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया तब आपने ही अपनी जटाओं से गंगा के प्रवाह को अपनी जटाओं में समाहित कर लिया।

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥

अर्थ – आपके समान दानदाता इस संसार में कोई नही हैं, भक्तगण हमेशा आपकी स्तुति करते रहते हैं।

वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥

अर्थ – समस्त वेद भी आपकी महिमा का बखान करते हैं लेकिन आप रहस्य हैं, इसलिए आपका भेद कोई भी नही जान पाया हैं।

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला । जरत सुरासुर भए विहाला ॥

अर्थ – समुद्र मंथन के दौरान विष का घड़ा निकलने पर देवता और असुर भय से कांपने लगे थे।

कीन्ही दया तहं करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

अर्थ – तब आपने सभी पर दया कर उस विष को कंठ में धारण कर लिया, और उसी समय से आपका नाम “नीलकंठ” पड़ गया।

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥

अर्थ – लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व श्रीराम ने तमिलनाडु के रामेश्वरम में आपकी पूजा की थी और उसके बाद उन्होंने लंका पर विजय प्राप्त कर विभीषण को वहां का राजा बनाया था।

सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥

अर्थ – जब श्रीराम आपकी पूजा-अर्चना कर रहे थे और आपको कमल के पुष्प अर्पित कर रहे थे, तब आपने उनकी परीक्षा लेनी चाही।

एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥

अर्थ – आपने उन कमल पुष्पों में से एक कमल का पुष्प छुपा दिया, तब श्रीराम ने अपने नेत्र रूपी कमल से आपकी पूजा शुरू की।

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

अर्थ – श्रीराम की ऐसी कठोर भक्ति को देखकर आप अत्यधिक प्रसन्न हुए और आपने उन्हें मनचाहा वरदान दिया।

जय जय जय अनन्त अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥

अर्थ – हे भोलेनाथ ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो, आपका कोई आदि-अंत नही हैं, आपका विनाश नही किया जा सकता हैं, आप सभी के ऊपर अपनी कृपा दृष्टि ऐसे ही बनाये रखो।

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥

अर्थ – बुरे विचार हमेशा मेरे मन को कष्ट पहुंचाते हैं और जिससे मेरा मन हमेशा भ्रमित रहता है और मुझे क्षणमात्र भी चैन नहीं मिलता।

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥

अर्थ – इस संकट की स्थिति में मैं आपका ही नाम पुकारता हूँ, इस संकट के समय आप ही मेरा उद्धार कर सकते हैं।

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहि आन उबारो ॥

अर्थ – आप अपने त्रिशूल से मेरे शत्रुओं का नाश कर दो और मुझे संकट से बहार निकालो।

मात-पिता भ्राता सब होई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥

अर्थ – माता, पिता, भाई आदि सभी सुख के ही साथी हैं, लेकिन संकट आने पर हमे कोई नही पूछता।

स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु मम संकट भारी ॥

अर्थ – इसलिए हे भोलेनाथ ! मुझे केवल आप से ही आशा हैं कि आप आकर मेरे संकटों का निवारण करेंगे।

धन निर्धन को देत सदा हीं । जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥

अर्थ – आप हमेशा निर्धन व्यक्तियों को धन देकर उनकी आर्थिक समस्या को दूर करते हैं, जो कोई आपकी जैसी भक्ति करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है।

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

अर्थ – आपकी पूजा करने की विधि क्या है, इसके बारे में हमे कम ज्ञान हैं, इसलिए यदि हमसे किसी प्रकार की कोई भूल हो जाये तो कृपया करके हमारी भूल को माफ़ कर दे।

शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥

अर्थ – हे भगवान शंकर, आप ही सभी संकटों का नाश करने वाले हो , आप ही सभी का मंगल करने वाले हो, आप ही विघ्नों का नाश करने वाले हो।

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । शारद नारद शीश नवावैं ॥

अर्थ – सभी योगी-मुनि आपका ही ध्यान करते हैं और नारद व माँ सरस्वती आपके सामने अपना शीश नवाते हैं।

नमो नमो जय नमः शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥

अर्थ – आपका ध्यान करने का मूल मंत्र “ऊं नमः शिवाय“ है। इस मंत्र का जाप करके भी सभी देवता और भगवान ब्रह्मा भी पार नही पा सकते हैं।

जो यह पाठ करे मन लाई । ता पर होत है शम्भु सहाई ॥

अर्थ – जो भी भक्त सच्चे मन से इस शिव चालीसा का पाठ कर लेते हैं उन पर भोलेनाथ की कृपा अवश्य होती हैं।

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥

अर्थ – जो भी भक्त शिव चालीसा का पाठ करता हैं वह सभी प्रकार के ऋणों से मुक्त हो जाता हैं और वह तनाव मुक्त महसूस करता है।

पुत्र हीन कर इच्छा जोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥

अर्थ – यदि किसी दम्पति को संतान प्राप्ति नही हो रही हैं, तो निश्चय ही शिव की कृपा से उसे पुत्र की प्राप्ति होगी।

पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

अर्थ – प्रत्येक माह की त्रयोदशी के दिन अपने घर में पंडित को बुलाकर शिव चालीसा का पाठ व हवन करवाना चाहिए।

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा । ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥

अर्थ – जो भी भक्त त्रयोदशी के दिन आपका व्रत करता हैं, उसका तन हमेशा निरोगी रहता हैं।

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥

अर्थ – भगवान शिव को पूजा में धूप, दीप व नैवेद्य चढ़ाना चाहिए और उनके सम्मुख बैठकर शिव चालीसा का पाठ सुनाना चाहिए।

जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥

अर्थ -शिव चालीसा का पाठ करके जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे शिव जी के शिवपुर धाम में शरण मिलती हैं।

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥

अर्थ – अयोध्यादास आपके सामने यह आस लगाकर विनती करता हैं कि आप मेरे सभी दुखों का निवारण कर दे।

॥दोहा॥

नित्त नेम कर प्रातः ही,पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु,संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,पूर्ण कीन कल्याण ॥

अर्थ – रोजाना प्रातःकाल शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए। साथ ही भगवान शिव से अपनी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने की अर्जी लगाना चाहिए।

अर्थ – माघ मास की छठी तिथि को हेमंत ऋतु में संवत चौसठ में इस शिव चालीसा के लेखन कार्य पूर्ण हुआ।

Credit the Video : Red Ribbon Musik by Shankar Mahadevan YouTube Channel

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