Ishwar Stuti Prarthana Upasana Mantra | ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना मंत्र: दोस्तो नमस्कार, आज हम आप लोगों को इसी पोस्ट के माध्यम से ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना मंत्र के बारे में बताएंगे। वैदिक अग्निहोत्र की प्रक्रिया में आचमन और अंग-स्पर्श मंत्रों के बाद, हवन की प्रक्रिया के प्रारंभ में आठ मंत्रों का एक समूह आता है, जिन्हें ईश्वर स्तुति–प्रार्थना–उपासना मंत्र कहा जाता है। भगवान का स्तुति (प्रशंसा), प्रार्थना (निवेदन) और उपासना भगवान के समीप बैठकर श्रद्धापूर्वक पूजा करना। जब हम भगवान की स्तुति करते हैं, तब हम उनके गुणों की प्रशंसा करने लगते हैं। और धीरे-धीरे उन गुणों को स्वयं में धारण करने लगते हैं।
जिससे हम विनम्र और दयालु मानव बनते हैं। हमारी आत्मा शुद्ध होती है।
Ishwar Stuti Prarthana Upasana Mantra
ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना मंत्र
अथ ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना मंत्र:
अथ= प्रारम्भ अर्थात् प्रारम्भ करते हैं। ईश्वर स्तुति= ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव का हृदय में स्मरण करके प्रशंसा करना स्तुति कहलाती है। प्रार्थना= अपने पूर्ण पुरुषार्थ के बाद उत्तम कार्यों में ईश्वर से सहायता की कामना करना, प्रार्थना कहलाती है। उपासना= उप= समीप, आसन= बैठना, अर्थात् अपने आत्मा में ईश्वर को अनुभव करके उसके आनन्द स्वरूप में मग्न हो जाना।
ओ३म्। विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव।
यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥ १ ॥
यजुर्वेद ३०.३
भावार्थ: हे सम्पूर्ण संसार को उत्पन्न करने वाले परमेश्वर! आप हमारे सब दुर्गुण, दुव्र्यसन और दु:खों को दूर कर दीजिए और जो सुखदायक, कल्याणकारी, गुण, कर्म, स्वभाव और पदार्थ हैं; उन सबको हमें प्रदान कीजिए।
ओ३म्। हिरण्यगर्भ: समवर्त्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ २ ॥
यजुर्वेद १३.४
भावार्थ: स्वयं प्रकाश स्वरूप और प्रकाश करने वाले सूर्य, चन्द्रमा आदि को उत्पन्न करके धारण करने वाला ईश्वर, सृष्टि उत्पत्ति के पहले से ही विद्यमान् है। वही उत्पन्न हुए सम्पूर्ण संसार का एक मात्र रक्षक, पालक और स्वामी है। वही पृथिवी, द्युलोक समस्त ब्रह्माण्ड को धारण कर रहा है। हम लोग उस सुख स्वरूप ईश्वर के लिए विशेष भक्ति और योगाभ्यास से उपासना किया करें।
ओ३म्। य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवा:।
यस्य छायाऽमृतं यस्य मृत्यु: कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ ३ ॥
यजुर्वेद २५.१३
भावार्थ: जो परमेश्वर आत्मज्ञान और सब प्रकार के बल-सामर्थ्य को देने वाला है। सब विद्वान् लोग उसकी उपासना करके उसी की शिक्षा और शासन व्यवस्था को मानते हैं। जिसका आश्रय मोक्ष सुखदायक है और जिसको न मानना अर्थात् भक्ति न करना मृत्यु आदि दु:ख का कारण है। हम लोग उस सुख स्वरूप ईश्वर के लिए विशेष भक्ति और योगाभ्यास से उपासना किया करें।
ओ३म्। य: प्राणतो निमिषतो महित्वैक इद्राजा जगतो बभूव।
य ईशेऽ अस्य द्विपदश्चतुष्पद: कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ ४ ॥
यजुर्वेद २३.३
भावार्थ: जो परमेश्वर चेतन और अचेतन संसार का अपनी अनन्त महिमा से अकेला ही शासक राजा है और जो मनुष्य आदि दो पैर वालों का और गौ आदि चार पैर वाले प्राणियों का स्वामी है। हम लोग उस सुख स्वरूप ईश्वर के लिए विशेष भक्ति और योगाभ्यास से उपासना किया करें।
ओ३म्। येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृढा येन स्व: स्तभितं येन नाक:।
यो अन्तरिक्षे रजसो विमान: कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ ५ ॥
यजुर्वेद ३२.६
भावार्थ: जो ईश्वर प्रकाश करने वाले, तेजस्वी द्युलोक को तथा पृथिवी लोक को स्थिर कर रहा है। जो विविध लोक लोकान्तरों को बनाकर गति दे रहा है और जिसने सुख और मोक्ष को धारण किया हुआ है। हम लोग उस सुख स्वरूप ईश्वर के लिए विशेष भक्ति और योगाभ्यास से उपासना किया करें।
ओ३म्। प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ता बभूव।
यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥ ६ ॥
ऋग्वेद १०.१२१.१०
भावार्थ: हे सम्पूर्ण प्रजा के पालक और स्वामी ईश्वर! इन समस्त लोक लोकान्तरों का आपसे भिन्न कोई दूसरा पालन करने वाला स्वामी नहीं है। आप ही सबके आधार हो। हे ईश्वर! हम जिस-जिस कामना से युक्त होकर आपकी उपासना करें, आप हमारी वह कामना पूर्ण करो, जिससे हम धन-ऐश्वर्यों के स्वामी हो जायें।
ओ३म्। स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा।
यत्र देवा अमृतमानशानास्तृतीये धामन्नध्यैरयन्त ॥ ७ ॥
यजुर्वेद ३२.१०
भावार्थ: भावार्थ- हे मनुष्यो! वह ईश्वर सब जगत् को उत्पन्न करने वाला और भाई के समान सुखदायक है। वह कर्मफल देने वाला, सब कामों को पूर्ण करने वाला सर्वज्ञ और सब लोक-लोकान्तरों को धारण करने वाला है। विद्वान् लोग सब प्रकार के दु:खों से मुक्त होकर उसके परम धाम मोक्ष में स्वतन्त्रता पूर्वक विचरण करते हैं। हम उसी की स्तुति और भक्ति पूर्वक उपासना करके सुखी रहें।
ओ३म्। अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्।
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेम ॥ ८ ॥
यजुर्वेद ४०.१६
भावार्थ: हे ज्ञानस्वरूप ईश्वर! आप हमें ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए उत्तम मार्ग से ले चलो। आप सम्पूर्ण ज्ञान और कर्मों को जानने वाले हो। हे प्रभो! कृपा करके हमसे कुटिलतायुक्त पाप कर्मों को दूर कर दीजिए। हम लोग आपकी बहुत अधिक नमस्कारपूर्वक स्तुति कर रहे हैं।
इति ईश्वर-स्तुति-प्रार्थना-उपासना-मन्त्रा:
Credit the Video : Skylink Edit House YouTube Channel
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