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October 30, 2024
Stotram

Rin Mochan Mangal Stotra | कर्ज मुक्ति के लिए पढ़े मंगलकारी ऋण मोचन मंगल स्तोत्र

Credit the Video : Shemaroo Bhakti YouTube Channel

Rin Mochan Mangal Stotra | कर्ज मुक्ति के लिए पढ़े मंगलकारी ऋण मोचन मंगल स्तोत्र: दोस्तों नमस्कार, आज हम आप लोगों को इस पोस्ट के माध्यम से ऋण मोचन मंगल स्तोत्र के बारे में बात करेंगे।

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र के पाठ से हनुमानजी आपको संसार के सभी तरह के ऋण से मुक्ति दिला देते हैं। इसलिए कर्ज को चुकाने के लिए आपको हर दिन हनुमानजी का ध्यान करते हुए ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। हनुमानजी आपको कर्ज से मुक्ति पाने की कृपा प्रदान करेंगे।

Rin Mochan Mangal Stotra

Runa Vimochana Mantra

Mangalo Bhumiputrashcha Rinaharta Dhanapradah।
Sthirasano Mahakayah Sarvakamavirodhakah॥1॥

Lohito Lohitakshashcha Samaganam Kripakarah।
Dharatmajah Kujo Bhaumo Bhutido Bhuminandanah॥2॥

Angarako YamashchaivaSarvarogapaharakah।
Vrishteh Kartapaharta Cha Sarvakama-phalapradah॥3॥

Etani KujanamaniNityam Yah Shraddhaya Pathet।
Rinam Na Jayate Tasya Dhanam Shighramavapnuyat॥4॥

Dharani-garbhasambhutam Vidyutkanti-samaprabham।
Kumaram Shaktihastam Cha Mangalam Pranamamyaham॥5॥

Stotramangarakasyaitat Pathaniyam Sada Nribhih।
Na Tesham Bhaumaja Pida Svalpapi Bhavati Kvachit॥6॥

Angaraka Mahabhaga Bhagavan Bhaktavatsala।
Tvam Namami Mamashesha Mrinamashu Vinashayah॥7॥

Rinarogadi-daridrayam Ye Chanye Chapamrityavah।
Bhayakleshamanastapa Nashyantu Mama Sarvada॥8॥

AtivakraduraraBhogamuktajitatmanah।
Tushto Dadasi Samrajyam Rushto Harasi Tatkshanat॥9॥

Viranchi Shakravishnunam Manushyanam Tu Ka Katha।
Tena Tvam Sarvasatvena Graharajo Mahabalah॥10॥

Putrandehi Dhanam Dehi Tvamasmi Sharanam Gatah।
Rinadaridrayadukhena Shatrunam Cha Bhayattatah॥11॥

Ebhirdvadashabhih Shlokairyah Stauti Cha Dharasutam।
Mahatim Shriyamapnoti Hyaparo Dhanado Yuva॥12॥

॥ Iti Shriskandapurane Bhargavaproktam
Rinamochana Mangala Stotram Sampurnam ॥

॥ ऋणमोचन मंगल स्तोत्र ॥

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥1॥

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः ॥2॥

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः ॥3॥

एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥4॥

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥5॥

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित् ॥6॥

अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय ॥7॥

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥8॥

अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात् ॥9॥

विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा॥
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः ॥10॥

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः ॥11॥

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥12॥

॥ इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥

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