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November 21, 2024
Aarti

Jagdish Ji Ki Aarti | ॐ जय जगदीश हरे | Om Jai Jagdish Hare

Jagdish Ji Ki Aarti | ॐ जय जगदीश हरे | Om Jai Jagdish Hare: हिंदू धर्म में सबसे लोकप्रिय आरती (Om Jai Jagdish Hare) ओम जय जगदीश हरे की है। यह आरती हर व्यक्ति सुबह और शाम पूजा के समय करता है। कहा जाता है कि इस आरती को करने से श्री हरि विष्णु की तिथि कृपा प्राप्त होती है। यह भी माना जाता है कि इस आरती का ध्यान करने से सभी देवी-देवताओं की आरती का फल प्राप्त होता है। इस आरती के हिन्दी बोल यहाँ देखें।

Credit the Video : Live Aarti Bhajan YouTube Channel

Vishnu Ji Ki Aarti

Om Jai Jagdish Hare Aarti

Om Jai Jagdish Hare,
Swami Jai Jagdish Hare ।
Bhagt Jano Ke Sankat,
Das Jano Ke Sankat
Khshan Mein Door Kare ॥

॥ Om Jai Jagdish Hare ॥

Jo Dhaywe Phal Pave,
Dukh Vinse Man Ka,
Swami Dukh Vinse Man Ka ।
Sukh Sampati Ghar Aave,
Sukh Sampati Ghar Aave,
Kasht Mite Tan Ka॥

॥ Om Jai Jagdish Hare ॥

Maat-Pita Tum Mere,
Sharan Gahun Kiskee,
Swami Sharan Gahun Mein Kiskee ।
Tum Bin Aur Na Duja,
Tum Bin Aur Na Duja,
Aas Karun Mein Jiskee ॥

॥ Om Jai Jagdish Hare ॥

Tum Puran Parmatma,
Tum Antaryami,
Swami Tum Antaryami ।
Par-Brahm Parmeshwar,
Par-Brahm Parmeshwar,
Tum Sabke Swami ॥

॥ Om Jai Jagdish Hare ॥

Tum Karuna Ke Saagar,
Tum Palankarta,
Swami Tum Palankarta ।
Main Moorakh Khal Kami,
Mein Sewak Tum Swami,
Kripa Karo Bharta ॥

॥ Om Jai Jagdish Hare ॥

Tum Ho Ek Agochar,
Sabke Pran Pati,
Swami Sabke Pran Pati ।
Kis Vidhi Milun Dayamay,
Kis Vidhi Milun Dayamay,
Tumko Main Kumti ॥

॥ Om Jai Jagdish Hare ॥

Deenbandhu Dukh Harta,
Thakur Tum Mere,
Swami Rakshak Tum Mere ।
Apne Hath Uthaao,
Apni Sharan Lagao,
Dwar Para Tere ॥

॥ Om Jai Jagdish Hare ॥

Vishay Vikaar Mitaao,
Paap Haro Deva,
Swami Paap Haro Deva ।
Shradha Bhakti Badhaao,
Shradha Bhakti Badhaao,
Santan Ki Sewa ॥

॥ Om Jai Jagdish Hare ॥

Tan Man Dhan Sab Tera
Sab Kuchh Hai Tera
Swami Sab Kuchh Hai Tera ।
Tera Tujhko Arpan
Tera Tujhko Arpan
Kya Lage Mera ॥

॥ Om Jai Jagdish Hare ॥

Om Jagdish Ji Ki Aarti
Jo Koyi Nar Gaave
Swami Jo Koyi Nar Gaave ।
Kahat Shivanand Swami
Kahat Shivanand Swami
Sukh Sampatti Paave ॥

॥ Om Jai Jagdish Hare ॥

Om Jay Jagdish Hare
Swami Jay Jagdish Hare
Bhakt Jano Ke Sankat
Das Jano Ke Sankat
Khshan Mein Door Kare

॥ Om Jai Jagdish Hare ॥

जगदीश जी की आरती

ॐ जय जगदीश हरे

ओम जय जगदीश हरे

ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥

॥ ओम जय जगदीश हरे ॥

जो ध्यावे फल पावे,
दुःख बिनसे मन का,
स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे,
सुख सम्पति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का ॥

॥ ओम जय जगदीश हरे ॥

मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी ॥

॥ ओम जय जगदीश हरे ॥

तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर,
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी ॥

॥ ओम जय जगदीश हरे ॥

तुम करुणा के सागर,
तुम पालनकर्ता,
स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फलकामी,
मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता॥

॥ ओम जय जगदीश हरे ॥

तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय,
किस विधि मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति ॥

॥ ओम जय जगदीश हरे ॥

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,
ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ,
अपने शरण लगाओ,
द्वार पड़ा तेरे ॥

॥ ओम जय जगदीश हरे ॥

विषय-विकार मिटाओ,
पाप हरो देवा,
स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा ॥

॥ ओम जय जगदीश हरे ॥

तन मन धन सब तेरा
सब कुछ है तेरा
स्वामी सब कुछ है तेरा ।
तेरा तुझको अर्पण
तेरा तुझको अर्पण
क्या लागे मेरा ॥

॥ ओम जय जगदीश हरे ॥

ॐ जगदीश जी की आरती
जो कोई नर गावे
स्वामी जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी
कहत शिवानंद स्वामी
सुख संपत्ति पाव ॥

