निर्वस्त्र होकर राजमहल त्यागने वाली, चिन्ह मल्लिकार्जुन के भक्त, महादेव की मीरा, महादेवी अक्का की कहानी: दोस्तों नमस्कार, आज हम आपको इस लेख के जरिए दक्षिण भारत की पुण्यमय कथा, महादेव की मीरा, अक्का महादेवी के बारे में बात करेंगे। आइए इस यात्रा में जानते हैं, श्रीशैलम् में महादेवी अक्का के तपस्या भूमी की कहानी और इनकी तपस्यामय शांत, सरल अद्भुत स्वरुप का चित्र:
महादेव की मीरा, महादेवी अक्का की कहानी:
बात आती है, लगभग साढ़े आठ सौ साल पहले की। महादेव की एक ऐसी भक्त, जिन्होंने भक्ति में आकर सांसारिक चीजों (रानी का पद, सारे भोग-विलास, राजमहल, ऐश्वर्य, ऐशो-आराम की तमाम सुख-सुविधाएँ) के साथ-साथ अपने वस्त्रों को त्याग कर, निर्वस्त्र होकर सिर्फ अपने बालों से आप को ढक कर वहां से चली गई।
आध्यात्मिक दृष्टि से, अक्का महादेवी बचपन से भगवान शिव की एक सच्ची भक्त थीं। अक्का महादेवी का जन्म भारत के कर्नाटक राज्य के शिवमोग्गा के पास उदूतड़ी गाँव में सन्-1130 के आसपास हुआ था। उनके पिता का नाम निर्मलछेटी तथा माता का नाम सुमति था।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महादेवी के माता-पिता दोनों वीर शैव धर्म का पालन करते थे। वीरशैव सम्प्रदाय में उपासकों को तीन भागों में विभक्त किया गया था। जो भक्त शिव को मानते हैं वे साधारण श्रेणी, जो भक्त अनन्यभाव से शिव को भक्ति करते हैं वे साधक श्रेणी, जो भक्त संपूर्ण जीवन ईश्वर के प्रति समर्पित कर देते हैं वे संत श्रेणी।
ऐसा माना जाता है कि, महादेवी के माता-पिता ने उनकी विवाह कौशिक नामक एक स्थानीय जैन राजा से करवा दिया था। लेकिन महादेवी को तो शादी की इच्छा ही नहीं थी। उसने तो मन ही मन भगवान चेन्नमल्लिकार्जुन से विवाह कर लिया था। महादेवी कहते हैं, ना कोई देश, ना कोई घर मेरा तो पति अखंड अविनाशी ईश्वर। कहते हैं, जैसे मीरा जी कृष्ण भगवान को अपना पति मानती थी, ठीक उसी तरह बचपन से महादेवी अक्का ने भगवान शिव का एक स्वरूप, चिन्ह मल्लिकार्जुन को अपना पति मानती थी। उनको भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। महादेव के प्रति इतना ज्यादा प्रेम, इतना समर्पित देख कर राजा क्रोधित हुए। भारी सभा में उन्होंने महादेवी को बोला कि अगर तुम मेरी नहीं हो, शिव तुम्हारे पति हैं, तो तुम यहां पे जो सुख साधनों का भोग कर रही हो, जो वस्त्र पहने हो, यह मेरा है। तो महादेवी ने कहा कि, आज से मैं इन सारे सुख साधनों का त्याग करती हूं।
महादेवी ने उसी क्षण राज महल, अपने गहने, यहाँ तक की अपने वस्त्र त्याग कर खुद को बालों से ढक कर वहां से चली गई। महादेवी की विशेषता जो बाहरी सौंदर्य के साथ असली सौंदर्य भी धारण कर रखा था। शिव की प्रेम दीवानी अक्का महादेवी ने सभी सामाजिक नियम और बंधन तोड़ कर, कल्याणकारी मार्ग पर शरणसती, लिंगपति गाते हुए, शिव की खोज में निकल पड़ीं। शरणसती, लिंगपति मतलब जिसने भगवान की शरण ली।
कर्नाटक के कल्याण नामक स्थान में जो वीर शैव संप्रदाय का सन्त बसवेश्वर रहते थे, वहाँ पहुँच गई। महादेवी ने उन संतों से प्रार्थना करते हुए कहा हे नाथ, इस दुर्लभ मानव शरीर को उसी मार्ग पर ले चलिए। संत तो दयालु होते हैं। संत बसवेश्वर, महायोगी अल्लामा और कई महापुरुषों ने महादेवी की हिम्मत, भक्ति में दृढ़ता, ज्ञान प्राप्ति में रूचि, विवेक, वैराग्य और त्याग को देखकर प्रशंसा की। उसने भी वीर शैव धर्म अपना लिया। संत बसवेश्वर ने कहा-‘महादेवी, तुम श्री शैलम् जाओ, वहाँ भगवान श्री मल्लिकार्जुन ज्योतीर्लिंग के दर्शन करो, वहीं पर रहकर साधना और तपस्या करो। कुछ दूर तक उन्हें छोड़ने के लिए गए। महादेवी ने कहा, गुरुदेव, आपकी कृपा मेरे साथ है। अपने धर्म और आपकी महिमा को सदा आगे बढ़ाती रहूँगी।
