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नीलाचलनिवासाय नित्याय परमात्मने: श्री जगन्नाथ स्तोत्र का पाठ विधि और प्रार्थना: दोस्तों नमस्कार, आज हम आपको इस लेख के जरिए श्री जगन्नाथ मंत्र: नीलाचलनिवासाय नित्याय परमात्मने का अर्थ, लाभ, कल्याण और फायदे के बारे में बात करेंगे। इस मन्त्र के करने से इच्छित मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती है। जो भी भक्त रथ का दर्शन करता है, या रथ को खींचने में मदत करता है, उस भक्त के सारे पाप भगवन हर लेते है। समस्त प्राणियों के मंगल के लिए, जानिए भगवान जगन्नाथ के नीलाचलनिवासय स्तोत्र। जय जगन्नाथ!
भगवान श्री जगन्नाथ जी की पावन रथ यात्रा उत्सव में समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। भगवान जगन्नाथ से सबके जीवन में सुख, शांति व समृद्धि की कामना करता हूँ। हिंदू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को विश्वविख्यात जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन होता है। विशेष रूप से ओडिशा के पुरी शहर में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा श्री मंदिर से बाहर निकलकर भव्य रथों पर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। इस रथ उत्सव में भक्तगण श्रद्धा और भक्तिभाव से परिपूर्ण होकर, भगवान जगन्नाथ की स्तुति करते हुए कहते हैं,
नीलाचल निवासाय नित्याय परमात्मने ।
बलभद्र सुभद्राभ्यां जगन्नाथाय ते नमः ॥
जगदानन्दकन्दाय प्रणतार्तहराय च ।
नीलाचलनिवासाय जगन्नाथाय ते नमः ॥
Neelachala Nivasaya Nityaya Paramatmane ।
Balabhadra Subhadrabhyam Jagannathaya te Namah ॥
Jagadananda Kandaya Pranatartaharaya Cha ।
Neelachala Nivasaya Jagannathaya te Namah ॥
समस्त जीवात्माओं के ह्रदय में परमात्मा के रूप में स्तिथ, शाश्वत, परम पुरुषोत्तम भगवान श्री जगन्नाथ जो श्री नीलाचल क्षेत्र, पुरी धाम में निवास करने वाले नित्य परमात्मा स्वरूप श्रीकृष्ण, अपने बड़े भाई भगवान् बलभद्र एवं अपनी बहन सुभद्रा देवी के साथ वास करते है, उनको मैं विनम्र दण्डवत् प्रणाम करता हूँ।
श्री जगन्नाथ स्तोत्र का पाठ:
भारत के चार धामों से एक महत्वपूर्ण धाम जगन्नाथपुरी हैं। जगत नियंता भगवान जगन्नाथ विष्णु के एक रूप हैं। इस स्तोत्र नीलाचलनिवासय का तात्पर्य भगवान जगन्नाथ से है, जो पवित्र नीलाचल पहाड़ी पर रहते हैं। प्रभु की कृपा से चारों दिशाओं में मंगल हो। यह नित्यय परमात्मने उसे शाश्वत सर्वोच्च आत्मा, सभी प्राणियों में व्याप्त, परम चेतना के रूप में पहचानता है। इसके अलावा, यह श्लोक भगवान जगन्नाथ के दिव्य भाई-बहन, बलभद्र और देवी सुभद्रा के आशीर्वाद का आह्वान करता है, जो शक्ति और शुभता के प्रतीक हैं। इस श्लोक के दिव्य दिव्य स्पंदन को अपने ऊपर हावी होने दें, जिससे आपका हृदय शांति, प्रेम और भक्ति से भर जाए। भगवान जगन्नाथ के प्रति समर्पण भाब से आध्यात्मिक संबंध का महसूस करें, और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। भक्ति के सागर का गहराई से उस दिव्य आनंद का अनुभव करें। इस स्त्रोत का पाठ करने से, सम्पूर्ण जगत के नाथ महाप्रभु श्री जगन्नाथ, आपके सारे कष्ट का निवारण करते हैं। समग्र मानव समाज को सुख, शांति, समृद्धि और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
श्री जगन्नाथ स्तोत्र पाठ का विधि:
- सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण, श्री बलराम एवं देवी सुभद्रा जी का पंचोपचार-जल, अक्षत-पुष्प, धुप, दीप और नैवेद्य से पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रभु का ध्यान करें।
- पूजन बाद स्त्रोत के पहले दो श्लोक से योगेश्वर श्री कृष्ण, श्री बलराम, और देवी सुभद्रा को दंडवत प्रणाम करें।
- पूजन और नमन करने के बाद किसी धुले हुए आसन पर बैठकर भगवान श्री जगन्नाथ जी के इस स्त्रोत का शांत चित्त होकर धीमे स्वर में पाठ करें।
- जब तक पाठ चलता रहे तब तक गाय के घी का दीपक भी जलता रहे।
- ऐसा कहा जाता कि इस स्त्रोत का सिर्फ एक बार पाठ करने से मानसिक शांति मिलने के साथ अनेक कष्टों का निवारण श्री भगवान जी की कृपा से जल्दी हो जाता है।
श्री जगन्नाथ स्तोत्र
अथ श्री जगन्नाथप्रणामः
नीलाचलनिवासाय नित्याय परमात्मने ।
बलभद्रसुभद्राभ्यां जगन्नाथाय ते नमः ॥ १ ॥
जगदानन्दकन्दाय प्रणतार्तहराय च ।
नीलाचलनिवासाय जगन्नाथाय ते नमः ॥ २ ॥
अनाथस्य जगन्नाथ नाथस्त्वं मे न संशयः ।
यस्य नाथो जगन्नाथस्तस्य दुःखं कथं प्रभो ॥ ३ ॥
या त्वरा द्रौपदीत्राणे या त्वरा गजमोक्षणे।
मय्यार्ते करुणामूर्ते सा त्वरा क्व गता हरे ॥ ४ ॥
मत्समो पातकी नास्ति त्वत्समो नास्ति पापहा।
इति विज्ञाय देवेश यथायोग्यं तथा कुरु ॥ ५ ॥
श्री जगन्नाथ प्रार्थना
॥ श्री जगन्नाथ प्रार्थना ॥
रत्नाकरस्तव गृहं गृहिणी च पद्मा
किं देयमस्ति भवते पुरुषोत्तमाय ।
अभीर, वामनयनाहृतमानसाय
दत्तं मनो यदुपते त्वरितं गृहाण ॥ १ ॥
भक्तानामभयप्रदो यदि भवेत् किन्तद्विचित्रं प्रभो
कीटोऽपि स्वजनस्य रक्षणविधावेकान्तमुद्वेजितः ।
ये युष्मच्चरणारविन्दविमुखा स्वप्नेऽपि नालोचका-
स्तेषामुद्धरण-क्षमो यदि भवेत् कारुण्यसिन्धुस्तदा ॥ २ ॥
अनाथस्य जगन्नाथ नाथस्त्वं मे न संशयः ।
यस्य नाथो जगन्नाथस्तस्य दुःखं कथं प्रभो ॥ ३ ॥
या त्वरा द्रौपदीत्राणे या त्वरा गजमोक्षणे ।
मय्यार्ते करुणामूर्ते सा त्वरा क्व गता हरे ॥ ४ ॥
मत्समो पातकी नास्ति त्वत्समो नास्ति पापहा ।
इति विज्ञाय देवेश यथायोग्यं तथा कुरु ॥ ५ ॥
प्रार्थना समाप्त होने पर भगवान श्री जगन्नाथ के चरणों में पुष्पाजंलि अर्पित करें।
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