Shri Kalika Ashtakam | श्री कालिका अष्टकम्: दोस्तों नमस्कार, आज हम आपको इस लेख के जरिए श्रीकालिकाष्टकम् के बारे में बात करेंगे। श्रीमद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित श्री कालिका अष्टकम् माँ काली को समर्पित एक दिव्य शक्ति का उग्र रूप हैं, जो भय को शक्ति में परिवर्तित कर देती है। आप अपने भीतर स्थित आद्य शक्ति से जुड़ कर माँ काली की उस दिव्य शक्ति का अनुभव करें, जो अज्ञान, अहंकार और नकारात्मकता का नाश करती हैं। आइए इस माँ काली अष्टकम का सुमिरन करते हैं:
Shri Kalika Ashtakam
श्रीकालिकाष्टकम्
गलद्रक्तमुण्डावलीकण्ठमाला
महोघोररावा सुदंष्ट्रा कराला ।
विवस्त्रा श्मशानालया मुक्तकेशी
महाकालकामाकुला कालिकेयम् ॥१॥
भुजेवामयुग्मे शिरोऽसिं दधाना
वरं दक्षयुग्मेऽभयं वै तथैव ।
सुमध्याऽपि तुङ्गस्तना भारनम्रा
लसद्रक्तसृक्कद्वया सुस्मितास्या ॥२॥
शवद्वन्द्वकर्णावतंसा सुकेशी
लसत्प्रेतपाणिं प्रयुक्तैककाञ्ची ।
शवाकारमञ्चाधिरूढा शिवाभिश्_
चतुर्दिक्षुशब्दायमानाऽभिरेजे ॥३॥
विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणास्त्रीन्
समाराध्य कालीं प्रधाना बभूबुः ।
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥१॥
जगन्मोहनीयं तु वाग्वादिनीयं
सुहृत्पोषिणीशत्रुसंहारणीयम् ।
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥२॥
इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली
मनोजास्तु कामान् यथार्थं प्रकुर्यात् ।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥३॥
सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता
लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवत्ते ।
जपध्यानपूजासुधाधौतपङ्का
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥४॥
चिदानन्दकन्दं हसन् मन्दमन्दं
शरच्चन्द्रकोटिप्रभापुञ्जबिम्बम् ।
मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥५॥
महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा
कदाचिद् विचित्राकृतिर्योगमाया ।
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥६॥
क्षमस्वापराधं महागुप्तभावं
मया लोकमध्ये प्रकाशिकृतं यत् ।
तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात्
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥७॥
यदि ध्यानयुक्तं पठेद् यो मनुष्यस्_
तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च ।
गृहे चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्तिः
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥८॥
॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं श्रीकालिकाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
Credit the Video : Dhyanastha Mantra and The Cozy Shell YouTube Channel
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