रास्ते में आनेवाली तमाम तकलीफों और मुसीबतों का मुकाबला करके कहते हैं, हे मेरे ईश्वर, जिस विषय-विकार, भोग-विलास के दल-दल को छोडकर, आपके शरण आया हूँ। इस घोर जंगल में माया क्यों मेरे पीछा नहीं छोड़ती। मैं तुझसे नहीं तेरी माया से डरती हूँ। जीवन में आनेवाली माया से मुझे बचा लो।
महादेवी ने हिम्मत नहीं हारी, अकेले ही श्री शैलम् पहुँच गयी। वहाँ अपने प्राणप्रिय इष्टदेव भगवान मल्लिकार्जुन महादेव के दर्शन करते एक शाश्वत, अगम, अनन्त, अकाल, अविनाशी सुन्दर सुख का अनुभव हुआ। महादेवी ने अपने इष्ट के प्रति ऐसी अनन्य निष्ठा, महादेव को ही पति मानकर उन्हीं के लिए जीना।
कुछ साल इधर-उधर जंगलों में उन्होंने साधन किया। फिर वो श्री शैलम जो मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के पास एक आश्रम है। ऐसा माना जाता है कि कृष्णा नदी के किनारे श्री शैलम की एक गुफा में तपस्या की। वहां पर उनको अक्का नाम दिया गया। अक्का का मतलब होता है, बड़ी बहन। तब से सभी लोग उन्हें महादेवी अक्का या अक्का महादेवी के नाम से जानने लगे। अक्का महादेवी जो एक ऐसी दिव्य सच्ची भक्त भगवान शिव के साकार तथा निराकार स्वरुप का दर्शन किया था। आज भी लोग उन्हें दक्षिण भारत की दूसरी पार्वती और भगवान शंकर की मानस पत्नी कहते हैं।
पहले वचन में महादेवी ने भूख, प्यास, क्रोध-मोह, लोभ-मद, ईर्ष्या पर नियंत्रण रखने और भगवान शिव का ध्यान लगाने की प्रेरणा दी है। दूसरे वचन में ईश्वर के सम्मुख संपूर्ण समर्पण का भाव है। महादेवी चाहती है कि वह सांसारिक वस्तुओं से पूरी तरह खाली हो जाए।
फिर महादेवी अक्का मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के पास ही एक गुफा थी वहां पर रहकर साधना करने लगी। जहाँ पर ऋषि अगस्त्य, इक्ष्वाकु वंश के कुलगुरु वशिष्ठ, आदि शंकराचार्य, सिद्ध-योगी दत्तात्रेय और कई अन्य महात्माओं ने श्रीशैलम को एक पवित्र और आध्यात्मिक स्थल माना है। वेदों और पुराणों के अनुसार श्रीशैलम को काशी के समान माना गया है। दक्षिण भारत में इसको दक्षिण का कैलास भी कहा जाता है।
कहते हैं कि अंत में भगवान शिव ने उन्हें साक्षात उसी गुफा में दर्शन भी दिए। उनकी आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई और उसी श्री शैलम की गुफा में उनकी समाधि बना दी गई। आज भी लोग कहते हैं कि जो महादेवी अक्का की समाधि है वहां पर एक अलग तरह का आकर्षण है। कई साधक वहां पर जाकर जब साधना करते हैं। अंत में स्वयं अक्का महादेवी बताती हैं कि उनके जीवन के अंतिम समय में राजा कौशिक ने उनसे वहाँ भेंट की और उनसे क्षमा माँगी।
श्रीशैलम में अक्का महादेवी का इतिहास:
ऐसा माना जाता है कि अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह श्रीशैलम पर्वत पर चली गईं, जहाँ उन्होंने एक तपस्वी के रूप में जीवन बिताया और अंततः उनकी मृत्यु हो गई। ऐसा मानते हैं कि उनकी भक्ति और प्रेम के कारण वह श्रीशैलम ज्योर्तिलिंग में समा गईं।अक्का महादेवी बताती हैं कि उनके जीवन के अंतिम समय में राजा कौशिक ने उनसे वहाँ भेंट की और उनसे क्षमा माँगी। राजा कौशिक के पास आत्मग्लानी एवं पश्चाताप के सिवा कुछ बचा ही नहीं था।
आधुनिक दुनिया में, विश्वभर में भारत भूमि की कुछ ऐसी नारियाँ, ऐसी दिव्य विभूतियाँ भारत में अवतरित होती रहती हैं। भारत के महान संतो, ऋषि-मुनियों, तपस्वियों, नारियों की भक्ति के इसी अलौकिक वैभव को शायद दुनिया भर में अभी तक कोई समझ नहीं पा रही हैं।
यह कहानी हमें सिखाती है कि: सच्ची भक्ति में वो शक्ति होती है, जिससे हम बड़ी से बड़ी मुश्किल पार कर के भगवान को पा सकते हैं।
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