Ganesh Chaturthi 2025 | गणेश चतुर्थी कब है, क्यों मनाई जाती है, जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत का महत्व और पूजा विधि: दोस्तों नमस्कार, आज हम आपको इस लेख के जरिए गणेश चतुर्थी के बारे में बात करेंगे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मूषक का वाहक, विघ्नहर्ता, दुःख हर्ता गणेश जी देवताओं में सबसे श्रेष्ठ होते हैं। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ और मांगलिक कार्यक्रम में सबसे पहले गणेश जी की कलश का पूजा की जाती हैं। तो दोस्तों आइए जानते हैं गणेश चतुर्थी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में:
गणेश चतुर्थी कब है:
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व देशभर में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। विशेषकर इसकी धूम महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में देखने को मिलती है। इस वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 27 अगस्त 2025 को चतुर्थी तिथि होगी।
गणेश स्थापना और विसर्जन का समय: इस साल गणपति उत्सव (Ganesh Utsav 2025), भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के शुभ मुहूर्त 27 अगस्त 2025 को सुबह 11 बजकर 06 मिनट से शुरू होकर दोपहर 03 बजकर 44 मिनट पर चतुर्थी तिथि का समापन होगा।
गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है:
पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती के पुत्र, भगवान गणेश जी का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि, स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में दोपहर के प्रहर में हुआ था। इसलिए हर साल गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। आप घर पर भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना कर के दोपहर के शुभ मुहूर्त में पूजा करने से जीवन में आने वाली सभी तरह की बाधाएं और संकट दूर होकर सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
नोट : इस लेख में निहित गणेश चतुर्थी कब है, क्यों मनाई जाती है, तिथि, शुभ मुहूर्त, स्थापना समय, विसर्जन का समय, व्रत का महत्व और पूजा विधि, किसी भी जानकारियां, गणना की सटीकता या विश्वसनीयता, सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। भक्ति भारत की (https://bhaktibharatki.com/) इसकी पूर्ण रूप से पुष्टि नहीं करता। इसको अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ, ज्योतिष अथवा पंड़ित की सलाह अवश्य लें। ये जानकारियां विभिन्न माध्यमों, मान्यताओं, ज्योतिषियों, पंचांग और धर्मग्रंथों से संग्रहित कर के आप तक पहुंचाई गई हैं।
गणेश चतुर्थी का महत्व:
धर्मशास्त्र के अनुसार प्रथम पूज्य भगवान गणेश बुद्धि, सुख, समृद्धि और विवेक का दाता माना जाता है। इसलिए घर, परिवार और जीवन में सुख, शांति, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ बच्चों को ज्ञान एवं बुद्धि प्राप्ति के लिए गणेश चतुर्थी का व्रत की जाती हैं। महिलायें संतान प्राप्ति के लिए भी गणेश चतुर्थी का व्रत करते हैं। लोगो के संकट दूर हेतु गणेशी जी वंदना और पूजा की जाती है। जो गणेश जी की पूजा करते हैं, उनको रिद्धि और सिद्धि के दाता, विघ्नहर्ता गणपति समृद्धि और सफलता प्रदान करते हैं। जीवन के सभी दुर्भाग्य, कष्टों, कठिनाइयों, विपत्तियों, आपदा और बाधा आदि का दूर करते हैं।
आध्यात्मिक मान्यता के अनुसार गणेश जी की पूजा के पीछे एक गहरा कारण है। आध्यात्मिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भगवान गणेश जी की पूजा किया जाता है। जो हमारे शरीर का भौतिक और आध्यात्मिक कार्यों में मार्गदर्शन करता है। जो हमें आत्मज्ञान प्रदान करता है। हमारे शरीर में सात चक्र है, जो मूलाधार चक्र से सुरू होकर सहस्रार चक्र तक है। जो मूलाधार चक्र को भगवान गणपति द्वारा नियंत्रित और मजबूत किया जाता है।
योगिक मान्यता के अनुसार हमारे सांसों को 7 चक्रों में विभाजित किया जाता है। जो मूलाधार = 600, स्वाधिष्ठान = 1000, मणिपुर = 1000, अनाहत = 1000, विशुद्धि = 6000, अजना = 6000, सहस्रार = 6000। जो सूर्योदय से सूर्योदय तक 21600 बार सांस लेता जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति प्रति मिनट में 12 से 16 बार सांस लेता है। सांस सूर्योदय के लगभग 40 मिनट तक मूलाधार चक्र के आसपास केंद्रित रहती है और सांस सहस्रार चक्र के आसपास सूर्योदय से पहले लगभग 6 घंटे के लिए केंद्रित रहती है। यदि हम सुबह भगवान गणेश जी की पूजा करते हैं, तो मूलाधार चक्र के साथ-साथ पूरे मानव शरीर को सक्रिय करना आसान हो जाता है। इसलिए हमारे पूर्वजों ने हमें सुबह जल्दी उठने और पढ़ने के लिए कहा है।