॥ ओम जय जगदीश हरे ॥

ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥

॥ ओम जय जगदीश हरे ॥

ଓଂ ଜଯ ଜଗଦୀଶ ହରେ

ଓଂ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ

ଓଂ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ
ସ୍ୱାମୀ ଜଯ ଜଗଦୀଶ ହରେ
ଭକ୍ତ ଜନୋ କେ ସଙ୍କଟ,
ଦାସ ଜନୋ କେ ସଙ୍କଟ,
କ୍ଷଣ ମେଂ ଦୂର କରେ ॥ ୧ ॥

॥ ଓଂ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ ॥

ଜୋ ପାବେ ଫଲ ପାବେ,
ଦୁଖ ବିନସେ ମନ କା
ସ୍ୱାମୀ ଦୁଖ ବିନସେ ମନ କା
ସୁଖ ସମ୍ପତି ଘର ଆବେ,
ସୁଖ ସମ୍ପତି ଘର ଆବେ,
କଷ୍ଟ ମିଟେ ତନ କା ॥ ୨ ॥

॥ ଓଂ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ ॥

ମାତା ପିତା ତୁମ ମେରେ,
ଶରଣ ଗହୂଂ ମୈଂ କିସକୀ
ସ୍ୱାମୀ ଶରଣ ବହୂଂ ମୈଂ କିସକୀ?
ତୁମ ବିନ ଔର ନ ଦୂଜା,
ତୁମ ବିନ ଔର ନ ଦୂଜା,
ଆସ କରୁଂ ମୈଂ ଜିସକୀ ॥ ୩ ॥

॥ ଓଂ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ ॥

ତୁମ ପୁରଣ ପରମାତ୍ମା,
ତୁମ ଅଂଡ଼ରଯାମୀ
ସ୍ୱାମୀ ତୁମ ଅଂଡ଼ରଯାମୀ
ପରାବ୍ରହ୍ଣପରମେଶ୍ୱର,
ପରାବ୍ରହ୍ଣପରମେଶ୍ୱର,
ତୁମ ସବ କେ ସ୍ୱାମୀ ॥ ୪ ॥

॥ ଓଂ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ ॥

ତୁମ କରୁଣା କେ ସାଗର,
ତୁମ ପାଲନକର୍ତା
ସ୍ୱାମୀ ତୁମ ପାଲନକର୍ତ,
ମୈଂ ମୂରଖ ଖଲ କାମୀ
ମୈଂ ସେବକ ତୁମ ସ୍ୱାମୀ,
କୃପା କରୋ ଭର୍ତ୍ତା ॥ ୫ ॥

॥ ଓଂ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ ॥

ତୁମ ହୋ ଏକ ଅଗୋବର,
ସବକେ ପ୍ରାଣପତି
ସ୍ୱାମୀ ସବକେ ପ୍ରାଣାପତି
କିସ ବିଧ ମିଲ୍ଲଂ ଦଯାମଯ,
ତୁମକୋ ମୈଂ କୁମତି ॥ ୬ ॥

॥ ଓଂ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ ॥

ଦୀନବଂଧୁ ଦୁଖହର୍ତା,
ଠାକୁର ତୁମ ମେରେ,
ସ୍ୱାମୀ ତୁମ ରମେରେ,
ଅପନେ ହାଥ ଉଠାବୋ,
ଅପନୀ ଶରଣ ଲଗାବୋ
ଦ୍ୱାର ପତ୍ମା ଡେରେ ॥ ୭ ॥

॥ ଓଂ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ ॥

ବିଷଯ ବିକାର ମିଟାବୋ,
ପାପ ହରୋ ଦେବା,
ସ୍ୱାମୀ ପାପ ହରୋ ଦେବା,
ଶ୍ରଦ୍ଧା ଭକ୍ତି ବଢ଼ାଓ,
ଶ୍ରଦ୍ଧା ଭକ୍ତି ବଢ଼ାଓ,
ସଂତନ କୀ ସେବା ॥ ୮ ॥

॥ ଓଂ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ ॥

ତନ ମନ ଧନ ସବ ତେରା
ସବ କୁଛ ହୈ ତେରା
ସ୍ୱାମୀ ସବ କୁଛ ହୈ ତେରା ।
ତେରା ତୁଝକୋ ଅର୍ପଣ
ତେରା ତୁଝକୋ ଅର୍ପଣ
କ୍ୟା ଲଗେ ମେରା ॥ ୯ ॥

॥ ଓଂ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ ॥

ଓଁ ଜଗଦୀଶ ଜି କି ଆରତୀ
ଜୋ କୋୟୀ ନର ଗାବେ
ସ୍ୱାମୀ ଜୋ କୋୟୀ ନର ଗାବେ ।
କହତ ଶିବାନନ୍ଦ ସ୍ୱାମୀ
କହତ ଶିବାନନ୍ଦ ସ୍ୱାମୀ
ସୁଖ ସମ୍ପତ୍ତି ପାଭେ ॥ ୧୦ ॥

॥ ଓଂ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ ॥

ଓଂ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ
ସ୍ୱାମୀ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ
ଭକ୍ତ ଜନୋ କେ ସଙ୍କଟ,
ଦାସ ଜନୋ କେ ସଙ୍କଟ,
କ୍ଷଣ ମେଂ ଦୂର କରେ

॥ ଓଂ ଜୟ ଜଗଦୀଶ ହରେ ॥

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