विनायक ब्रतकथा के अनुसार एक बार गोमती नदी के किनारे ऋषि मुनि गण सुत मुनि को पूछते हैं कि काया करने से हर काम निर्भय में हो जाता है, और संपाति, सौभाग्य और पुत्र प्राप्ति होती है। सुत मुनि कहते हैं, जो गणपति की पूजा के बारे में, श्री कृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर को कुरु पांडव के युद्ध काल में बोले हैं। गणपति की पूजा के बारे में युधिष्ठिर जी जानने के बाद अपने भाई के साथ गणेश की पूजा की और युद्ध में बिजय लाभ की थी। इसीलिये गणेश जी को पूजा करने से सर्व कार्य सिद्धि होती है। इसीलिये इनको शुद्धि बिनायक रूप से महत्व दिया जाता है। जो प्रतिमा हस्तमे दंता, पद्म, परसु एबं लड्डू बा मोदक धरन करते हैं। बिनायक ब्रता कथा में कहा गया है कि जाप से पहले, वेद कार्य में, युध्य सन्निकटमे, विवाह कृत्य के प्रारंभ में, वाणिज्य कर्म आरंभ में और विद्यारंभ संस्कार मुहूर्त में गणेश जी की पूजा करना है। गणेश जी को पूजा करने के लिए विष्णु, शिव सूर्य, चंद्र, अग्नि और चंडिकाति मातृगण संतुष्ठ होते हैं और समस्त कार्य सिद्धि होते हैं।
गणेश चतुर्थी के पूजा बिधि:
- सुबह स्नान करेक, नये वस्त्र परिधान करें।
- घर के मंदिर में पूजा स्थल को अच्छी तरह साफ करें।
- गणेश पूजा की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं।
- चौकी के पूर्व भाग में कलश को रखें।
- चौकी के दक्षिण पूर्व भाग में दीप को प्रज्वलित करे।
- सर्वप्रथम शुभ समय में गणपति को पूर्व दिशा में मुख करके चौकी पर स्थापित करें।
- अपने ऊपर जल छिड़कते हुए भगवान विष्णु को प्रणाम करें।
- ॐ पुंडरीकाक्षाय नमः कहते हुए तीन बार आचमन करें तथा माथे पर तिलक लगाएं।
- चौकी पर विराजमान भगवान गणेश जी को नमस्कार करके ब्रथ धारण करे।
- गंध अक्षत और पुष्प लें ॐ पुंडरीकाक्षाय नमः मंत्र को पढ़कर गणेश जी का ध्यान करें।
- इसी मंत्र से उन्हें आवाहन और आसन भी प्रदान करें।
- आसन के बाद गणेश जी को दूर्वा, गंगाजल, पंचामृत से स्नान कराएं
- उसके बाद नये वस्त्र अर्पित करें।
- उसके बाद माला और फूल से भगवान को सजाएं।
- उसके बाद हल्दी, चंदन, अक्षत, गुलाब, सिंदूर, मौली, दूर्वा, जनेऊ, धूप, दीप, नैवेद्य, मिठाई, मोदक, फल आदि अर्पित करें।
- पूजा के पश्चात मंत्रों (ॐ श्री गणेशाय नमः, ॐ गं गणपतये नमः) से गणेश जी की की स्तुति, आरती करें।
- पुनः पुष्पांजलि हेतु गंध अक्षत पुष्प से ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात् मंत्रों से पुष्पांजलि अर्पित करें।
- तत्पश्चात गणेश जी की तीन बार प्रदक्षिणा करें और अंत में प्रसाद बांटे।
- इसी तरह 10 दिन तक रोज सुबह शाम पूजा, आरती करें और भोग लगाएं।
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गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी कथा:
एक बार देवी पार्वती कुंड के भीतर स्नान के लिए जाने से पूर्व, अपने शरीर से एक बालक को जन्म देती हैं। स्नान के लिए जाने से पूर्व माता पार्वती द्वार की रक्षा करने और किसी को भी भीतर ना आने देने कि कार्य उस बालक को सौंपती हैं। कुछ देर बार भगवान शिव अंदर जाने लगते हैं तब उस बालक उन्हें रोक देते, जिससे भगवान शिव क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट देते हैं। जैसे माता पार्वती अपने पुत्र के कटे सिर को देख के क्रोधित होकर पुरे ब्रह्मांड को हिला देती हैं। जैसे सभी देवता एवम नारायण सहित ब्रह्मा जी वहाँ आकर माता पार्वती को समझाने का प्रयास करते हैं। तब ब्रह्मा जी शिव वाहक को आदेश देते हैं कि पृथ्वी लोक में जाकर, सबसे पहले दिखने वाले किसी भी जीव बच्चे का मस्तक काट कर लाए, जिसकी माता उसकी तरफ पीठ करके सोई हो। तब नंदी को एक हाथी दिखाई देता हैं, जिसकी माता उसकी तरफ पीठ करके सोई होती हैं। नंदी उसका सिर काटकर लाते हैं, वही सिर बालक पर जोड़कर उसे पुन: जीवित किया जाता हैं।
इसके बाद भगवान शिव उन्हें अपने सभी गणों के स्वामी होने का आशीर्वाद देते हैं। गणों के स्वामी होने से उनका नाम गणपति रखते हैं। सभी देवता गणेश जी को अग्रणी देवता अर्थात देवताओं में श्रेष्ठ होने का आशीर्वाद देते हैं। तब से ही किसी भी पूजा के पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती हैं।
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पूजा के पश्चात मंत्रों
गणपती महामंत्र:
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ओम श्री गणेशाय नमः
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गणेश गायत्री मंत्र (Om Ekadantaya Vidmahe):
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